प्रशासन की अनदेखी: एक बार रसीद कटी, नाममात्र मूर्तियां जब्ती, फिर होगी खुलेआम बिक्री

एक बार रसीद कटी, नाममात्र मूर्तियां जब्ती, फिर होगी खुलेआम बिक्री
  • मनपा के पास पीओपी मूर्तियों की पहचान करने विशेषज्ञों की टीम नहीं
  • एनडीएस टीम को प्रशिक्षण नहीं, मूर्तियां जब्त करने व जुर्माना वसूलने का निर्देश
  • कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति, स्थायी हल नहीं निकलने से खिलवाड़

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पिछले कुछ सालाें से पीओपी गणेश मूर्तियों को लेकर सरकार और स्थानीय प्रशासन स्थायी हल नहीं निकाल पायी है। मनपा द्वारा जारी अस्थायी नीति-नियमों पर गणेशोत्सव टिका रहता है। मनपा के पास पीओपी मूर्तियों की पहचान करने के लिए विशेषज्ञों की टीम नहीं है। वहीं दुकानों में जाकर वहां पीओपी मूर्तियों की जांच करने का जिम्मा एनडीएस (उपद्रव शोध पथक) को सौंपा गया है। जोन स्तर पर एनडीएस की टीम काम कर रही है। लेकिन उन्हें पीओपी मूर्तियों की पहचान करने के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। मूर्तियां बेचनेवाले दुकानदारों से कुछ मूर्तियां जब्त की जाती है। उनसे नकद जुर्माना वसूला जाता है। एक बार कार्रवाई हुई तो दुकानदार नीति-नियमों से बेखौफ होकर खुलेआम मूर्तियां बेचता है। नागपुर में मूर्तियों के आयात-निर्यात व बिक्री का गणित करे तो यहां 3 लाख मूर्तियों की आवश्यकता होती है। इसमें से 2 लाख मूर्तियां बाहर से आयात होती है। इनमें 75 फीसदी यानि 1.50 लाख मूर्तियां पीओपी की होती है। यह मूर्तियां मिट्‌टी और साडू मिट्‌टी के नाम पर बेची जाती है।

विशेषज्ञ की टीम नहीं, अनुमान से कार्रवाई : एनडीएस टीम द्वारा मूर्तियों की दुकानों में जाकर जांच की जाती है। जांच में वजन और रंगों के आधार पर मूर्तियां मिट्‌टी की है या पीओपी की, इसका अनुमान लगाया जाता है। यदि वजन अधिक है तो माना जाता है कि वह मिट्‌टी की है, जबकि कम वजनी मूर्तियों को पीओपी की माना जाता है। जिन पर आकर्षक रंग है उन्हें पीओपी और जो कम आकर्षक है वह मिट्‌टी की मानी जाती है। जबकि यह एक भ्रम है। पीओपी की मूर्तियों का वजन बढ़ान के लिए उसमें बजरी, रेत या पत्थर डालकर पैकि किया जाता है। इससे मूर्तियों को वजन बढ़ जाता है।

पीओपी मूर्तियों की तरह ही मिट्‌टी की मूर्तियों को आकर्षक बनाने के लिए उच्च दर्जे के रंग उपयोग में लिये जा रहे है। इसलिए मिट्‌टी की मूर्तियों का आकर्षण पीओपी मूर्तियों से कम नहीं होता। मूर्तियां मिट्‌टी की है या पीओपी की यह केवल जानकार विशेषज्ञ या मूर्तिकार ही बता सकता है। मनपा के पास इसकी पुष्टि करनेवाले विशेषज्ञ नहीं है। इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन मनपा के पास इसे लेकर कोई व्यवस्था नहीं है। परिणामस्वरुप पीओपी की मूर्तियां खुलेआम बिक रही है। एनडीएस के 60 जवानों की टीम जोन स्तर पर जांच व कार्रवाई कर रही है, लेकिन उनके साथ कोई विशेषज्ञ नहीं है। सूत्रों ने बताया कि उन्हें 100 मूर्तियां हर रोज जब्त करने व दुकानदारों से 10 हजार रुपए नकद जुर्माने के रुप में कार्रवाई का निर्देश है। प्रदूषण, पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं व अन्य संबंधित सरकारी विभाग भी इस गंभीर मसले को गणेशोत्सव से कुछ दिन पहले उठाते है, बाद में सब कुछ शांत हो जाता है।

