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चामुंडी एक्सप्लोसिव: पीड़ित तड़पते रहे, 3 थाने सीमा विवाद में उलझे, इसलिए डेढ़ घंटे बाद पहुंची पुलिस
- हादसे की चपेट में आए 3 घायलों को 6 घंटे बाद अस्पताल लेकर पहुंची एंबुलेंस
- तब उपचार शुरू हुआ
- 9 मौतों का गुनहगार कौन? भास्कर पड़ताल में उजागर हुईं कई खामियां
- पुलिस प्रशासन और भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ीं जिंदगियां
डिजिटल डेस्क, नागपुर. चामुंडी एक्सप्लोसिव हादसे में 9 लोगों की जिंदगी खत्म हो गई। इसे लोग हादसे में हुई मौत समझकर कुछ दिन में भूल जाएंगे, मगर शायद ही यह किसी को पता चले कि कंपनी की लापरवाही के अलावा पुलिस, प्रशासन और भ्रष्ट व्यवस्था भी इन मौतों के लिए दोषी हैं। हादसे के बाद भी एक के बाद एक लापरवाही होती रही। शुरुआती एंबुलेंस ढाई घंटे और बाद में तीन अन्य पीड़ितों को लेकर साढ़े छह घंटे बाद अस्पताल पहुंची। हादसे के बाद यदि समय पर सभी जिम्मेदारी से काम करते तो कुछ जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। आग से झुलसने वालों की पीड़ा के एक-एक मिनट का अंदाज लगाना मुश्किल है। खासतौर से तब जब वह 70 से 80 प्रतिशत तक जल गए हों। एक बार सोचकर देखिए, ऐसे पीड़ित एक-एक मिनट तड़प-तड़प पर कैसे निकाल रहे होंगे और सरकारी व्यवस्थाएं इनके जीवन से खेल रही थीं। दैनिक भास्कर ने इस हादसे की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई, जो शायद ही जांच रिपोर्ट में आए।
हादसे के बाद तीन थानों के बीच घूमता रहा मामला : धामना स्थित चामुंडी एक्सप्लोसिव कंपनी में गुरुवार 13 जून को करीब 1 बजे हुए हादसे की पहली खबर वाड़ी पुलिस थाने को दी गई। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पुलिस ने मौके पर जाने से इनकार करते हुए कहा कि यह हादसा हमारे थाने क्षेत्र का नहीं है। यह कलमेश्वर थाने का है। इसके बाद कलमेश्वर थाने को करीब डेढ़ बजे सूचना दी गई। वहां की पुलिस ने पूरा मामला सुनने के बाद मौके पर जाने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मामला मेरे क्षेत्र का नहीं है, यह हिंगना थाने का है। फिर हिंगना थाने को सूचना दी गई, जहां से पुलिस करीब एक से डेढ़ घंटे बाद मौके पर पहुंची।
15 मिनट बाद नंबर लगा
इस हादसे के बाद 108 नंबर एंबुलेंस के लिए फोन किया गया, जो करीब 15 मिनट तक लगा ही नहीं। हर बार बिजी ही बताता रहा है। इसके बाद जब यह नंबर लगा तो करीब नागपुर में कनेक्ट होने के 10 मिनट बाद रिस्पांस आना शुरू हुआ।
3 एंबुलेंस चालक 1000 रुपए के लालच में जिंदगियों से खेलते रहे
शुरुआत में सात एंबुलेंस पीड़ितों को लेकर नागपुर के निजी दंदे हॉस्पिटल में देर-सवेर रवाना हुईं। तीन एंबुलेंस बाद में आईं, जो पीड़ितों को लेकर मेडिकल पहुंचीं। यहां करीब आधे घंटे बाद पता चला कि मरीजों को दंदे हॉस्पिटल पहुंचाना है। मगर मरीजों को लाने पर 1000 रुपए मिलने की लालच में एंबुलेंस चालक उन्हें सेनदासगुप्ता हॉस्पिटल में ले गए। यहां इलाज शुरू करने के पहले अस्पताल ने पैसे जमा करने को कहा। पैसे जमा नहीं होने पर इलाज ही शुरू नहीं किया गया। फिर पैसे जमा करने के लिए कंपनी के एक कर्मी को बुलाया गया। कर्मी वहां पहुंचा तो एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े लोगों ने उसे पीट दिया, जिस पर हंगामा चलता रहा। इस दौरान मरीज एंबुलेंस में ही तड़प रहे थे। यहां हुआ हंगामा निपटा. तब कहीं जाकर मरीजों को दंदे हॉस्पिटल में करीब 7.30 बजे ले जाया गया। इस दौरान तीन में से एक पीड़ित शीतल की मौत हो चुकी थी और दो अन्य पीड़ित श्रद्धा और प्रमोद की मौत दो दिन बाद हो गई।
