सांगोला में होती है दशानन की पूजा, सदियों से चली आ रही परंपरा

Dashanan is worshiped in Sangola, tradition going on for centuries
सांगोला में होती है दशानन की पूजा, सदियों से चली आ रही परंपरा
अकोला सांगोला में होती है दशानन की पूजा, सदियों से चली आ रही परंपरा

डिजिटल डेस्क, अकोला. विजया दशमी अर्थात दशहरे के पावन पर्व पर समूचे देश समेत अकोला जिले में महापंडित रावण अर्थात दशानन का पुतला जलाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई के प्रतीक स्वरुप आयोजित किया जाता है। लेकिन अकोला जिले में पातूर तहसील में एक ऐसा गांव है, जहां प्रतिदिन रावण की पूजा होती है। दशहरे के दिन विशेष पूजा का यहां आयोजन होता है। गांव का नाम है सांगोला। समूचे विश्व में यह अपवाद है, जहां रावण के सद्गुणों के कारण वह पूजा जाता है। यह परम्परा गांव में विगत 300 सालों से चली आ रही है। रावण में भले ही अहंकार का दुर्गुण था, लेकिन वह महान शिवभक्त, महाज्ञानी तथा महापंडित होने के साथही कुशल प्रशासक रहा; उसके इन्हीं गुणों की यहां पूजा होती है। 

इस तरह हुआ प्रारम्भ

रावण की पूजा करनेवाले पुजारी हरिभाऊ लखाडे तथा ग्रामीण भिवाजी ढाकरे महाराज, सूमेध हातोले, भिकाजी महाले के अनुसार महापंडित रावण की लंका भले ही अकोला से हजारों मिल दूर है, किंतु अकोला के सांगोला में महापंडित दशानन की नित्य पूजा की जाती है। 300 वर्षों पूर्व यहां रहनेवाले एक ऋषि ने गांव के पश्चिम छोर के जंगल में तपस्या की, उन्हीं की प्रेरणा से गांव में धार्मिक आयोजन आरम्भ हुए। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद एक शिल्पी ने उनकी पत्थर की प्रतिमा साकार की गई, लेकिन उसके हाथ से जो प्रतिमा बनीं, वह ऋषि की न होकर दशानन रावण की बनीं। जिसे 10 मुंह 20 आंखे तथा सभी आयुधों से लैस 20 हाथ की विराट मूर्ति बनी। जिस जगह पर यह मूर्ती तराशी गई, वहां दशशाखाओं वाला सिंदी का पेड़ था। इसलिए इसे ऋषि का आशीर्वाद मानकर यहां रावण की पूजा आरम्भ हुई, जो लगातार जारी है। बुधवार को विजया दशमी के अवसर पर यहां रावण की विशेष पूजा होती है। 
 

Created On :   4 Oct 2022 10:18 PM IST

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