हाथी से बचाने में हिंदी भाषा बनी बड़ी मुश्किल, भाषा न आने से अब तक 15 ग्रामीणों ने गंवाई जान, अब नए रास्ते की तलाश में वन विभाग

Hindi became an obstacle in the protection of life and property of
हाथी से बचाने में हिंदी भाषा बनी बड़ी मुश्किल, भाषा न आने से अब तक 15 ग्रामीणों ने गंवाई जान, अब नए रास्ते की तलाश में वन विभाग
शहडोल हाथी से बचाने में हिंदी भाषा बनी बड़ी मुश्किल, भाषा न आने से अब तक 15 ग्रामीणों ने गंवाई जान, अब नए रास्ते की तलाश में वन विभाग

डिजिटल डेस्क, शहडोल, राघवेंद्र चतुर्वेदी। जंगली हाथियों के मूवमेंट के कारण शहडोल संभाग के 30 से ज्यादा गांवों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इन गांवों में वन विभाग ने अब 15 दिनों में विशेष जागरुकता अभियान चलाने की तैयारी की है, लेकिन उन्हें "हिन्दी" भाषा को लेकर आ रही परेशानी का हल नहीं मिल पा रहा है। दरअसल जंगली हाथियों के अचानक गांव पहुंचने पर ग्रामीण अपना बचाव कैसे करें, इसके लिए उन्हें कर्नाटक के जंगली हाथियों के विशेषज्ञों से प्रशिक्षण दिलवाने की तैयारी थी। इसमें समस्या यह है कि उन्हें हिन्दी भाषा नहीं आती। बिना हिन्दी जाने वे कैसे प्रशिक्षण दे सकेंगे? इस सवाल से वन विभाग के अफसर भी परेशान हैं, यही वजह है कि अब उन्हें ऐसे एक्सपर्ट की तलाश है जो उत्तर व मध्य भारत से जाकर वहां (दक्षिण भारत) में ग्रामीणों की सुरक्षा में सक्रिय रहे हैं। हाथियों के हमले से पहले ग्रामीणों को सतर्क रहते हुए जान-माल की सुरक्षा के लिए जागरुकता इसलिए जरुरी है क्योंकि संभाग के तीनों जिले में बीते 2 साल के दौरान 15 ग्रामीणों की जान चली गई।

बेहोश कर शिफ्टिंग मुश्किल

हाथी विशालकाय वन्यप्राणी हैं और इस कारण उसे आसानी से भगाना या बेहोश कर किसी दूसरे स्थान पर शिफ्टिंग करना संभव नहीं है। ऐसे में जरुरी है कि हाथियों के मूवमेंट वाले गांव के लोगों को जागरुक किया जाए। जिससे संकट में बचाव कर सकें।

संभाग में 52 जंगली हाथी, पानी के आसपास ज्यादा मूवमेंट

- 40 से ज्यादा जंगली हाथियों के एक समूह का दो साल से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में विचरण।

- 9 हाथियों का एक दल का 4 अप्रैल से शहडोल जिले के अमझोर व जयसिंहनगर में विचरण। सोमवार को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में मूवमेंट। 

- 3 हाथियों का एक दल बीते दिनों शहडोल बुढ़ार रेंज में विचरण के बाद सोमवार को लोकेशन अनूपपुर के राजेंद्रग्राम रेंज मिला।

3 जिलों में मौतें

जंगली हाथियों के हमले से अनूपपुर जिले के राजेंद्र ग्राम वनपरिक्षेत्र के घुट्टीपाड़ा में 2 अप्रैल 2020 को प्रेम सिंह (50) निवासी लिघवाटोला, जानकी बाई (30) मझौली, कुंती बाई (40) नेवसा व एक सितंबर 2020 को कोतमा रेंज के सुईडांड़ में रामचंद्र पाव (46), 26 अगस्त 2021 को बिजुरी रेंज के बेलगांव में गया केवट (50), मुन्नी बाई (45) व राजकुमार (04) की मौत हो गई। इसी प्रकार बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 4 अक्टूबर 2020 को अन्नू केवट (22) सेहरा, 7 फरवरी 2021 को लल्ली बाई (28) हरदी व 9 अप्रैल 2021 को बुद्दी बाई (32) निवासी कुदरी और शहडोल जिले के अमझोर रेंज में 5 अप्रैल 2022 को मोतीलाल (60) मसियारी व मोलिया बसोर(55) और अगले ही दिन 6 अप्रैल 2022 को बासा अमझोर में लल्लू (55) मोहनी, ललिता बाई (50) व बेबी सिंह (40) की मौत हो गई। 

जंगली हाथियों के मूवमेंट वाले गांव में जान-माल की सुरक्षा के लिए हाथी मूवमेंट वाले कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, आसाम व महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों को पत्र लिखकर एक्सपर्ट की तलाश कर रहे हैं। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाले एक्सपर्ट नहीं मिल रहे। मध्यप्रदेश के जिन गांव में हाथियों का मूवमेंट है, वहां के लोग हिंदी भाषा ही समझते हैं।
 

Created On :   26 April 2022 5:54 PM IST

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