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आज भी रहस्यमयी है नीमी के श्रीगणेश मंदिर की 300 पुरानी पाषाण प्रतिमा
डिजिटल डेस्क सतना। जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर बाबूपुर-नीमी में अब से तकरीबन 300 वर्ष पूर्व स्थापित बुद्धि-समृद्धि के आदिदेव श्रीगणेश की ऐसी प्रतिमा दूर-दूर तक दुर्लभ है। इस मंदिर में सातवीं पीढ़ी के पुजारी केशव कांत तिवारी प्राचीन पाषाण प्रतिमा से जुड़े कई असुलझे रहस्यों की ओर इशारा करते हैं। एक ही शिला पर निर्मित गजानन की मूर्ति पद्मासन पर नहीं है। प्राय: विध्नहर्ता की चर्तुभुजी मूर्तियां वरदमुद्रा में होती हैं लेकिन इस मूर्ति में ऐसा भी नहीं है। उन्होंने बताया कि भुजाएं श्रीगणेश की सर्वव्यापकता की प्रतीक कही गई हैं।
अनूठी क्यों है प्राचीन प्रतिमा :——-
उन्होंने दिखाया कि प्रतिमा की दाईं भुजा में परशु तो है लेकिन बाईं भुजा में गदा इस प्रतिमा को और भी अनूठा बना देता है। पुजारी केशव कांत के मुताबिक देवों के देव महादेव के पुत्र श्रीगणेश की अनेक प्रतिमाओं में बतौर शस्त्र पाश, अंकुश (परशु) मिलते हैं। कहीं -कहीं तलवार भी देखने को मिलती है,मगर गदाधारी गणेश की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन यहीं नीमी -बाबपुर में ही होते हैं। 4 फीट ऊंची चर्तुभुजी प्रतिमा बैठकी की मुद्रा में है।
रहस्यमयी है गोलाकार सूंड़ :——
नीमी गांव के ही एक भक्त हनुमान पांडेय भइया भी बताते हैं कि उन्होंने इससे पहले ऐसी गोलाकार सूंड़ के दर्शन कहीं और नहीं किए हैं। उल्लेखनीय है, प्राय: श्रीगणेश की ज्यादातर प्रतिमाएं या तो वामांगी होती हैं या फिर दक्षिण मुखी। दोनों का अपने-अपने अर्थ और महत्व हैं। विध्नहर्ता की सूंड़ वस्तुत: उनके महाबुधत्व की प्रतीक मानी जाती है। जनविश्वास है कि सुख- समृद्धि एवं प्रसिद्धि के लिए श्रद्धालु श्रीगणेश की दक्षिणमुखी एवं शत्रु पर विजय की प्राप्ति के लिए वामांगी सूंड़ की गजानन प्रतिमा का पूजन किया जाता है, किंतु नीमी में विराजी श्रीगणेश की प्रतिमा में गोलाकार सूंड़ इस प्राचीन मूर्ति के रहस्य को और भी बढ़ा देती है।
ऐसे हुई थी स्थापना :————-
तीन सौ साल पहले उचेहरा से आए एक कायस्थ परिवार ने नीमी में इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराते हुए पूर्वमुखी मंदिर का निर्माण कराया था। इसी परिवार की सातवीं पीढ़ी के 72 वर्षीय वंशज और सेवानिवृत्त शिक्षक रामबहादुर खरे के मुताबिक उनके पूर्वज वैद्य थे। कृपालपुर के इलाकेदारों ने पवाई में गांव देकर उन्हें नीमी में बसाया था । वर्ष में दो बार मकर संक्राति और हरितालिका तीज के मौके पर गणेश मंदिर में मेला लगाता है। श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है। दूर-दूर से भक्त अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। सच्चे भाव से किए गए सभी मनोरथ पूरे होते हैं। मनौती पूरी होने पर श्रद्धालु कन्या भोज के साथ भंडारों का भी आयोजन करते हैं।
Created On :   14 Sept 2021 2:29 PM IST