Nagpur News: मोडी लिपि के हजारों दस्तावेज आज भी बनें हैं राज, 12वीं शताब्दी में था स्वर्णकाल

मोडी लिपि के हजारों दस्तावेज आज भी बनें हैं राज, 12वीं शताब्दी में था स्वर्णकाल
  • जटिलता की वजह से उपयोग 1950 में बंद कर दिया गया
  • बेहद गुप्त रहता था पत्राचार

Nagpur News. 15वीं सदी में बहलोल लोधी की वजह से भारत में मोडी लिपि का विकास हुआ, इसके बाद मुगलवंश के आने से यह लिपि लुप्त प्राय हो गई, लेकिन 17वीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मोडी लिपि को पुनर्जीवित किया, इसलिए 17वीं सदी के बाद के दस्तावेज अमूमन मोडी लिपि में हैं, हालांकि जटिलता की वजह से इसका उपयोग 1950 में बंद कर दिया गया।

बेहद गुप्त रहता था पत्राचार

कहा जाता है कि इस लिपि में लिखे पत्र-दस्तावेज बेहद गुप्त होते थे। हैमाद पंत इसे श्रीलंका से लाए थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसे राजकीय लिपि के रूप में विकसित कराया। इस लिपि में लिखे दस्तावेजों की खासियत होती थी कि इनको सिर्फ उनके जानकार ही पढ़ पाते थे, इसीलिए जब ब्रिटिश सरकार द्वारा अंग्रेजी में कोई आर्डर पारित किया जाता था तो उसको होल्कर राजवंश के द्वारा भी मोडी लिपि में पारित किया जाता था और यह दस्तावेज इतने गुप्त होते थे कि केवल गिने- चुने जानकार ही पढ़ पाते थे, इसलिए मराठा साम्राज्य में मोडी लिपि के जानकारों की पूछ परख थी। मोडी लिपि की जटिलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस लिपि का जानकार वहीं हाे सकता है, जो अपभ्रंश हिंदी, पर्शियन, अंग्रेजी और उर्दू का भी जानकार हो। अर्थात जो इन चार पांच भाषाओं को जानता है, वही मोडी लिपि में पारंगत हो सकता है।

शिवकाल में स्वर्णकाल

12वीं शताब्दी की मोडी लिपि का स्वर्णकाल शिवकाल में देखा गया। मराठी भाषा, नागरी लिपि और प्रशासनिक कार्यों का आपस में भले ही अलग संबंध हो, लेकिन सरकारी दफ्तरों में मौजूद मोडी लिपि के दस्तावेज देखने को मिलते हैं। आज भी हजारों दस्तावेज पढ़े नहीं जा सके हैं, क्योंकि मोडी लिपि के जानकार उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए राजस्व विभाग के पुराने दस्तावेजों के अध्ययन के लिए मोडी लिपि सीखना अनिवार्य है। यह विचार मोडी लिपि प्रशिक्षक और सहायक शोधकर्ता संजय आवले ने रखे।

प्रशिक्षण वर्ग मंथन

राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में जारी मोडी लिपि प्रशिक्षण वर्ग का हाल ही में समापन हो गया। महाराष्ट्र शासन पुरालेख संचालनालय और स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में यह मोडी लिपि प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया गया। इस दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर संजय आवले मार्गदर्शन कर रहे थे। समापन कार्यक्रम में मानव विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता डॉ. शामराव कोरेटी और मोडी लिपि प्रशिक्षक भरत गवली प्रमुखता से उपस्थित थे।

जानकारों की राय

1) भरत गवली ने कहा कि मोडी लिपि के माध्यम से पुरालेखागारों में विभिन्न सरकारी नौकरियों के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। यदि सही ढंग से मोडी लिपि का प्रशिक्षण लिया जाए तो इसमें लिखे दस्तावेजों का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने वाले को अच्छा रोजगार मिल सकता है।

2) डॉ. शामराव कोरेटी ने कहा कि शोधार्थी छात्रों के लिए मोडी लिपि सीखना समय की मांग है। यदि इस लिपि का उचित प्रशिक्षण लिया जाए तो गुणवत्तापूर्ण शोध संभव है। 1950 तक शासन के विभिन्न विभागों के महत्वपूर्ण दस्तावेज मोडी लिपि में ही थे। पुराने अभिलेखों की नई व्याख्या करनी हो तो मोडी लिपि के माध्यम से ही यह संभव होगा और इसके आधार पर भविष्य की योजनाएं सही ढंग से बनाई जा सकती हैं।

3) 41 विद्यार्थियों प्रशिक्षण का लिया लाभ इस प्रशिक्षण वर्ग में 41 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था। दस दिवसीय प्रशिक्षण में उन्हें मोडी लिपि की बारीकियों, लेखन और पठन की जानकारी दी गई। प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों ने इस लिपि को सीखकर अपने अनुभव साझा किए और संतोष व्यक्त किया। समापन समारोह का प्रस्ताविक भाषण मोडी लिपि के समन्वयक डॉ. रामभाऊ कोरेकर ने दिया। कार्यक्रम का संचालन आचल सालवे ने किया और आभार गौरव शिवणकर ने माना।


Created On :   24 Feb 2025 6:17 PM IST

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