न खुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम, नेतागिरी के चक्कर में गई नौकरी, टिकट भी नहीं मिला
- छोड़ी आईपीएस की नौकरी, नहीं मिला टिकट
- तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी को नहीं मिला भाव
- नेहरा को कांग्रेस-भाजपा दोनों से मिली मायूसी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, अजीत कुमार। अरविंद केजरीवाल, यशवंत सिन्हा, अजीत जोगी सरीखे अनगिनत नौकरशाह वीआरएस लेकर राजनीति में आए और फिर छा गए। लेकिन देश में अफसरशाही छोड़ने के बाद राजनीतक दलों का टिकट पाने में नाकाम रहने वाले नौकरशाहों की फेहरिस्त भी लंबी है। “न खुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम, न इधर के रहे न उधर के हुए” की तर्ज पर कई नौकरशाहों ने नेतागिरी के चक्कर में नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन जब टिकट देने की बारी आई तो सियासी पार्टियों ने उनसे मुंह मोड़ लिया। इसके ताजा उदाहरण युवा आईएएस अभिषेक सिंह और आईपीएस आनंद मिश्रा हैं, जिन्होंने भाजपा का टिकट पाने के चक्कर में रूतबे वाली अपनी नौकरी छोड़ दी। उत्तरप्रदेश कैडर के 2011 बैच के आईएएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें उम्मीद थी कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी उन्हें जौनपुर से लोकसभा का टिकट देगी। लेकिन भाजपा ने उनकी उम्मीदों पर तुषारापात करते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह को जौनपुर से उम्मीदवार बना दिया। बता दें कि अभिषेक सिंह की पत्नी दुर्गा शक्ति नागपाल बांदा की जिलाधिकारी हैं।
छोड़ी आईपीएस की नौकरी, नहीं मिला टिकट
असम के ‘सिंघम’ के रूप में चर्चित आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा की कहानी भी इससे जुदा नहीं है। अपने गृह जिले बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ने की आस में उन्होंने गत दिसंबर में आईपीएस की नौकरी छोड़ दी थी। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की जगह बक्सर से पार्टी उम्मीदवार बनाने का आश्वासन दिया था। लेकिन जब उम्मीदवारों की घोषणा हुई तो बक्सर सीट से मिथिलेश तिवारी को उम्मीदवार बना दिया गया। सांसद बनने का सपना चकनाचूर होने के बाद आनंद मिश्रा ने कहा, “मैं बक्सर के लोगों की सेवा करने आया हूं और हमेशा उनके बीच ही रहूंगा। यहां के लिए काम करता रहूंगा”।
‘बेटिकट’ हुए तो कथावाचक बने पूर्व डीजीपी
बक्सर सीट ने एक नहीं बल्कि दो-दो आईपीएस अधिकारियों का सपना तोड़ा है। वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के पहले बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने भी वीआरएस लेकर इस उम्मीद में जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी कि उन्हें बक्सर से विधानसभा चुनाव का टिकट मिलेगा और वे ‘माननीय’ बन जाएंगे। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आश्वासन भी काम नहीं आया और बक्सर सीट गठबंधन में भाजपा के खाते में चली गई। अब भगवा चोलाधारी पांडेय जी कथावाचक की भूमिका में हैं।
पार्टी में विरोध के चलते टिकट होल्ड
ओडिशा में आईएएस अधिकारी रहे वी के पांडियन भी वर्ष 2023 में वीआरएस लेकर बीजद में शामिल हो गए थे। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नाक के बाल रहे पांडियन को पटनायक का उत्तराधिकारी भी माना जाता है। उम्मीद थी कि 2024 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में वे बीजद के उम्मीदवार होंगे। लेकिन माना जाता है कि सौम्य रंजन पटनायक जैसे बीजद के वरिष्ठ नेताओं के विरोध के चलते मुख्यमंत्री ने फिलहाल उन्हें ‘चुनावी खेला’ से बाहर रखा है।
तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी को नहीं मिला भाव
तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी करूणा सागर ने भी राजनीति में कदमताल करने के लिए कुछ महीने पहले राजद का दामन थामा है। बिहार के मूल निवासी सागर इस आस में राजद में शामिल हुए थे कि उन्हें जहानाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया जाएगा। लेकिन उन्हें भी बेटिकट होना पड़ा। कुछ यही हाल बिहार के डीजीपी रहे डीपी ओझा का भी हुआ था। रिटायरमेंट से दो माह पहले आईपीएस की नौकरी छोड़ने वाले ओझा को भी नीतीश कुमार की पार्टी से बेगुसराय से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिरकार उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और अपनी जमानत भी गंवा बैठे।
‘बेटिकट’ निशा बांगरे भी रही चर्चा में
इसके पहले चुनाव लड़ने की मंशा से मध्यप्रदेश में एसडीएम पद से इस्तीफा देने वाली पूर्व प्रशासनिक अधिकारी निशा बांगरे भी खूब चर्चा में रही। बंागरे की बैतूल जिले की आमला विधानसभा सीट से दावेदारी थी, लेकिन कांग्रेस ने इस सीट से बांगरे की जगह मनोज मालवे को टिकट देकर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। नौकरी के साथ टिकट से भी हाथ धोने वाली निशा अब बेमन से संगठन को मजबूत करने में जुटी हैं।
नेहरा को कांग्रेस-भाजपा दोनों से मिली मायूसी
2023 में राजस्थान में भी माननीय विधायक बनने के लिए कई अफसरों ने नौकरी छोड़ी थी, लेकिन वे बेटिकट रहे। इसमें आईएएस अंतर सिंह नेहरा, आईपीएस हरिप्रसाद शर्मा, आईएएस जगरूप सिंह यादव, आईपीएस जसवंत संपतराम का नाम प्रमुखता से शामिल है। आईपीएस हरिप्रसाद प्रदेश की फुलेरा सीट से कांग्रेस का टिकट चाहते थे तो जगरूप यादव कांग्रेस से ही अलवर की एक सीट चाहते थे। सेवानिवृत्त संपतराम भाजपा टिकट के तलबगार थे तो नेहरा ने टिकट के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों का चक्कर काटा, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
Created On :   31 March 2024 4:36 PM IST