धारा 370 : संघ ने 17 साल पहले ही की थी पेशकश

Article 370 rss had offered 17 year ago
धारा 370 : संघ ने 17 साल पहले ही की थी पेशकश
धारा 370 : संघ ने 17 साल पहले ही की थी पेशकश

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए निर्णय की बुनियाद 17 साल पहले ही रखी जा चुकी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बाकायदा प्रस्ताव पास कर जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाने की पेशकश की थी। प्रस्ताव को लेकर भी काफी अध्ययन किया गया था। मोदी सरकार ने इस प्रस्ताव पर अमल करके संघ परिवार को खुशी दी है। राज्य की राजनीति के लिहाज से देखा जाए तो कश्मीर का मामला यहां प्रभावी रहा है। चुनावों में यह प्रभाव दिख सकता है। 

पहले ही अध्ययन कराया था संघ ने

संघ विचारों से जुड़े पदाधिकारी के अनुसार, 2002 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की हरियाणा के कुरुक्षेत्र में बैठक हुई थी। संघ की प्रतिनिधि सभा प्रतिवर्ष होती है। 3 दिन तक चलती है। कुरुक्षेत्र में हुई सभा भी 3 दिन तक चली थी। उसमें विविध विषयों पर प्रस्ताव पास हुए थे। खासकर सीमा सुरक्षा व राष्ट्रीयता के विषय पर जोर दिया गया था, लेकिन सबसे पहला प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर के बंटवारे को लेकर पास हुआ था। बैठक में कहा गया था कि धारा 370 के प्रावधानों से जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा मिल रहा है। स्थानीय सरकार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख विभाग के निवासियों के साथ भेदभाव कर रही है। जम्मू व लद्दाख के निवासी अलग राज्य चाहते हैं। लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाने की मांग पर भी प्रतिनिधि सभा ने सहमति दी थी। प्रस्ताव तैयार करने के एक वर्ष पहले संघ ने इस मामले को लेकर विशेष अध्ययन कराया था। जस्टिस जीतेंद्र वीर गुप्ता की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम गठित की थी। कमेटी ने भी लद्दाख के साथ भेदभाव की पुष्टि की थी। 

व्यवहार का नया दौर 

संघ का यह प्रस्ताव तब पास हुआ था, जब केंद्र में अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार थी। संघ उस स्थिति को अनुकूल मान रहा था, लेकिन बहुमत के अभाव में वाजपेयी सरकार संघ के प्रस्ताव पर चर्चा तक नहीं कर पाई। दो दर्जन मित्रदलों के साथ सरकार गठबंधन धर्म निभाती रही। संघ विचारों से जुड़े जाने-माने विचारक दिलीप देवधर कहते हैं कि संघ ने शुरुआत से ही कश्मीर में दोहरी नागरिकता का विरोध किया है। संघ की प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव भी जनमानस की अभिव्यक्ति माना जा सकता है। देवधर यह भी कहते हैं कि तीन तलाक के बाद धारा 370 के मामले में केंद्र सरकार का निर्णय मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए बड़ा राहत भरा साबित होगा। कश्मीर में बेटी-रोटी के व्यवहार का नया दौर शुरू होगा। हिंदू मुस्लिम की राजनीति भी किनारे लगेगी। कश्मीर में पर्यटन, हर्टिकल्चर व कास्मेटिक उद्योग बढ़ेगा। 

दोहरी नागरिकता का सदैव विरोध

महाराष्ट्र की राजनीति के लिहाज से देखा जाए तो यहां काफी प्रभाव पड़ेगा। मराठा समाज आंदोलन से जुड़े एक नेता के अनुसार, शिवाजी महाराज को माननेवालों ने सदैव कश्मीर में दोहरी नागरिकता का विरोध किया है। शिवसेना व अन्य दल के कार्यकर्ता इस मामले पर जनसमर्थन और बढ़ाने का प्रयास करेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि दलित बहुजन आंदोलन की राजनीति से जुड़े लोग भी इस मामले में राजनीतिक हित साधने का प्रयास करेंगे। डॉ.बाबासाहब आंबेडकर ने धारा 370 का विरोध किया था। नागपुर विश्वविद्यालय में आंबेडकर विचारधारा के प्रमुख रहे डॉ.भाऊ लोखंडे इस मामले पर थोड़ी अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं-इस मामले में बाबासाहब आंबेडकर का जिक्र करना राजनीतिक भी हो सकता है। आंबेडकर की कई बातों पर अब तक की सरकारों ने अमल नहीं किया। वे यह भी कहते हैं कि कश्मीर में बदलाव का परिणाम यह नहीं होना चाहिए कि कश्मीरियत को ही ठेस पहुंच जाए। 

Created On :   6 Aug 2019 5:49 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story