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शायद ऐसी ही होती है भूख : तड़प उठी बच्ची और बेबस पिता कंधे पर थपकी देता रहा
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। सलीम सिद्दीक़ी का एक शेर इन मजदूरों की बेबसी को बयां कर रहा है।
अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े,
मुफलिसी तो भरी बरसात में बे-घर हुई है....
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काेरोना के कारण पूरे देश में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला तबका मजदूर वर्ग है। कई मजदूर परिवार दूसरे शहरों में अटक गए हैं। यह घर पहुंचने के लिए पैदल ही निकल पड़े थे। इसी तरह एक मजदूर अपनी 2 साल की बेटी को कंधे पर ले जा रहा था। उसके पास खाने को कुछ नहीं था। बेटी काव्या भूख से लड़ रही थी। अचानक उसकी सहन शक्ति खत्म हो गई और वह चीखने लगी। पिता की थपकी से भी वह शांत नहीं हो पा रही थी। वहां मौजूद एक पुलिसकर्मी ने काव्या को बिस्किट का पैकेट दिया, तो जैसे उसकी जान में जान आई।
मजदूरी करता है योगेंद्र
कोराड़ी से लौट रहे योगेंद्र कुमार ने बताया कि उसे अपने परिवार के साथ बालाघाट जाना था। सभी सुबह निकले थेे। साथ में 10 लोग और भी थे। जैसे-जैसे साधन मिलता गया, परिवार वालों को एक-एक कर भेजता गया। अंत में वह और उसकी दो साल की बेटी काव्या रह गई। पैदल चलते-चलते वह जरीपटका पुलिस स्टेशन के पास पहुंचा था कि भूख लगने के कारण बेटी की हालत खराब हो गई। योगेंद्र मजदूरी करता है। कहते हैं भूखा पेट, खाली जेब इंसान को जीवन में बहुत कुछ सिखा जाता है। शायद यही जीवन है।
Created On :   31 March 2020 6:00 PM IST