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अदालत ने पूछा- क्या वाहन खड़े करने के लिए बनाते हैं सड़के
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सार्वजनिक सड़कों पर वाहनों की अवैध पार्किंग को रोकने व नियंत्रण के लिए प्रभावी नीति लाने में राज्य सरकार की विफलता को देखते हुए बांबे हाईकोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। इस दौरान कोर्ट ने सरकार की उस नीति की स्थिति के बारे में भी सवाल किया जिसके तहत यह प्रस्तावित है कि पार्किंग की जगह उपलब्ध होने का प्रमाण दिखाने के बाद ही नयी गाड़ी खरीदने की अनुमति दी जाएगी। कोर्ट ने कहा कि कम से कम नए नियोजित शहरों से अपेक्षा नहीं है कि वे मुंबई जैसे हो जहां सिर्फ कार ही कार नजर आती है। खंडपीठ ने यह बाते नई मुंबई में वाहनों की अवैध पार्किंग के मुद्दे को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। यह याचिका नई मुंबई निवासी संदीप ठाकुर ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि ऊंची-ऊंची इमारते बनानेवाले डेवलपर पार्किंग के लिए पार्याप्त जगह नहीं छोड़ रहे है। इसलिए लोग इमारत की सोसायटी के बाहर कहीं पर भी गाड़िया खड़ी करते है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि यह नई मुंबई मनपा की जिम्मेदारी है कि वह अवैध पार्किंग को नियंत्रित करे। इस दिशा में प्राधिकरणों को प्रगतिशील कदम उठाने की जरुरत है।
खंडपीठ ने कहा कि नए नियोजित शहर मुंबई न बने जहां चारो तरफ सिर्फ कार ही कार दिखाई देती है। न तो महानगरपालिका और न ही राज्य सरकार पार्किंग पॉलिसी के बारे में विचार कर रही है। सारे रास्ते वाहन से भरे दिखते हैं। आम आदमी को सड़क पर चलने के लिए जगह ही नहीं है। सड़क के दोनों तरफ की 40 प्रतिशत जगह पार्किंग ने ली है। सड़को के निर्माण पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। क्या यह खर्च सड़क पर वाहन खड़े करने के लिए किया जा रहा है।
खंडपीठ ने कहा कि कार खरीद पर नियंत्रण लगाना जरुरी है। किसी परिवार को इस लिए चार से पांच वाहन खरीदने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए कि वह वाहन खरीदने में सक्षम है। सरकार पहले चेक करे कि वाहन खरीदनेवाले के पास पार्किंग की जगह है कि नहीं। हमने सोचा था कि नई मुंबई महानगरपालिका इस मामले में संवेदनशील होगी है कि लेकिन खेदजनक है कि वहां पर भी अवैध पार्किंग की परेशानी है। खंडपीठ ने कहा कि साल 2018 में हमने सुना था कि सरकार वाहन खरीदने से पहले पार्किंग का प्रमाण मांगेगी। इस नीति की क्या स्थिति हैॽ अगली सुनवाई के दौरान हमे बताया जाए।
प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र से जुड़ी याचिका खारिज
वहीं प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना के तहत चंद्रपुर आयुध निर्माणी में जेनेरिक दवाओं के वितरण के लिए आयोजित टेंडर प्रक्रिया को चुनौती देती याचिका को नागपुर खंडपीठ ने खारिज कर दिया है। जांगोरैताड आदिवासी विकास संस्था अध्यक्ष प्रबोध चंद्रशेखर वेखंडे ने याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, चंद्रपुर आयुध निर्माणी में दवाओं की आपूर्ति के लिए चंद्रपुर आयुध निर्माणी प्रशासन ने 12 जून 2020 को टेंडर प्रक्रिया आयोजित की। याचिकाकर्ता ने इसमें हिस्सा लिया। याचिकाकर्ता का प्रस्ताव खारिज करते हुए नागपुर के राकेश समर्थ और चंद्रप्रभा गोवर्धन के जनऔषधि मेडिकल केंद्र का प्रस्ताव स्वीकार किया गया। याचिकाकर्ता ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। दलील दी कि आयुध निर्माण प्रशासन ने याचिकाकर्ता के पास दवा लाइसेंस न होने का तर्क देकर उनका प्रस्ताव खारिज कर दिया। लेकिन असल में उनके त्रिपूरा जन औषधालय के पास वैध लाइसेंस है। मामले में सभी पक्षों को सुनकर माना कि त्रिपूरा जन औषधालय और याचिकाकर्ता की संस्था भिन्न-भिन्न है। ऐसे में आयुष निर्माणी प्रशासन का फैसला सही है। इस निरीक्षण के साथ हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
Created On :   13 Aug 2021 12:08 PM IST