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जागृत देवीस्थान श्री चंडिका देवी, करती है हर मनोकामना पूरी
डिजिटल डेस्क, कुरणखेड़. भारत में कुल पांच उत्तराभिमुख शक्तिपिठ में से एक है श्री चंडीका देवी। काटेपूर्णा में नदी किनारे उंची पहाड़ी पर चंडीका देवी का जागृक मंदिर है। अकोला -मूर्तिजापुर राष्ट्रीय महामार्ग पर कुरणखेड (काटेपूर्णा) बस स्टाप से दक्षिण दिशा में ३ कि. मी. दूरी पर यह संस्थान है। यहां पर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से विजयादशमी तक नवरात्रोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। प्रतिदिन सुबह ११ बजे और रात ८ बजे महाआरती, अष्टमी को होमहवन , नवमी को पूर्णाहूती व महाप्रसाद होता है। चंडिकादेवी का उल्लेख पांडवप्रताप ग्रंथ में भी मिलता है। आज का जो कुरणखेड (काटेपूर्णा) गांव है उसे प्राचीन काल में कुंतलपुर नाम से जाना जाता था। उस समय की प्राचीन मीनारें और छत्र आज भी देखने को मिलते हैं। इस मंदिर परिसर में कई नामी तपस्वियों ने तपस्या की है। यहां पर लक्कड महाराज ने भी निवास किया था। जो लोहे की लंगोट पहनते थे। इस संस्थान के पूर्व अध्यक्ष स्व. डॅडी देशमुख के दादाजी शंकरराव आप्पा देशमुख यह इस संस्थान में नवरात्रोत्सव के दौरान नउ दिन तक गुंफा में रहते थे। इस मंदिर में चंडिका माता का मुख्य मंदीर उत्तराभिमुख मध्यस्थल पर है। वहीं पूर्वी दिशा में शितला माता का मंदिर और पश्चिम दिशा में हनुमंत का मंदिर है। . भव्य दिपमाल और प्रशस्त भक्तनिवास है। सन १९३५ में यहां पर निवास करने वाले स्व. व्यंकटी गुंडीला भोसले ने इस मंदिर का विस्तार करना शुरू किया। तब वैद्य स्व. विष्णुपंत नानोटी ने इस के लिए वित्तिय सहयोग दिया था। पांडवप्रताप ग्रंथ में उल्लेख है की इस कुंतलपुर में चंद्रहास्य नाम का एक राजा था। वह चंडिका माता का निस्सिम भक्त था। यहां पर तब घना जंगल था। जब राजा मंदिर में सुबह दर्शन के लिए गया तब उसने देखा की एक बड़ा बाघ आया और उसने अपने पूछ से मंदिर का चबुतरा साफ कर वह देवी को प्रणाम कर वहां से चला गया। देवी की अपार भक्ति के कारण राजा चंद्रहास्य की जान भी बची थी। इस मंदिर की मान्यताएं ऐसी भी है कि यहां पर शिव व शक्ति दोनों का निवास है। नवरात्रोत्सव में दर्शन के लिए श्रध्दालुओं की भीड़ रहती है। श्रध्दालु इस मंदिर में आकर देवी दर्शन का लाभ ले ऐसा आवाहन इस मंदिर के व्यवस्थापन की ओर से किया गया है।
Created On :   4 Oct 2022 6:05 PM IST