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अकोला जिले के लिए टीके उपलब्ध, डॉ.बुकतरे ने कहा - गाय और भैंस के दूध से कोई संक्रमण नहीं
डिजिटल डेस्क, अकोला. गोवंशीय तथा भैंस वर्गीय मवेशियों में लम्पी त्वचा रोग इस संक्रामक बीमारी का प्रभाव नजर आ रहा है। इस बीमारी को प्रतिबंधित करने के लिए तथा मवेशियों को सुरक्षित रखने के लिए अकोला जिले के लिए 2 लाख 88 हजार प्रतिबंधात्मक टीके जिला प्रशासन को प्राप्त हुए है। जिससे अकोला जिले में अब मवेशियों में टीकाकरण के गति आई है। अब तक 77 हजार 584 मवेशियों का टीकाकरण किया जा चूका है। जबकि बाकी बचे मवेशियों का टीकाकरण शीघ्र करने के निर्देश जिलाधिकारी नीमा अरोरा ने दिए है। लम्पी के कारण नागरिकों में गाय भैंस के दूध को लेकर संभ्रम है। इस संदर्भ में जिला पशुसंवर्धन उपायुक्त डाॅ. जगदीश बुकतरे ने दैनिक भास्कर से बातचीत में स्पष्ट किया कि मनुष्य में लम्पी का कोई खतरा नहीं है। इसका संक्रमण दूध या दुग्धजन्य पदार्थ से मनुष्य के शरीर में नहीं होता सिर्फ नागरिक दूध को उबालकर ही उसका इस्तेमाल करें।
त्वचारोग लम्पी से जिले में मवेशियों में संक्रमण पर जिलाधिकारी ने बैठक ली जिसमें विधायक अमोल मिटकरी, निवासी उपजिलाधिकारी डा.प्रा.संजय खडसे, जिला पशुसंवर्धन अधिकारी डा.जी.एम.दलवी, डा.बालकृष्ण धुले, डा.देशमुख, डा.सोनोने की उपस्थिति रही। बैठक में बताया गया कि जिले में लम्पी संक्रमणवाले 47 हजार 264 मवेशी है। जबकि बाधित मवेशियों की संख्या 1476 है। बाधित मवेशी जीन गांवों में मिले उन गांवों के 5 किमी दायरे में 343 गांव है। जिसमें मवेशियों की कुल संख्या 1 लाख 13 हजार 398 है। अब तक 87 हजार 584 मवेशियों का टीकाकरण हो चुका है। बाधित मवेशियों में से 429 मवेशी इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं। जबकि 46 मवेशियों की मौत हो चुकी है। 1001 संक्रमित पशु रुग्ण इलाजरत हैं। इस संदर्भ में विधायक मिटकरी ने जो मवेशी मरे उनके मालिकों को उचीत मुआवजा देने के निर्देश दिए।
जिले में तथा प्रदेश में फैल रहे लम्पी के प्रकोप को देखते हुए महाराष्ट्र पशु व मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय नागपुर अंतर्गत अकोला स्नातकोत्तर पशु विज्ञान संस्थान की ओर से ऑनलाईन कार्यक्रम हुआ। जिसमें माफसू के विस्तार शिक्षा संचालक प्रा.डाॅ.अनिल भिकाने ने प्रदेश के 216 पशु वैद्यकों को मार्गदर्शन किया। जिसमें बताया गया कि रोग की तीव्रता अधिक है तथा लक्षण भी खतरनाक नजर आ रहे है। जिसमें बुखार होना, छाती पर तथा डील पर एवं पैर पर सूजन आने से मवेशी लंगड़ाने लगते है। बैठने में परेशानी होती है। फेफड़ों में बीमारी के लक्षण नजर आते है। जबकि शरीर श्वांस नली, फेफडे एवं यकृत में गांठे आती है। प्रदेश में मवेशियों का मरने का प्रतिशत फिलहाल 2 टका है। इसके लिए थायलोरिओसिस, बॅबेसिओसिस, अनाप्लाझमोसिस, न्यूमोनिया के कारण मवेशी मर रहे है। इसलिए प्रतिबंधात्मक टीके तत्काल लगाने के निर्देश दिए गए है।
Created On :   20 Sept 2022 6:40 PM IST