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Nagpur News: नागपुर जिले में दान में मिली 66% आंखें बेकार, नहीं दे सकतीं रोशनी

- 2526 लोगों ने किया नेत्रदान
- दृष्टिबाधितों पर प्रत्यारोपण 873
Nagpur News चंद्रकांत चावरे . हर दृष्टिबाधित को आस होती है कि उसकी आंखों को रोशनी मिल जाए, लेकिन यह तभी संभव है, जब अधिकाधिक संख्या में नेत्रदान होगा। और यह भी कि जरूरी नहीं कि हर आंखें रोशनी देंगी ही। हालांकि इसके कई कारण हैं। नागपुर जिले में अप्रैल 2018 से फरवरी 2025 तक कुल 2526 आखें दान में मिली। इनमें से आधे से भी कम केवल 34 फीसदी का ही प्रत्यारोपण हो सका है। यानी 873 लोगों को ही रोशनी मिल सकी है। 66 फीसदी आंखें रोशनी दे नहीं सकीं। जिले में 4000 से अधिक लोग रोशनी के इंतजार में हैं।
6 घंटे के भीतर नेत्रदान प्रक्रिया करना जरूरी राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम अंतर्गत दृष्टिबाधितों के लिए काम किया जाता है, लेकिन नेत्रदान को लेकर जागरूकता का अभाव है। जिनके आई बॉल्स के शेल्स कम हो चुके होते हैं, उनकी आंखों से किसी को रोशनी नहीं मिल पाती। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रदान होने पर ही कार्निया काम में आता है। कार्निया अधिकतम 7 दिन में प्रत्यारोपित किया जाता है। हालांकि 28 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है, लेेकिन कार्निया के टिश्यूज डेड होने लगते हैं।
शोध व अनुसंधान के लिए अनुपयोगी कार्निया का उपयोग बीमारियां व दूसरे कारणों के चलते कार्निया अनुपयोगी साबित होते हैं। इसमें विशेष रूप से संक्रमित बीमारी का समावेश है। कैंसर, एचआईवी, सिफलिस, हिपेटाइटिस बी, हिपेटाइटिस सी, सेप्टिसेमिया, संक्रमित आंख, अल्सर शामिल हैं। ऐसी बीमारियों से मृत व्यक्तियों का नेत्रदान होने के बावजूद उनके कार्निया अनुपयोगी होते हैं। उनका उपयोग मेडिकल शिक्षा व अनुसंधान के लिए किया जाता है।
हेपेटाइटिस सी व बी के मरीज नहीं कर सकते नेत्रदान : निकट दृष्टिदोष, दूरदर्शिता और दृष्टिवैषम्य जैसी दृष्टि समस्याओं वाले लोग अपनी आंखें दान कर सकते हैं। दाता की आयु निश्चित नहीं होती है। कोई भी परिवार चाहे तो वह संबंधित मृतक की आंखें दान कर सकता है। उच्च रक्तदाब, अस्थमा, मधुमेह जैसी बीमारियों वाले भी नेत्रदान कर सकते हैं, लेकिन जिसे एचआईवी, हेपेटाइटिस सी, हेपेटाइटिस बी या कोई संचारी बीमारियां हो, तो वह आंखें दान नहीं कर सकता है। वैसे ही डूबने से मरने वाला भी आंखें दान करने के योग्य नहीं होता।
इसकी गारंटी नहीं : कोई व्यक्ति अपने जीते जी नेत्रदान का संकल्प लेता है, लेकिन मरणोपरांत उसका नेत्रदान करने के लिए परिजन संबंधित आई बैंक को सूचित करेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं हाेती है, क्योंकि मृत्यु के बाद परिजन अपने कर्मकांड पूरे करने में लगे होते हैं। इसलिए अधिकतर मामलों में जानकारी नहीं दी जाती। नेत्रदान संकल्प के प्रति काफी कम लोग जागरुकता दिखाते हैं। समाज में 60 साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों का ही नेत्रदान होता है, लेकिन उनके आय बॉल्स के शेल्स कम हो चुके होते हैं। कम आयु वर्ग के मृतकों का कार्निया से ही दूसरों को रोशनी मिलती हैं, लेकिन इसका प्रमाण काफी कम बताया जाता है।
एक बड़ा कारण यह भी : यदि दुर्घटना में मृत्यु होती है तो नेत्रदान के लिए कोई परिजन आगे नहीं आता। ऐसे मामलों में पुलिस पंचनामा व कागजी कार्रवाई, पोस्टमार्टम आदि में लंबा समय बीत जाता है। तब तक नेत्रदान की निर्धारित 6 से 8 घंटे का समय बीत जाता है। ऐसे में मृतक की आखें किसी को रोशनी नहीं दे सकती। सूत्रों के अनुसार सालाना सरकारी व निजी अस्पतालों में 200 से अधिक मृत्यु के मामले दुर्घटना व अन्य घटनाओं से होते हैं, लेकिन उनकी आंखों से किसी को रोशनी नहीं मिल पाती।
सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें : मरणोपरांत नेत्रदान करने का संकल्प करने वालों को इसकी जानकारी परिजनों व रिश्तेदारों को देकर रखनी चाहिए और इस संबंध में मृतक के परिजनों को स्वयं आगे आकर सूचना देनी चाहिए, ताकि समय पर नेत्रदान व अंगदान हो जाए। विविध कारणों के चलते इसका प्रमाण कम है। इस कार्य को सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार कर जागरुकता करना जरूरी है। नेत्रदान से दृष्टिबाधितों को रोशनी मिलती है। मृतक की आंखें किसी दृष्टिबाधित में रोशनी बनकर हमेशा जीवित रहती है। इसलिए इस पुण्यकार्य में सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। -डॉ. निवृत्ति राठोड, जिला सिविल सर्जन, नागपुर
Created On :   12 March 2025 11:47 AM IST