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डिफाल्ट जमानत की हकदार नहीं हैं भारद्वाज, हाईकोर्ट में राज्य सरकार का दावा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में दावा किया है कि भीमा-कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में सुधा भारद्वाज डिफाल्ट जमानत पाने की हकदार नहीं है। आम तौर पर जब जांच एजेंसी तय समय में आरोपपत्र दायर नहीं कर पाती है तो आरोपी डिफाल्ट जमानत का दावा करता है। राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कोर्ट में दावा किया कि पुणे सत्र न्यायालय द्वारा साल 2018 के पुणे एल्गार परिषद मामले से जुड़े आरोपपत्र का संज्ञान लेने से आरोपी (भराद्वाज) को कोई हानि नहीं हुई है। इसलिए आरोपी डिफाल्ट जमानत पाने का हकदार नहीं है।
इससे पहले आरोपी के वकील युग चौधरी ने दावा किया था कि उनके मुवक्किल पर इस मामले में अवैध गतिविधि प्रतिबंधक कानून (यूएपीए) के तहत आरोप लगे हैं। इसलिए विशेष न्यायालय में बैठने वाले विशेष न्यायाधीश ही इस प्रकरण से जुड़े आरोपपत्र का संज्ञान ले सकते हैं। उन्होंने दावा किया था कि पुणे के सत्र न्यायाधीश केडी वादने ने इस मामले का संज्ञान लिया था। जिन्होंने खुद को स्वयं विशेष न्यायाधीश मान लिया था जबकि हकीकत में वे विशेष न्यायाधीश थे नहीं। इसलिए मेरी मुवक्किल डिफाल्ट जमानत पाने की हकदार है।
इस दलील पर कुंभकोणी ने न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने कहा कि मामले का संज्ञान किसी ऐसे शख्स ने लिया है जिसका क्षेत्राधिकार नहीं था। सिर्फ इस आधार पर कोई डिफाल्ट जमानत पाने का हकदार नहीं हो जाता। इस मामले में विशेष अदालत की बजाय सत्र न्यायालय ने संज्ञान लिया है। इसे अनियमितता कहा जा सकता अवैधता नहीं। लिहाजा इस मामले को ‘राई का पहाड’ न बनाया जाए। इस मामले में आरोपी को कोई हानि नहीं हुई है। इसलिए आरोपी डिफाल्ट जमानत पाने की हकदार नहीं है।
वहीं राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि सारे सत्र न्यायाधीश एक समान होते हैं सिर्फ एक अधिसूचना उन्हें भिन्न बना देती है। उन्होंने कहा कि मामले में 90 दिन में आरोपपत्र दायर हुआ है। अब किसने इसका संज्ञान लिया है। इस आधार पर जमानत नहीं मांगी जा सकती है। खंडपीठ ने अब इस मामले की सुनवाई दो अगस्त 2021 को रखी है।
Created On :   23 July 2021 9:54 PM IST