Nagpur News: अविवाहित वयस्क पुत्री भरण-पोषण की हकदार

अविवाहित वयस्क पुत्री भरण-पोषण की हकदार
  • फैमिली कोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार
  • हाई कोर्ट ने पिता का पुनरीक्षण आवेदन किया खारिज

Nagpur News अविवाहित वयस्क पुत्री को भरण-पोषण देने के फैमिली कोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने पिता द्वारा दायर पुनरीक्षण आवेदन खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने अपने निरीक्षण में कहा कि फैमिली कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने के मामलों से निपटने का अधिकार है। न्या. संदीप कुमार मोरे ने यह फैसला दिया है।

अधिकार क्षेत्र में है : इस मामले में कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अविवाहित वयस्क पुत्री को भरण-पोषण देने का मजिस्ट्रेट का आदेश, जो स्वयं भरण-पोषण करने में असमर्थ है, लेकिन उसे कोई मानसिक या शारीरिक असामान्यता या चोट नहीं है, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अधिकारिता का प्रयोग करते हुए कानून की दृष्टि से कायम नहीं रहेगा, लेकिन यदि ऐसा आदेश फैमिली कोर्ट द्वारा पारित किया जाता है, तो यह निश्चित रूप से कानून की नजर में कायम रहेगा, क्योंकि फैमिली कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण देने के मामलों से निपटने का अधिकार है, इसलिए, फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश पूरी तरह से सही प्रतीत होता है क्योंकि यह निश्चित रूप से सीआरपीसी की धारा 125 के साथ-साथ एचएएमए, 1956 की धारा 20(3) के अधिकार क्षेत्र में है, इसलिए कोर्ट ने फैमिली कोर्ट ने निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पिता द्वारा दायर पुनरीक्षण आवेदन खारिज कर दिया।

3500 रुपए प्रतिमाह देने का आदेश : पुत्री ने अपने पिता के विरुद्ध सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण का दावा करने के लिए 2016 में फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि पिता द्वारा उसे परेशान किया गया और इसलिए उसे नागपुर में अपनी बहन के साथ रहने के लिए बाध्य किया गया। उसने यह भी दावा किया कि वह वयस्क होने के बाद भी पिता से भरण-पोषण पाने की हकदार है। उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है, इसलिए वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। पिता ने उक्त आवेदन का विरोध किया था, लेकिन वह अंतरिम भरण-पोषण राशि का भुगतान नहीं कर सका, इसलिए उसका बचाव खारिज कर दिया गया। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने याचिका दायर करने की तिथि 5 जुलाई 2016 से लेकर जब तक वह शादी नहीं कर लेती या कमाना शुरू नहीं कर देती, जो भी पहले हो, तब तक पुत्री को 3500 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण प्रदान करने का आदेश दिया।

वकील की दलील : इस मामले में पिता ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण आवेदन दायर किया था। आवेदक पिता के वकील द्वारा दी गई दलील में अभिलाषा बनाम प्रकाश और अन्य, (2021) 13 एससीसी 99 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जाेर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना है कि अविवाहित पुत्री जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है, जब तक कि वह किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता/चोट से पीड़ित न हो। उन्होंने आगे बताया कि गिरीश कुमार (सुप्रा) के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने भी अभिलाषा (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त टिप्पणियों का पालन किया है, इसलिए यह विवादित आदेश खारिज करने की मांग आवेदक पिता ने कोर्ट से की। हालांकि, आवेदक पिता ने पुत्री को भरण-पोषण का दावा करने के लिए हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (संक्षेप में ‘एचएएमए, 1956’) की धारा 20(3) का सहारा लेने की स्वतंत्रता देने के लिए सहमति व्यक्त की। इस प्रकार आवेदक पिता की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्कों से यह स्पष्ट किया कि उन्हें पुत्री द्वारा एचएएमए, 1956 की धारा 20(3) के तहत आवेदन दायर करने पर कोई आपत्ति नहीं है। वह केवल इसलिए आदेश को चुनौती दे रहे हैं क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पुत्री स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, वह वयस्क होने के बाद भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता से पीड़ित न हो।

Created On :   7 Dec 2024 11:43 AM IST

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