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नागपुर मेडिकल: जो मशीन 2016 में एक्सपायर, उस पर टिकी है कैंसर रोग विभाग की सांसे
- एक साल में नई मशीन नहीं मिली, तो विभाग तोड़ देगा दम
- मेडिकल के कैंसर रोग विभाग के प्रति संवेदनशील नहीं सरकार
- 9 साल से नहीं बदल पाया मशीन का सोर्स
डिजिटल डेस्क, नागपुर. सरकारी काम इतनी धीमी गति से होते है कि सांसे अटक जाती है। निधि का अभाव, सरकारें बदलना, एजेंसियों की लापरवाही, दस्तावेजों का पेंच, नीति-नियमों का रोड़ा हमेशा से ही योजनाओं को अधर में अटका देती है। इसका सीधा असर आम जनों पर होता है। यहां तक कि चिकित्सा क्षेत्र के प्रति भी सरकार गंभीर नहीं होती। संतरानगरी को मेडिकल हब के रुप में देखा जाता है। एक समय यहां के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) को आशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता था। मेडिकल का कैंसर रोग विभाग गरीब व मध्यमवर्गियों के लिए नवसंजीवनी से कम न था। लेकिन अब इस विभाग की हालत ऐसी हो चुकी है कि कभी भी दम तोड़ सकता है। जो मशीन 10 साल पहले एक्सपायर हो चुकी है, उस अकेली बेदम मशीन के सहारे विभाग चल रहा है।
9 साल से नहीं बदल पाया मशीन का सोर्स
मेडिकल का कैंसर रोग विभाग कालबाह्य हो चुकी कोबाल्ट थेरेपी मशीन के सहारे चल रहा है। यह मशीन कभी भी बंद हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो कैंसर रोग विभाग का दम टूट जाएगा। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार की निधि से 2006 में कैंसर के उपचार में रेडिएशन देने के लिए कोबाल्ट थेरेपी मशीन खरेदी की गई थी। इस मशीन का जीवन 10 साल बताया गया था। यानि 2016 तक ही यह मशीन साथ दे सकती थी। इस मशीन में एक महत्वपूर्ण अंग होता है। जिसे सोर्स कहा जाता है। यह सोर्स पांच साल में बदलना पड़ता है। 2016 में मशीन कालबाह्य होने से पहले 2015 में सोर्स बदला गया था। बताया गया कि यह सोर्स विदेश से आयात करवाना पड़ा था। जिसके बदले में करीब 80 लाख रुपए खर्च करने पड़े थे। हर 5 साल में सोर्स बदलना पड़ता है। लेकिन पिछले 9 साल में यह सोर्स नहीं बदला गया। 2020 में इस मशीन की कार्यक्षमता खत्म हो चुकी है। इसलिए यह मशीन बार-बार बंद हो जाती है। जैसे-तैसे मरम्मत करवाकर काम चलाना पड़ता है। वर्तमान में इस मशीन को पुराने दौर कि मानी जाती है। लेकिन मेडिकल के पास दूसरी मशीन नहीं होने से कालबाह्य मशीन को बैसाखी मानकर उपयोग में लिया जा रहा है। जिस मशीन को 10 साल चलाना था, वह मशीन 18 साल से चलायी जा रही है। इसलिए यह मशीन कभी भी आखिरी सांस लेने की संभावना व्यक्त की गई है।
ब्रेकीथेरेपी बंद होने से सर्वाइकल, प्रोस्टेट व स्तन कैंसर के मरीजों की आफत
विभाग की महत्वपूर्ण ब्रेकी थेरेपी मशीन एक्सपायर हो चुकी है। सूत्रों ने बताया कि ब्रेकी थेरेपी मशीन 2009 में लगायी गई थी। इसका जीवनकाल 2019 में समाप्त हुआ। बाद में इस मशीन के कुछ पूर्जे बदलकर काम चलाया गया। दो साल तक यानि 2021 तक यह मशीन चली। बाद में पूर्णत: बंद पड़ी। इस मशीन से संक्रमण खत्म करने दूर से रेडिएशन दिया जाता था। सर्वाइकल कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर व स्तन कैंसर से पीड़ितों के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है। नई ब्रेकीथेरेपी मशीन के लिए प्रयास किया गया, लेकिन बाद में यह मामला अधर में लटक गया। कैंसर रोग में महत्वपूर्ण लीनियर एक्सीलरेटर मशीन के लिए 5 साल से प्रयास जारी है। 2019 में प्रस्ताव भेजा व 2020 में 23.20 करोड़ की मंजूरी मिली। निधि मिलने के बाद तत्कालीन खरेदी एजेंसी हाफकिन कंपनी को निधि सौंपी गई। लेकिन खरेदी प्रक्रिया पूरी नहीं होने से निधि वापिस मेडिकल को लौटायी गई। चार साल में खरेदी प्रक्रिया पूरी नहीं हो पायी। न्यायालय की दखल के बाद खरेदी प्रक्रिया तेज की गई। सूत्रों ने बताया कि खरेदी के लिए सरकार के विभाग द्वारा टेंडर प्रक्रिया पूरी की गई। लेकिन कोई भी एजेंसी सामने नहीं आ रही। बताया गया कि डॉलर व रुपए के लेन-देन में मामला अटका है। कुल मिलाकर मेडिकल का कैंसर रोग विभाग कभी भी दम तोड़ सकता है। विभाग में हर साल 2200 से अधिक नये मरीजों का पंजीयन होता है। इन मरीजों का उपचार करने जरुरी मशीन नहीं होने से यहां आनेवाले गरीब व मध्यमवर्गीय मरीजों के हाल होते है। उन्हें उपचार के लिए निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां लाखों रुपए खर्च करने पड़ रहे है।
Created On :   15 Sept 2024 8:03 PM IST