- Home
- /
- राज्य
- /
- मध्य प्रदेश
- /
- सतना
- /
- एक्सीलेंस स्कूल में बच्चों ने...
एक्सीलेंस स्कूल में बच्चों ने जनरेट किए क्यूआर कोड्स ताकि दुर्लभ हो रहे औषधीय पेड़ों की जान बचे और पहचान भी बढ़े
डिजिटल डेस्क सतना। पहचान के संकट में तेजी से दुर्लभ हो रहे औषधीय दरख्तों की पहचान बढ़ाने और इन पेड़ों की जान बचाने के उद्ेश्य से यहां एक्सीलेंस स्कूल (गर्वमेंट हायर सेकंडरी स्कूल व्यंकट-वन) के 9 वीं कक्षा के साइंस गु्रप के 40 बच्चों ने क्यूआर कोड (क्विक रिस्पांस कोड) जनरेट किए हैं। इतना ही नहीं महज 14-15 वर्ष के इन्हीं बच्चों के ग्रुप ने प्रायोगिक तौर पर स्कूल कैंपस के नीम, पीपल, बरगद, अशोक, सीताफल , अर्जुन , आम और शीशम के दरख्तों में लेमिनेटेड क्यूआर कोड चस्पा भी कर दिए हैं। एक्सीलेंस स्कूल की बायोलाजी की टीचर डा.अर्चना शुक्ला इस प्रोजेक्ट की सूत्रधार हैं। कहती हैं, काम तो इसी साल जनवरी में शुरु हो गया था लेकिन सुरक्षित तरीके से इन्हें पेड़ों पर कैसे लगाएं ? इसके लिए बजट कहां से लाएं ? दोनों बड़े सवाल थे। डा. अर्चना ने बताया कि हल भी इन्हीं बच्चों ने ही निकाला। उन्होंने इस प्रोजेक्ट की कामयाबी पर सहयोग के लिए प्राचार्य सुशील श्रीवास्तव के प्रति आभार भी जताया।
सिर्फ 15 रुपए का खर्च :----
बच्चों ने महज 15 रुपए के खर्च पर लेमिनेट्ेड क्यूआर कोड बनाए। अब तक एक्सीलेंस के बच्चे 40 क्यूआर कोड जनरेट कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि कोड जनरेट करना कठिन नहीं है लेकिन ऑन लाइन सर्च कर चयनित वृक्ष की हिस्ट्री और प्रापर्टी पर वर्क करना, उसे हिंदी के अलावा इंग्लिश में ट्रांसलेट करना और फिर क्यूआर कोड के साथ उसे लाइनअप करना छोटे बच्चों के लिए आसान नहीं है। इसके लिए साइंस गु्रप के सीनियर स्टूडेंस की एक टेक्निकल टीम बनाई गई थी। टेक्निकल सपोर्ट में 11 वीं कक्षा के देवेश पाठक और 12 वीं के प्रांशु गौतम ने अहम भूमिका निभाई। प्रोजेक्ट टीचर ने बताया कि इस संबंध में अधिकतम जन जागरुकता के लिए 24 अक्टूबर से शहर के प्रमुख पार्कों के पेड़ों में लेमिनेट्ड क्यूआर कोड लगाए जाएंगे।
सबसे पहले चाहत को मिली कामयाबी:----
एक्सीलेंस स्कूल के नौवीं कक्षा के इन 40 बच्चों के गु्रप में शामिल ए सेक्सन के
चाहत मिश्रा सबसे पहले नीम के दरख्त की हिस्ट्री की सॉफ्ट कॉपी तैयार कर क्यूआर कोड जनरेट करने और उसे ऑनलाइन करने में कामयाब रहे। नीम की हिस्ट्री उन्होंने हिंदी के अलावा अंग्रेजी में भी लिंक की है। चाहत के पिता अशुंमान पेशे से सरकारी शिक्षक हैं। मां शकुंतला हाउस वाइफ हैं। मूलत: रीवा जिले के सेमरिया थाना अंतर्गत पड़रिया के रहने वाले चाहत यहां वर्ष 2017 से अपनी बड़ी बहन रचना मिश्रा के साथ रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी दीदी रचना सतना पुलिस में कांस्टेबल हैं। रचना की बड़ी बहन रश्मि भी सीधी पुलिस में कांस्टेबल हैं। दोनों का सेलेक्शन एक साथ हुआ था। एक अन्य बहन क्षमा प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रही हैं। चाहत ने बताया कि वह पढ़ लिखकर आईपीएस बनना चाहते हैं। उन्हें वर्दी बहुत अच्छी लगती है। अभी वह अशोक,जैती (बिटरबीन), अर्जुन, सीताफल, अमरुद, पाइन ट्री, बरगद और पीपल पर क्यूआर कोड के लिए काम कर रहे हैं।
फायदे ही फायदे :---
* डिजिटल तकनीक का बेहतर उपयोग
बेशक, स्कूली बच्चों ने औषधीय पेड़ों के संरक्षण और उनके प्रति समझ पैदा करने के लिए क्यूआर जनरेट कर डिजिटल तकनीक के बेहतर उपयोग की मिसाल पेश की है। प्रोजेक्ट की बायोलॉजी टीचर डा.अर्चना शुक्ला बताती हैं, जब तक हम किसी दरख्त की विशेषताएं नहीं जानते तब तक उसके प्रति हममें लगाव नहीं पैदा होता। मसलन- किसी पेड़ के क्यूआर कोड के लिए जब बच्चे प्रापर्टी की सॉफ्ट कॉपी तैयार करते हैं उसमें उसके वैज्ञानिक नाम, स्थानीय नाम, पहचान के चित्र, फल, बीज, गुठली, जड़, पत्ती, छाल, फूल, अर्क, आइल, पेस्ट, खाद, सूखी लकडिय़ों के उपयोग,जल धारण क्षमता और मिट्टी की उवर्रता में उसके योगदान जैसे अनेक पहलुओं पर भी रिसर्च वर्क करते हैं।
क्या है क्यूआर कोड, कैसे होता है जनरेट :-----
जानकारों के मुताबिक क्यूआर कोड (क्विक रिस्पांस कोड) वास्तव में बार कोड का एडवांस वर्जन है। जिसमें बार कोड के मुकाबले 100 गुना ज्यादा मैमोरी और स्पीड होती है। यह आप्टिकल बार कोड है। जो स्केनिंग के माध्यम से निर्धारित डिजिटल प्लेटफार्म को तत्काल कनेक्ट कर देता है। गूगल के किसी भी सर्च इंजन से क्यूआर कोड जनरेटर पर जाकर उसमें वांछित टेक्स्ट मैसेज पेस्ट कर दिया जाता है। वीडियो भी अपलोड किया जा सकता है। ऐसा करने से क्यूआर कोड जनरेट हो जाता है।
Created On :   11 Oct 2021 1:59 PM IST