शिक्षित पीढ़ी मिट्‌टी के काम में नहीं लेती रुचि : जिले में मूर्तिकला से 450-500 लोग जुड़े हैं। इनकी संख्या हर साल कम हो रही है। अधिकतर मूर्तिकार परिवार की नई शिक्षित पीढ़ी जी तोड़ मेहनत करके मिट्‌टी की मूर्तियां बनाने की बजाय दूसरे स्थायी आमदनी वाले क्षेत्र में प्रवेश कर रहे है। मूर्तियां बनानेवाले अधिकतर कलाकार सालभर काम नहीं करते। वे दूसरे व्यवसाय से अपना गुजर बसर करते हैं। उनके लिए गणेश मूर्तियाें का निर्माण केवल सीजन भर होता है। छोटी मूर्तियों बनानेवाले औसत 400-500 व बड़ी मूर्तियां बनानेवाले अधिकतम 60-70 मूर्तियां बनाता है।

कुछ साल पहले 1.50 लाख मूर्तियों का निर्माण होता था। अब यह आंकड़ा सिमटकर 85 हजार तक ही पहुंच पाता है। बढ़ती आबादी व परिवारों के विभाजन के कारण गणेश स्थापना की संख्या बढ़ी है। इसलिए मूर्तियों की मांग भी बढ़ चुकी है। लेकिन निर्माण 1 लाख से भी कम होता है। इसलिए मांग के हिसाब से आपूर्ति करने बाहर से मूर्तियों का आयात होता है। लेकिन इनमें 75 फीसदी मूर्तियां पीओपी की होती है। शहर में गांधीबाग, जागनाथ रोड, गांधी पुतला, चितार ओली, सक्करदरा, बुधवारी, पांचपावली, महल, मानेवाड़ा, धरमपेठ, खामला, जरीपटका, इंदोरा समेत शहर के अन्य क्षेेत्र में 350 से अधिक मूर्ति बेचने की दुकानें लगती है। जिले में पेण, मुंबई, अमरावती, बडनेरा, परतवाड़ा, अहमदनगर, पुणे, वाशिम, अकोला, कोल्हापुर आदि शहरों शहरों से मूर्तियां आयात की जाती है। यहां से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा समेत पूरे विदर्भ से मूर्तियों के थोक ग्राहक आते हैं। नागपुर से 35 हजार मूर्तियां निर्यात होने का अनुमान है।

प्रतिबंधक उपाय का काई खास असर नहीं : राज्यभर में पीओपी मूर्तियों को लेकर सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं होने से स्थानीय निकायों द्वारा समय-समय पर अपनी नियमावली लागू की जाती है। नागपुर में पीओपी मूर्तियों पर प्रतिबंध के नाम पर सरकार के निर्देशानुसार स्थानीय प्रशासन द्वारा काम किया जाता है। पिछले पांच साल से नागपुर महानगर पालिका प्रशासन द्वारा पीओपी मूर्तियों पर रोक लगाने के लिए प्रतिबंधक उपाय के रुप में अस्थायी नियमावली लागू की है। नियमावली के अनुसार पीओपी मूर्तियों पर लाल निशान, मूर्तियाें का विसर्जन कृत्रिम तालाब में, ग्राहक को पीओपी मूर्ति होने की जानकारी देना और बिक्री स्थल पर पीओपी मूर्ति होने का बड़ा बैनर लगाने के नियम लागू किये गए थे। इसके साथ ही दुकानदारों को पंजीयन अनिवार्य, पीओपी मूर्तियां जब्ती की कार्रवाई व 10 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाता है। नियमावली के अनुसार प्राकृतिक तरीके से व नष्ट होने वाली मूर्तियों को अनुमति, पीओपी की मूर्तियां प्रतिबंधित, मूर्तियों पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग, केमिकल रंगों के उपयोग पर प्रतिबंध, नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।

समिति की रिपार्ट का नहीं हुआ खुलासा : गणेशोत्सव के दौरान पीओपी मूर्तियों की स्थापना को लेकर बरसों से पेंच चल रहा है। इस विषय को लेकर कोई स्थायी हल नहीं निकलने से हर साल असमंजस की स्थिति पैदा होती है। असर यह होता है कि मिट्टी के नाम पर मिट्‌टी से अधिक पीओपी मूर्तियों की बिक्री होती है। पिछले साल 17 मई को मुख्यमंत्री द्वारा ली गई बैठक में राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। समिति को तीन माह में स्थायी हल निकालने अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी थी। इसकी अधिसूचना 24 जुलाई 2023 को जारी की गई है। अधिसूचना से तीन महीने यानि 23 अक्टूबर 2023 तक समिति रिपोर्ट पेश करनेवाली थी। तब तक गणेशोत्सव 2023 का समापन हो गया था। बाद में इसका क्या हुआ, कुछ पता नहीं चल पाया। इस तरह पीओपी मूर्तियों के विषय में स्थायी हल निकालने साल दर साल बीत रहे हैं। सरकार व स्थानीय प्रशासन इसका कोई हल नहीं निकाल पा रहे है।


Created On :   29 Aug 2024 5:03 PM IST

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