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जागरूकता, स्थानीय समुदाय को विश्वास में ले और एजेंसियों के साथ मिलकर काम करने से बच सकता है पर्यावरण
डिजिटल डेस्क, नवी मुंबई. जैव विविधताओं की उपेक्षा कर हो रहे विषम विकास पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि विकास परियोजनाओं के कारण पर्यावरण खराब हो रहा है और जैविविधता नष्ट हो रही है। इसे रोकने के लिए जागरूकता फैलाने, कोई भी कदम उठाने से पहले स्थानीय समुदाय को विश्वास में लेने और संबंधित एजेंसियों को मिलकर काम करने की जरूरत है।
मैंग्रोव समुद्र तटीय इलाके में पेड़ों और झाड़ियों का समूह है। मैंग्रोव पेड़ों की लगभग 80 प्रजातियां हैं। इनका दलदली इलाका समुद्र के पानी को तटीय श्रेत्र में घुसने से रोकता है। ये सूनामी जैसी आपदा को रोकने का काम करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक आपदा से बचाने और जैव विविधता के संरक्षण के लिए
मैंग्रोव जरूरी हैं। मुंबई और नवी मुंबई में छह वैटलैंड हैं। इनमें हर साल करीब पांच लाख प्रवासी पंछी आते हैं।
यह निष्कर्ष नवी मुंबई के बेलापुर में आयोजित एक कार्यक्रम में गहन चर्चा के दौरान सामने आया। नेट कनेक्ट एनजीओ के डायरेक्टर बीएन कुमार ने प्रवासी पक्षियों और वैटलैंड के नुकसान का मुद्दा रखा। इस पर चर्चा के दौरान पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि नवी मुंबई एयरपोर्ट, जेएनपीटी तथा नवी मुंबई एसईजेड और न्वाहा-शेवा सी-लिंक जैसी परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर जैव विविधता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। चर्चा में इसके समाधान और पर्यावरण को नुकसान की शिकायत के लिए हेल्पलाइन नंबर पर जोर दिया गया।
कार्यक्रम में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सचिव किशोर रिठे, मैंग्रोव जैव वैज्ञानिक मृगांक प्रभु, सागरशक्ति के नंदकुमार पवार, खारघर वैटलैंड फोरम की ज्योति नाडकर्णी, साधना शुक्ला, नरेशचंद्र सिंह, मैंग्रोव वन अधिकारी मानस मांजरेकर, कोकण विभागीय उपायुक्त डॉ. गणेश धुमाल, एनएमपीएसएस के अध्यक्ष दशरथ भगत, पर्यावरण प्रेमी प्रमोद डबरासे, पर्यावरण प्रेमी आबा रणवरे, प्रकृति प्रेमी साधना शुक्ला, हनुमान भोईर, वैभव राघव, रामनाथ यादव और प्रमोद डबरासे मौजूद थे।
130 गांवों में मैंग्रोव विकास आजीविका योजना
मैंग्रोव सेल के वन अधिकारी मानस मांजरेकर ने कहा कि मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर)-कोकण में दो लाख हेक्टर सरकारी और 10 हजार हेक्टर निजी भूमि पर मैंग्रोव हैं। स्थानीय लोग इन्हें बचाने का प्रयास कर रहे हैं। मैंग्रोव को बचाने में वन विभाग की सीधी भूमिका नहीं है। वैसे वन विभाग 2017 से मैंग्रोव सुरक्षा और विकास आजीविका योजना चला रहा है। इसका उद्देश्य उन मछुआरों और आदिवासियों के जरिए मैंग्रोव और जैवविविधताओं को बचाने का प्रयास करना है, जो उनके बीच जीते और काम करते हैं।
सीआरजेड का क्षेत्र बेचने से होगी तबाही
सागरशक्ति एनजीओ के नंदकुमार पवार ने कहा कि मैंग्रोव की वजह से भांडुप में 350 एकड़ में कीचड़ जमा हो गया है। इससे मछुआरों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। सिडको सिर्फ जमीन बेच रही है, जिससे 20 गांवों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है। सरकार को सीआरजेड का क्षेत्र नहीं बेचना चाहिए क्योंकि इससे होनेवाली तबाही को रोकना मुश्किल होगा।
सरकार ही पर्यावरण का नुकसान कर रही
बीएनएचएस के सचिव आनंद रिठे ने कहा कि नवी मुंबई एयरपोर्ट के निर्माण के लिए बनी फीजिबल रिपोर्ट में एलाइनमेंट का सुझाव दिया गया था क्योंकि वहां बड़े पैमाने पर पहाड़, नदी, मैंग्रोव जैसे जैव विविधता केंद्र बर्बाद हो रहे थे। इसे विमानन मंत्रालय ने नकार दिया और वैकल्पिक तौर पर 160 करोड़ के फंड से मैंग्रोव फाउंडेशन की स्थापना कर दी। एयरपोर्ट, सीलिंक और बड़ी परियोजनाओं के अधिकांश मामलों में ऐसा ही हुआ है।
Created On :   15 May 2023 8:57 PM IST