रोचक बात: पति के बाद पत्नी ने भी लहराया लोकसभा क्षेत्र में परचम , बनाया अलग मुकाम

  • विदर्भ में विविध आंदोलनों में भी रही है सक्रिय भूमिका
  • अब तक क्षेत्र से 10 लोकसभा सदस्य चुनी गई
  • 3 सदस्य,पति की मृत्यु के बाद उपचुनाव में जीती थी

रघुनाथसिंह लोधी,नागपुर । विदर्भ में महिलाएं सामाजिक ही नहीं राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय रही है। ऐसे भी कई मौके आए हैं कि यहां विविध आंदोलनों का नेतृत्व महिलाओं ने किया है। फिलहाल यहां दो चरण में लोकसभा चुनाव का वातावरण गर्माया है। पहले चरण में 19 व दूसरे चरण 26 अप्रैल को मतदान होगा। प्रसंगवश यह भी जान लें कि इस क्षेत्र में कई दिग्गजों की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए उनके घर से महिला प्रतिनिधि सामने आती रही है।

अब तक क्षेत्र से 10 लोकसभा सदस्य चुनी गई इनमें से 3 सदस्य,पति की मृत्यु के बाद उपचुनाव में जीती थी। सबसे पहले बात करते हैं चंद्रपुर लोकसभा क्षेत्र की। सांसद बालू धानोरकर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी प्रतिभा धानोरकर को कांग्रेस ने इस बार उम्मीदवार बनाया है। कह सकते हैं कि प्रतिभा अपने पति की सीट को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। यह वही क्षेत्र हैं जहां से मारोतराव कन्नमवार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। 25 रुपये महीने की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए कन्नमवार का काफी राजनीतिक प्रभाव था। 1962 में चंद्रपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव हुआ था। निर्दलीय सांसद लाल शामशाह के इस्तीफे के बाद क्षेत्र में राजनीतिक नेतृत्व की कमी महसूस होने लगी थी। 1 वर्ष 4 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद कन्नमवार की भी मृत्यु हो गई थी। ऐसे में पति की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए गोपिका कन्नमवार ने उपचुनाव लड़ा। हिंगणघाट में जन्मी गोपिका सामान्य भोजनालय चलाती थी।

राजनीतिक अनुभव नहीं होने के बाद भी उन्होंने उपचुनाव जीता था। गोपिका राज्यसभा सदस्य भी चुनी गई। देश के पहले कृषिमंत्री पंजाबराव देशमुख की विरासत को बचाने का प्रयास उनकी पत्नी विमल देशमुख ने किया। 1962 में पंजाबराव देशमुख की मृत्यु के बाद अमरावती में लोकसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी विमल देशमुख जीती। अमरावती में अब तक 4 महिला सांसद चुनी गई हैं। विमल पहली महिला सांसद थी। भंडारा लोकसभा क्षेत्र में 1952 में भाऊराव बोरकर पहले सांसद चुने गए थे। 1955 में उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में अनुसया बोरकर चुनाव जीती। कांग्रेस उम्मीदवार अनुसया बोरकर ने उस उपचुनाव में बाबासाहब आंबेडकर को पराजित किया था। अनुसया, भाऊराव बोरकर की पत्नी थी। अनुसया तत्कालीन नागपुर प्रांतीय कांग्रेस की सदस्य थी। लेकिन उन्हें अधिक राजनीतिक अनुभव नहीं था। लगभग ऐसी ही स्थिति चंद्रपुर में गोपिका कन्नमवार व अमरावती में विमल देशमुख को लेकर थी। लिहाजा कांग्रेस पर तंज कसा जाता रहा है कि उसने न केवल आंबेडकर को जानबूझकर पराजित किया बल्कि चुनाव लड़ने लड़ाने के लिए कार्यकर्ताओं को महत्व देने के बजाय परिवार व पत्नी को मौका दिया गया।


Created On :   14 April 2024 6:06 PM IST

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