Nagpur News: शीतसत्र की अवधि में कटौती, विदर्भ की समस्याओं पर कैसे हो पाएगी चर्चा

शीतसत्र की अवधि में कटौती, विदर्भ की समस्याओं पर कैसे हो पाएगी चर्चा
  • भाजपा विधायकों को सत्ता में भागीदारी की चिंता
  • नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन औपचारिकता माना जाता रहा
  • विपक्ष में जोश कम दिख रहा

Nagpur News रघुनाथसिंह लोधी . विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन की तैयारी पूरी हो गई है। राज्य सरकार का सचिवालय नागपुर में आ गया है। सरकार भी आ जाएगी। बहुमत के बल पर सत्तापक्ष और सरकार जोश में हैं। सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नागपुर से हैं, विदर्भवादी हैं। फडणवीस के नेतृत्व की वाहवाही हो रही है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि विदर्भ की समस्याओं पर कैसे चर्चा होगी। नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन औपचारिकता माना जाता रहा है। सत्र की अवधि में कटौती होती रही है। इस बार तो अल्पावधि में ही यह सत्र पूरा हो जाएगा। विदर्भ विकास के लिए भाजपा चिंता व्यक्त करती रही है। भाजपा के नेताओं ने विदर्भ के लिए कई आंदोलन किए, लेकिन बीते कुछ वर्षों में भाजपा विधायक शीतसत्र में प्रश्न उठाने के मामले में पिछड़ते रहे हैं। इस बार तो भाजपा विधायकों को सत्ता में भागीदारी की अधिक चिंता है। विपक्ष कमजोर है और जोश दिखाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में प्रश्न है कि विदर्भ को कैसे न्याय मिलेगा।

5 दिन का सत्र : अधिवेशन 16 से 21 दिसंबर तक तय किया गया है। 6 दिन के इस अधिवेशन में पहला दिन शोकसभा व्यक्त करने में बीत जाएगा। अधिवेशन 5 दिन का ही होगा। प्रश्नोत्तर काल में चर्चा की संभावना कम है। नियमानुसार विधायक अपने क्षेत्र से संबंधित प्रश्न स्वीकृति के लिए सचिवालय को भेजते हैं। 45 दिन पहले से प्रश्न स्वीकृति के लिए भेजना शुरू हो जाता है। प्रश्नों के लिखित उत्तर संबंधित विभाग के मंत्री देते हैं। प्रश्नोत्तर पत्रिका छपती है। उपप्रश्नों पर सभागृह में चर्चा होती है, लेकिन इस बार यह प्रक्रिया नहीं हो पाई है। मंत्री भी तय नहीं हैं। विधायकों की शपथ, राज्यपाल का अभिभाषण विशेष अधिवेशन में मुंबई में पूरा हो चुका है। ऐसे में नागपुर में शीतसत्र केवल औपचारिक ही हो सकता है।

तय था 6 सप्ताह : नागपुर में यह अधिवेशन 6 सप्ताह का तय किया गया था, लेकिन नागपुर करार का पालन नहीं किया गया। अब तक यहां एक माह भी अधिवेशन नहीं चल पाया है। 1989 में 5 दिन में ही समाप्त हो गया था। वही स्थिति अब बनी है। 1962-63 में चीन युद्ध व 1979 में राजनीतिक उथल-पुथल के चलते नागपुर में अधिवेशन नहीं हो पाया। 2018 में शीत के बजाय मानसून अधिवेशन नागपुर में हुआ। काेरोनाकाल में 2 वर्ष तक यहां कोई अधिवेशन नहीं हुआ। इन स्थितियों को देखें, तो नागपुर में अधिवेशन औपचारिक ही साबित होते रहे हैं।

ऐसे कम होते गए अधिवेशन के दिन : 1960-27 दिन, 1961-25, 1964-23, 1965-15, 1966-24, 1967-17, 1968-28, 1969-24, 1970-18, 1971-26, 1972-20, 1973-25, 1974-25, 1975-17, 1976-15, 1977-14, 1978-14, 1980-9, 1981-15, 1982-10, 1983-15, 1984-6, 1986-15, 1987-15, 1988-15, 1989-5, 1990-14, 1992-6, 1993-14, 1994-8, 1995-14, 1996-10, 1997-8, 1998-12, 2000-15, 2001-10, 2002-8, 2003-10, 2004-11, 2005-10, 2006-10, 2007-11, 2008-12, 2009-10, 2010-12, 2011-11, 2012-10, 2013-10, 2014-13, 2015-13, 2016-10, 2017-10, 2018 में 13 दिन का मानसून सत्र हुआ। 2023 में 10 दिन का अधिवेशन हुआ।

करेंगे सत्र की अवधि बढ़ाने का निवेदन : भाजपा ने सत्ता में रहकर विदर्भ को न्याय देने का प्रयास किया है। विविध कारणों से यहां के प्रश्नों पर अधिक चर्चा नहीं हो पाई, लेकिन भाजपा नेतृत्व की सरकार ने विकास योजनाओं में कमी नहीं की। इस बार अधिवेशन की अवधि बढ़ाने के संबंध में मुख्यमंत्री फडणवीस से निवेदन करेंगे। -कृष्णा खोपडे, भाजपा विधायक

10 वर्ष के काम पर श्वेतपत्र जारी करें : नागपुर करार का पालन नहीं किया जा रहा है। नागपुर में सरकार को शिफ्ट करने को कहा गया था। सत्ता के मामले में नेता प्रतिपक्ष पद भी महत्व का रहता है। मुख्यमंत्री फडणवीस 10 वर्ष से राज्य की सत्ता में प्रभावी भूमिका में हैं। वे 2014 से 2024 तक के विदर्भ विकास के काम पर श्वेतपत्र जारी करें। विदर्भ के विधायकों से भी निवेदन है कि वे पार्टी लाइन से बाहर आकर विदर्भ की समस्याओं पर बोलें। नितीन रोंघे, संयोजक महाविदर्भ जनजागरण समिति

Created On :   13 Dec 2024 3:19 PM IST

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