महाराष्ट्र में इतिहास की किताब से नहीं हटेगा भिंडरवाले का पाठ, याचिका खारिज

Bhinderwales lesson will not be removed from school book, petition dismissed
महाराष्ट्र में इतिहास की किताब से नहीं हटेगा भिंडरवाले का पाठ, याचिका खारिज
महाराष्ट्र में इतिहास की किताब से नहीं हटेगा भिंडरवाले का पाठ, याचिका खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने गुरुवार को वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें महाराष्ट्र राज्य पाठ्य पुस्तक प्रकाशक मंडल की ओर से छापी गई नौवी कि इतिहास-नागरिक शास्त्र की किताब से जरनैल सिंह भिंडरवाले को आतंकी बताने वाले हिस्से को हटाने की मांग की गई थी। पेशे से वकील अमृतपाल खालसा ने इस विषय पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में भिंडरवाले को संत व शहीद बताया गया था। याचिका में दावा किया गया था कि कक्षा नौवी की इतिहास व नागरिक शास्त्र की किताब में आपरेशन ब्लू स्टार का जिक्र है। इसमे भिंडरवाले को आतंकी के रुप में दर्शाया गया है। याचिका के मुताबिक यह सिख समुदाय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचता है और विद्यार्थियों के कोमल मन को प्रभावित कर वैमनश्य की भावना को भड़काता है। इससे सिख समुदाय में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। सिख समुदाय को देश विदेश में सम्मान की नजरों से देखा जाता है और सिख योद्धा के रुप में जाने जाते हैं। ऐसे में भिंडरवाले को किताब में आंतकी दर्शना उचित नहीं है। इसलिए राज्य पाठ्यपुस्तक प्रकाशक मंडल को सभी किताबों से भिंडरवाले के नाम के आगे लगे आंतकी शब्द हटाने व मंडल को सिख समुदाय से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया जाए। 

न्यायमूर्ति एसी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वीए थोरात ने कहा कि हमने विद्यार्थियों को देश की आतंरिक चुनौतियों के बारे में व्यापक जानकारी देने के लिए कई पाठ शामिल किए गए हैं। जिसमें बताया गया है कि नक्सलवाद व अलगाववाद, सांप्रदायिकता व क्षेत्रवाद जैसे मुद्दे कैसे देश के लिए आंतरिक चुनौती बनते हैं। पाठ्य-पुस्तक प्रसारक मंडल ने व्यापक रिसर्च के बाद व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषणों और अन्य लेखकों की किताबों का अध्ययन करने के बात किताब प्रकाशित की है। यह याचिका आधारहीन है। इस याचिका को सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं माना जा सकता है।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि किताबों को छापनेवाली संस्था एक विशेषज्ञ संस्था है। इस लिए उसने काफी रिसर्च व शोध के बाद किताब छापी है। इस लिहाज से उनके मत का सम्मान होना चाहिए। किताब में सिर्फ स्वर्ण मंदिर में हुई घटना का संदर्भ दिया गया है। खंडपीठ ने सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वकील की दलीलों को स्वीकार करते हुए याचिका को आधारहिन मानते हुए उसे खारिज कर दिया। 
 

Created On :   18 April 2019 9:21 PM IST

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