प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने कई विभागों के साथ दौरा किया - चामुंडी हादसे मामले में रविवार को महाराष्ट्र शासन की प्रिंसिपल सेक्रेटरी विनीता वैद सिंगल ने कई विभागों की टीम के साथ धामना स्थित कंपनी का निरीक्षण किया, जिसमें कंपनी को लाइसेंस देने वाले ‘पेसो’ फायर बिग्रेडे, फायर फाइटिंग, ईएसअाईसी आदि विभागों के अधिकारी मौजूद थे। घंटों चले इस दौर में यह जानने का प्रयास किया गया कि आखिर हादसा कैसे हुआ? दैनिक भास्कर ने इस मामले में श्रीमती सिंगल से बात की तो उन्होंने बताया कि हम यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर हादसा कैसे हुआ? इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं? क्या पीड़ितों को शासन और कंपनी की तरफ से मदद मिली है या नहीं। कंपनी को लाइसेंस देने वाले सभी विभागों से हमने निरीक्षण की रिपोर्ट मांगी है। इसके बाद हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे।
एंबुलेंस पहुंची मगर भीड़ पर कंट्रोल करने पुलिस नहीं थी, इसलिए खड़ी रही
हादसे के करीब अाधे घंटे बाद एंबुलेंस तो पहुंच गई, मगर मौके पर कंपनी के बाहर इतनी भीड़ थी कि वह अंदर नहीं जा सकी, क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस नहीं थी, जबकि घटना के बाद से ही इसका राजनीतिक फायदा उठाने की हाेड़ लग गई थी। इस दौरान पीड़ित परिसर में ही खुले में तड़प रहे थे।
‘पेसो’ विभाग के फिक्स थे पैसे
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) के चामुंडी एक्सप्लोसिव कंपनी में हर छह माह में निरीक्षण करने के बदले पैसे फिक्स थे। अधिकांश ऑडिट कागजों पर ही हुआ। कंपनी में कई कमियों के बाद भी कागजों पर ही खानापूर्ति की जाती रही। हादसे के बाद अब तैयार रिपोर्ट में खामियों के बारे में लिखा गया था। इस हादसे पर अब विभाग का कोई भी अधिकारी जवाब देने की स्थिति में नहीं है। यदि यह विभाग भी ईमानदारी से काम करता, तो यह हादसा नहीं होता। विभाग के मुखिया अभी छुट्टी मानने शहर से बाहर गए हुए हैं। अन्य अधिकारियों ने कहा कि हम जवाब देने के लिए अधिकृत नहीं है।
तुरंत इलाज मिलने पर बचाया जा सकता था
डॉ. सुरेंद्र पाटिल, विभागाध्यक्ष प्लास्टिक सर्जरी विभाग मेडिकल के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को आग से झुलसने के बाद जितनी जल्दी इलाज मिले, उसके बचने की उम्मीद उतनी ज्यादा होती है। आग में झुलसने से व्यक्ति के शरीर का फ्लूइड कम होता जाता है। ऐसे में उसे जितनी जल्दी फ्लूइड मिल जाए, उतना अच्छा होता है। यदि मरीजों को घंटों बाद इलाज मिला, तो उनके बचने का चांस भी समय के साथ कम होता चला जाता है। हालांकि मरीज कितना प्रतिशत जला है, इस पर भी इलाज निर्भर करता है।
जल्दी आने से इलाज में फायदा मिलता
डॉ.पिनाक दंदे, संचालक, दंदे हॉस्पिटल के मुताबिक आग में झ़ुलसने के कारण शरीर डी-हाइड्रेट हो जाता है। ऐसे में इलाज जितनी जल्दी शुरू हो, उतना अच्छा रहता है। चामुंडी मामले में शुरुआत में घायल दोपहर करीब 3.30 बजे तक पहुंचे थे, वहीं अन्य तीन घायल शाम को करीब 7 से 7.30 बजे के बीच पहुंचे थे। अधिकांश बुरी तरह से झुलसे हुए थे। हमारे पास जब मरीज पहुंचे, तब हम जो बेहतर से बेहतर कर सकते थे किया।
Created On :   17 Jun 2024 4:14 PM IST