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Nagpur News: कोर्ट ने कहा- तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण की हकदार
- रकम बढ़ाने के फैसले में हाई कोर्ट का हस्तक्षेप से इनकार
- पति की आपराधिक पुनरीक्षण अर्जी खारिज
Nagpur News घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा (पीडब्ल्यूडीवी) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा कि तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण की हकदार है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पति की आपराधिक पुनरीक्षण अर्जी खारिज कर दी। न्या. संदीप कुमार मोरे ने यह फैसला दिया।
पुनरीक्षण अर्जी दायर की थी : पति और पत्नी का तलाक होने के बावजूद सत्र न्यायालय ने पत्नी के भरण-पोषण की प्रतिमाह 1500 रुपए की रकम बढ़ाकर 3 हजार रुपए की थी। इस फैसले को पति ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए यह पुनरीक्षण अर्जी दायर की थी। प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी ने पत्नी को भरण-पोषण के लिए 1500 रुपए मंजूर किए थे। बाद में पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 21 और 22 के तहत विभिन्न अनुतोष के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले में सेशन कोर्ट ने 27 अप्रैल 2021 को पत्नी की प्रतिमाह भरण-पोषण की रकम 1500 से 3 हजार रुपए तक बढ़ाने का आदेश दिया था।
वकीलों ने रखीं दलीलें : इस मामले में आवेदक पति के वकील ने अपना पक्ष रखते हुए दावा किया कि 2009 से पति-पत्नी के बीच कोई घरेलू संबंध नहीं रहा। पत्नी के पक्ष में तलाक का आदेश भी दे दिया गया। इसके बाद भी भरण-पोषण की राशि बढ़ाने का आदेश गलत है। वकील ने साधना वालवटकर बनाम हेमंत वालवटकर के मामले में कोर्ट के फैसले का आधार लेते हुए कहा कि पत्नी को सक्षम अदालत द्वारा तलाक की मंजूरी के बाद पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम के प्रावधानों के तहत वह भरण-पोषण की किसी भी अनुतोष की हकदार नहीं है। दूसरी ओर पत्नी के वकील ने पति के दलील का विरोध किया, साथ ही तलाक के बाद भी घरेलू पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पत्नी भरण-पोषण की हकदार होने के दावा किया। इसके लिए प्रभा त्यागी बनाम एस. कमलेश देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले का आधार लिया गया।
अर्जी खारिज की : दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि एक तलाकशुदा महिला को भी पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम के तहत अनुतोष का दावा करने का हकदार है। यदि यह पति और उसके रिश्तेदारों के साथ घरेलू संबंधों की अवधि से संबंधित है। वर्तमान मामले में घरेलू हिंसा के आरोप तब के प्रतीत होते हैं, जब दोनों पक्ष घरेलू रिश्ते में थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पति की आपराधिक पुनरीक्षण अर्जी खारिज कर दी।
Created On :   13 Dec 2024 4:08 PM IST