भारत के पहले सौर मिशन में अंतरिक्ष के मौसम को बाधित करने वाले सौर विस्फोटों पर नजर रखने वाली नवीन तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा!
डिजिटल डेस्क | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत के पहले सौर मिशन में अंतरिक्ष के मौसम को बाधित करने वाले सौर विस्फोटों पर नजर रखने वाली नवीन तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा| वैज्ञानिकों ने चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के साथ पिरोए गए गैस के विशाल बुलबुले, जोकि सूर्य से बाहर निकलकर अंतरिक्ष के मौसम को बाधित करते हैं और भू-चुंबकीय तूफान, उपग्रहों की विफलता और बिजली गुल होने का कारक बनते हैं, पर नजर रखने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। चूंकि तकनीकी रूप से कोरोनल मास इजेक्शंस (सीएमई) के नाम से जानी जाने वाली सूर्य से बाहर निकलने की यह प्रक्रिया अंतरिक्ष के वातावरण में विभिन्न गड़बड़ियों का कारण बनती है, लिहाजा उनके आगमन के समय का पूर्वानुमान लगाना बेहद महत्वपूर्ण है।
हालांकि, पूर्वानुमान की सटीकता विभिन्न ग्रहों के बीच के अंतरिक्ष में सीएमई से संबंधित सीमित पर्यवेक्षण से बाधित होती है। कंप्यूटर विजन एल्गोरिदम पर आधारित कंप्यूटर एडेड सीएमई ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर (कैक्टस) नाम के सॉफ्टवेयर का उपयोग अब तक बाहरी कोरोना में स्वचालित रूप से होने वाले ऐसे विस्फोटों का पता लगाने और उनकी पहचान करने के लिए किया जाता था। बाहरी कोरोना वो स्थान है, जहां ये विस्फोट गतिशीलता दिखाना बंद कर देते हैंऔर लगभग एक अचर गति के साथ आगे बढ़ते हैं। हालांकि, इन विस्फोटों द्वारा महसूस किए गए व्यापक त्वरण के कारण इस एल्गोरिदम को आंतरिक कोरोना पर्यवेक्षणों पर लागू नहीं किया जा सका।
इस स्थिति ने इन विस्फोटों पर नजर रखने की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर दिया क्योंकि सीएमई की गति निचले कोरोना में तेज हो जाती है। इसके अलावा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, अंतरिक्ष यान से प्राप्त आंकड़ों की मात्रा में जबरदस्त वृद्धि हुई है। बड़ी संख्या में प्राप्त चित्रों में से सौर विस्फोटों की पहचान करने और उन्हें ढूढने की प्रक्रिया शारीरिक रूप से किए जाने की स्थिति में थकाऊ साबित हो सकती है। बेल्जियम के रॉयल ऑब्जर्वेटरी के सहयोगियों के साथ मिलकर भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)के तहत आने वाले स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (एरीज), नैनीताल के श्री रितेश पटेल, डॉ. वैभव पंत और प्रो. दीपांकर बैनर्जी के नेतृत्व में किये गये इस अनुसंधान ने निचले कोरोना में तेजी गति से होने वाले सौर विस्फोटों का पता लगाने और उनपर नजर रखने के लिए इनर सोलर कोरोना में सीएमई की पहचान(सीआईआईएससीओ) नाम के एक एल्गोरिदम के विकास का नेतृत्व किया है।
सीआईआईएससीओ को सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी और सोलर– टेर्रेसट्रीयल रिलेशन्स ऑब्जर्वेटरी, क्रमशः नासा और एसा द्वारा प्रक्षेपित प्रोबा2 / स्वाप समेत विभिन्न अंतरिक्ष वेधशालाओं द्वारा देखे गए कई विस्फोटों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। इस शोध को सोलर फिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। (a) (b) (c) चित्र 1: (a) स्वाप उपकरण की ईयूवी छवि में सौर कोरोना देखा गया। पश्चिम अंग पर एक प्रस्फुटित संरचना लाल तीर द्वारा इंगित की गई है, (b) विस्फोट के अनुपात में ऊंचाई - समय ग्राफ पर अंकित। एक परवलयिक प्रोफ़ाइल देखी जा सकती है, (c) डैश वाली लाइन के जरिए सीआईआईएससीओ द्वारा (बी) पर ओवरप्लाट की गयी परवलयिक प्रोफ़ाइल की पहचान की गई है।
सीआईआईएससीओ द्वारा निर्धारित पैमाने निचले कोरोना, एक ऐसा क्षेत्र जहां ऐसे विस्फोटों से संबंधित गुण अपेक्षाकृत कम ज्ञात हैं, में इन विस्फोटों को चिन्हित करने के लिए उपयोगी हैं। ऊपर उल्लिखित अंतरिक्ष वेधशालाओं से उपलब्ध बड़ी मात्रा में आंकड़ों पर सीआईआईएससीओ का कार्यान्वयन आंतरिक कोरोना में विस्फोट के बारे में हमारी समझ को बेहतर बनाने में मददगार होगा। चूंकि भारत के पहले सौर मिशन के रूप में, आदित्य-एल 1, सोलर कोरोना के इस क्षेत्र का पर्यवेक्षण करेगा, आदित्य-एल 1 के आंकड़ों पर सीआईआईएससीओ के कार्यान्वयन से इस कम अन्वेषण वाले क्षेत्र में सीएमई से संबंधित गुणों के बारे में नई जानकारी मिलेगी।
Created On :   1 April 2021 1:43 PM IST