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Nagpur News: पेंच के जंगल में 5 हजार जुगनुओं की चमक , फायर फ्लाई वीक पर गणना
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- 2,000 से अधिक प्रजातियां
- पेंच में 50 से ज्यादा बाघों की है मौजूदगी
Nagpur News पेंच का जंगल पूरे भारत में बाघों के लिए ख्यात है। पर्यटकों को यहां केवल बाघ ही नहीं, बल्कि अन्य वन्यजीवों का भी दीदार होता है। लेकिन शायद ही किसी को पता होगा कि इस जंगल में 5 हजार जुगनू मौजूद हैं। फायर फ्लाई वीक के दौरान पेंच प्रशासन ने इनकी गणना संरक्षित कुटियों से की है।
हेल्दी एनवायरमेंट की गवाही : 7 सौ से ज्यादा वर्ग किमी मे फैला पेंच का जंगल घना व हरियाली से भरा है। इसमें सिल्लारी, खुर्सापार, चोरबाहुली, कोलीतमारा, पनेरा, नागलवाडी आदि रेंज आते हैं। पूरे पेंच में 50 से ज्यादा बाघों की मौजूदगी है। तेंदुए, हिरण, जंगली भैसा आदि वन्यजीवों का भी यहां बसेरा है। इसके अलावा यहां बड़ी संख्या में जुगनू भी हैं, जो यहां के हेल्दी एनवायरमेंट की गवाही दे रहे हैं।
37 कुटी से इन्हें देखा गया : कुछ समय पहले वर्ल्ड फायर फ्लाई सप्ताह हुआ था। इस दौरान सुरक्षा शिविर में रात के वक्त जुगनुओं को देखा और गिना गया था। जंगल में बनाये 80 संरक्षित कुटी से इन पर नजर रखी गई थी, जिसमें 37 कुटी से इन्हें देखा गया। सबसे ज्यादा जुगनू दक्षिण क्रिगी सर्रा बीट में इन्हें देखे गये, जहां 2 हजार की गिनती की गई। इसके अलावा पूर्व पेंच में भी इनकी संख्या देखी बहुत ज्यादा पाई गई। जुगनू, जिन्हें बिजली के कीड़े के रूप में भी जाना जाता है, उनके पेट के निचले हिस्से में एक रासायनिक प्रतिक्रिया, बायोल्यूमिनसेंस के माध्यम से प्रकाश उत्पन्न करने की एक अद्वितीय क्षमता होती है। यह प्रकाश संचार, साथियों को आकर्षित करने और शिकारियों को दूर रखने सहित कई कार्य करता है।
प्रकृति की देन: विश्व स्तर पर, जुगनुओं की 2,000 से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें से सभी अपने मनोरम प्रकाश पैटर्न और व्यवहार से अलग हैं। कुछ प्रजातियां अपनी चमक को सिंक्रोनाइज़ करती हैं, जिससे चमकदार प्राकृतिक प्रकाश शो बनते हैं। उत्सर्जित रंग पीले और हरे से लेकर नारंगी रंग के होते हैं, जो उनके प्रकाश अंगों के भीतर ल्यूसिफरिन, ल्यूसिफरेज, ऑक्सीजन और एटीपी से जुड़े रासायनिक संपर्क से निर्धारित होते हैं। ये आकर्षक कीड़े 100 मिलियन से अधिक वर्षों से पृथ्वी पर निवास कर रहे हैं।
गर्मी में संख्या कम हो जाती है : फायर फ्लाई वीक के दौरान 5 हजार की गणना हुई थी। बारिश में इन्हें पूरी क्षमता से व ठंड की शुरुआत में भी इन्हें अच्छी खासी संख्या में देखा जा सकता है, लेकिन ग्रीष्म में इनकी संख्या कम देखने को मिलती है। - किशोर एस. मानकर, क्षेत्र संचालक, पेंच व्याघ्र प्रकल्प नागपुर
Created On :   20 Feb 2025 4:41 PM IST