कार्यक्षेत्र के बाहर के साहूकारी कर्ज भी हुए माफ , राज्य मंत्रिमंडल का फैसला 

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कार्यक्षेत्र के बाहर के साहूकारी कर्ज भी हुए माफ , राज्य मंत्रिमंडल का फैसला 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। विदर्भ और मराठवाड़ा के लाइसेंस धारक साहूकारों द्वारा लाइसेंस क्षेत्र के दायरे के बाहर के किसानों को दिए गए कर्ज को माफ करने के फैसले को राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है। कर्ज की यह राशि सरकार साहूकारों को देगी। मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार लाइसेंस धारक साहूकारों का लाइसेंस क्षेत्र के बाहर के किसानों को दिया गया 30 नवंबर 2014 तक का कर्ज वैध माना जाएगा। इससे पहले राज्य सरकार ने अप्रैल 2015 में विभिन्न प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को राहत देने के लिए सरकार ने विदर्भ और मराठवाड़ा के किसानों द्वारा साहूकारों से लिए गए कर्ज को माफ करने का फैसला लिया था। लेकिन इस योजना के 10 अप्रैल 2015 के शासनादेश की एक शर्त के कारण लाइसेंसधारक साहूकार गैर लाइसेंस वाले क्षेत्र के किसानों को दिए कर्ज की माफी के पात्र नहीं हो सके थे। इससे तहसील और जिला स्तरीय समिति ने कर्जदार किसानों के आवेदन अस्वीकार कर दिए थे। ऐसे कर्जदार किसानों को साहूकारी कर्ज माफी योजना का लाभ देने के लिए कार्यक्षेत्र की शर्त को एक बार शिथिल करने का प्रस्ताव पेश करने के निर्देश मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दिए थे। अब साहूकारों द्वारा कार्यक्षेत्र के बाहर के व्यक्तियों को दिया गया कर्ज माफी के लिए पात्र हो सकेगा। साल 2015 के फैसले के अनुसार 19 जिलों में जिलाधिकारियों की अध्यक्षता वाली समिति ने 31 मार्च 2018 तक मूलधन और ब्याज की राशि मिलाकर कुल 66 करोड़ 56 लाख 38 हजार रुपए का कर्ज माफ किया है। यह राशि  किसानों को कर्ज देने वाले 1393 साहूकारों को वितरित की जा चुकी है।

हमें विकास और पर्यावरण दोनों चाहिएः हाईकोर्ट

पर्यावरण की क्षति का क्या आर्थिक आकलन किया जा सकता है। पर्यावरण के विषय पर भावुक होने की बजाय इस पहलू पर भी विचार होना चाहिए। बांबे हाईकोर्ट ने सोमवार को महानगर के आरे इलाके में मेट्रो कारशेड के लिए 26 सौ पेड़ काटे जाने के विरोध में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह बात कही।   मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने कहा कि हमे विकास और पर्यावरण दोनों चाहिए। विकास एवं पर्यावरण के विषय पर पूरी दुनिया में बहस हो रही है। इसलिए हमे विकास की विषमता व पर्यावरण के बीच तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ेगा। कई वैज्ञानिक व पर्यावरणविद् इस विषय पर शोध कर रहे हैं कि पर्यावरण की क्षति का मूल्यांकन किस तरह से किया जाए। क्या पर्यावरण की क्षति का आर्थिक आंकलन किया जा सकता है। पर्यावरण के नुकसान की आर्थिक कीमत क्या है? खंडपीठ ने कहा कि इस विषय पर हमने कुछ शोध सामाग्री भी हासिल की है। खंडपीठ ने इस सामाग्री को मामले से जुड़े पक्षकारों के वकीलों को सौपा जिससे वे इस संबंध में कोर्ट में अपनी बात रख सके। खंडपीठ ने कहा कि वे पेड़ो को काटने से जुड़ी सभी याचिकाओं पर 17 सितंबर को सुनवाई करेंगे। 

Created On :   9 Sept 2019 7:37 PM IST

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