विवाद: हाई कोर्ट ने पूछा - वैधानिक मंडल का प्रस्ताव किसके अधिकार क्षेत्र में

हाई कोर्ट ने पूछा - वैधानिक मंडल का प्रस्ताव किसके अधिकार क्षेत्र में
  • विधानमंडल या प्रशासन को लेकर पूछा सवाल
  • विदर्भ वैधानिक विकास मंडल का कार्यकाल बढ़ाने का मामला
  • राज्य सरकार द्वारा भेजा गया प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास 2 साल से प्रलंबित

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विदर्भ वैधानिक विकास मंडल का कार्यकाल बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा भेजा गया प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास 2 साल से प्रलंबित है और पिछले 4 साल से यह मंडल काम नहीं कर रहा है। इस मामले पर सोमवार को हुई सुनवाई में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने यह सवाल किया कि वैधानिक मंडल का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव भेजने का अधिकार विधानमंडल का है या प्रशासनिक दायरे में है, साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यकाल बढ़ाने के संबंध में आदेश तब पारित किया जा सकता है, जब यह स्पष्ट हो जाए कि यह किसके अधिकार क्षेत्र में है। विदर्भ के समग्र विकास के साथ-साथ बैकलॉग की निगरानी के लिए स्थापित विदर्भ वैधानिक विकास महामंडल का कार्यकाल 30 अप्रैल 2020 को समाप्त हो गया है। महामंडल की समय सीमा बढ़ाने के लिए स्वतंत्र विदर्भ समर्थक नितीन रोंघे ने नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की है।

राष्ट्रपति की सहमति : मामले पर सोमवार को न्या. नितीन सांबरे और न्या. अभय मंत्री के समक्ष सुनवाई हुई। इस दौरान इस विस्तृत चर्चा हुई कि क्या महामंडल का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव भेजने का निर्णय प्रशासनिक है या विधानमंडल यह फैसला लेगी। कोर्ट ने पूछा कि वैधानिक मंडल की स्थापना का स्रोत संविधान है, लेकिन यह निर्णय किसके अधिकार क्षेत्र में आता है। इस पर याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि यह फैसला पूरी तरह से प्रशासनिक है। कार्यकाल बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार की ओर से प्रस्ताव भेजा जाता है। केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय आवेदन को मंजूरी देता है। इसके बाद राष्ट्रपति अपनी सहमति देते हैं। राष्ट्रपति की सहमति के बाद राज्यपाल मंडल की स्थापना करते हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि हाई कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस संबंध में आदेश पारित करने का अधिकार है। कोर्ट ने अब इस मामले में अगली सुनवाई 11 जुलाई को रखी है। याचिकाकर्ता की ओर से एड. फिरदौस मिर्झा, एड. अक्षय सुदामे और केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एड. नंदेश देशपांडे ने पैरवी की।

मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : वैधानिक मंडल का कार्यकाल बढ़ाना न केवल सरकार का कर्तव्य है, बल्कि संवैधानिक दायित्व है। मंडल का कार्यकाल 2020 में समाप्त हो गया था, लेकिन उससे पहले 2018 में चार साल की विकास योजना तैयार की गई थी, लेकिन 2020 के बाद इसे लागू करने वाला कोई नहीं था, इसलिए याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि विदर्भ के कई जिलों का बैकलॉग अभी तक नहीं भरा गया है। यह विदर्भ के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गुजरात और अन्य राज्यों में विकास महामंडलों की स्थिति के बारे में मौखिक तौर पूछताछ की, साथ ही यह भी पूछा कि क्या राज्य को समय सीमा बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजने की आवश्यकता है या केंद्र स्वयं निर्णय ले सकता है।


Created On :   9 July 2024 3:13 PM IST

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