विंध्य के तपोवन क्षेत्र में ऋषियों की वैज्ञानिक परंपरा के सिरमौर थे महर्षि अगस्त्य

Maharishi Agastya was the head of the scientific tradition of sages in the Tapovan region of Vindhya.
विंध्य के तपोवन क्षेत्र में ऋषियों की वैज्ञानिक परंपरा के सिरमौर थे महर्षि अगस्त्य
सतना विंध्य के तपोवन क्षेत्र में ऋषियों की वैज्ञानिक परंपरा के सिरमौर थे महर्षि अगस्त्य

डिजिटल डेस्क, सतना। यह आम धारणा है कि विद्युत धारा की सर्वप्रथम खोज माइकल फैराडे ने की थी? मगर, हाल ही में इन तथ्यों पर प्रकाश पड़ा है कि ईसा से तकरीबन ३ हजार वर्ष पूर्व विंध्य के तपोवन क्षेत्र में महर्षि अगस्त्य (कुंभज ऋषि) ने विद्युत धारा को उत्पन्न करने और उसके विविध उपयोगों की तकनीक इजाद कर ली थी। राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान के जिला समन्वयक और एक्सीलेंस स्कूल मैहर के प्रभारी प्राचार्य डा. अतुल गर्ग इन ताजा तथ्यों की पुष्टि में  अगस्त्य संहिता के सूत्रों के तर्क देते हैं। उन्होंने इसी संहिता के हवाले से स्पष्ट किया कि इलेक्ट्रिीसिटी, फिजिकल केमिस्ट्री, इलेक्ट्रो प्लेटिंग, बैटरी बोन, पैराशूट और एरोनॉटिकल तकनीक वास्तव में बीसवीं सदी के वैज्ञानिकों की देन नहीं है। यह दुर्भाग्य है कि हम आज भी विद्युत धारा की  खोज का श्रेय माइकल फैराडे या फिर ऐसे अन्य पाश्चात्य विज्ञानियों को देते हैं।  
+ इलेक्ट्रिीसिटी:  मित्रा वरुण शक्ति :---
अगस्त्य संहिता के हवाले से डा. गर्ग बताते हैं...
संस्थाप्य मृण्मये ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम् ।  
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:।।
 दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। 
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्।। 
अर्थात्-  मिट्टी का एक पात्र लें। उसमें ताम्र पट्टिका (कॉपर सीट)लगाएं। शिखिग्रीवा (कॉपर सल्फेट) डालें। फिर बीच में गीली काष्ठ पांसु (वेट सॉ डस्ट) लगाएं। ऊपर पारा (मरकरी) तथा दस्त लोष्ट (जिंक)डालें। फिर तारों को मिला दें तो मित्र वरुण शक्ति (इलेक्ट्रिीसिटी) पैदा हो जाएगी। 
 कुुंभोद्भव : बैट्ररी बोन और इलेक्ट्रो प्लेटिंग :----
 अगस्त्य संहिता में विद्युत के उपयोग के लिए इलेक्ट्रोप्लेटिंग का भी विवरण मिलता है। जिसमें बैटरी द्वारा तांबा,सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाई जाती है। संभवत: इसे  कुंभोद्भव (बैटरी बोन) भी कहते हैं। उल्लेख मिलता है कि १०० कुंभ (सेल) यदि एक श्रृंखला (सिरीज ) में जोड़ कर उनकी शक्ति का प्रयोग पानी में करें तो पानी अपना रुप बदल कर प्राणवायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में बदल जाएगा। शुक्र नीति की तरह अगस्त्य संहिता में भी स्वर्ण जडि़त ताम्र (शातकुंभ) निर्माण की वैज्ञानिक विधि मिलती है। 
 +वायुयान और पैराशूट :----
अगत्स्य संहिता में गर्म गुब्बारों को आकाश में उड़ाने, और गर्म गुब्बारों से विमान को संचालित करने की तकनीक का उल्लेख भी मिलता है। उदानवायु (हाइड्रोजन) को वायु प्रतिबंधात्मक वस्त्र में रोक कर विमान संचालित करने की विद्या का  भी वर्णन है। उल्लेख मिलता है कि इस विद्या से विमान वायु पर ऐसे चलता है,जैसे पानी में नाव। यही पैराशूट की भी विधि है। इसमें आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र का जिक्र है। डा. अतुल गर्ग बताते हैं, अगस्त्य संहिता से यह भी स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में ऐसे वस्त्र भी बनाए जाते थे,जिनमें हवा (हाइड्रोजन) भरी जा सके। 
+ सनातन धर्म में विज्ञान :--
 राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान के जिला समन्वयक डा. अतुल गर्ग कहते हैं, कैमिस्ट्री के नोबल प्राइज विनर रिचर्ड राबर्ट अर्नेस्ट ने नेशनल एकेडमी आफ साइंस के इन्ट्रेक्टिव सेशन के दौरान लखनऊ में माना था कि भारत की सनातन धर्म परंपरा में उत्कृष्ट कोटि का विज्ञान छिपा है। धर्म का विज्ञान से अंर्तसंबंध है। वेदों की शक्ति के अध्ययन के लिए वर्ष २०११ में साउथ एशिया के प्रवास पर आए अर्नेस्ट मूलत: स्विस वैज्ञानिक हैं, जिन्हें न्यूक्लियर मैग्नेटिक रिजोन्स पर वर्ष १९९१ में नोबल अवार्ड मिला था।  
+विंध्याचल से है पुरातन संबंध :--- 
सप्त ऋषियों में शुमार महर्षि अगस्त्य का विंध्यांचल से पुरातन संंबंध भारतीय जनमानस में जनश्रुतियों का अभिन्न अंग है। जनविश्वास है कि जबलपुर-मैहर हाइवे के बीच झुकेही (झुका हुआ) कस्बा वही स्थल है,जहां दक्षिण की यात्रा के दौरान अगस्त्य के सम्मान में गगनचुंबी विंध्य पर्वत आज भी नतमस्तक है। सतना और पन्ना जिले के बार्डर में टेढ़ी नदी के तट पर स्थित सिद्ध नाथ का प्राचीन मंदिर आज भी अगस्त्य की तपोस्थली माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस में उल्लेख मिलता है कि चित्रकूट से सती अनुसूइया, सरंभग और सुतीक्ष्ण आश्रम होते हुए वनवासी श्रीराम अपनी भार्या  सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ इसी अगस्त्य आश्रम पर पहुंचे थे। भविष्य दृष्टा अगस्त्य ने उन्हें अनेक अमोघ शस्त्र (अत्याधुनिक प्रेक्षपास्त्र) भेंट किए थे जो रावण से संग्राम में विजय का कारण बने। महर्षि की वाल्मीकि रामायण से पता चलता है कि सूर्यवंशी श्रीराम को आदित्यहृदय स्त्रोत की भेंट भी इन्हीं कुंभज ऋषि से ही मिली थी। जनश्रुति है कि महाप्रतापी अगस्त्य के समुद्र  पी जाने की शक्ति की चर्चा भी मिलती है।

Created On :   28 Feb 2022 3:22 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story