Nagpur News: अमृत वितरण का महापर्व है महाकुंभ, उपराजधानी से प्रयागराज जाएंगे श्रद्धालु

अमृत वितरण का महापर्व है महाकुंभ, उपराजधानी से प्रयागराज जाएंगे श्रद्धालु
  • उपराजधानी से भी अनेक श्रद्धालु जाएंगे प्रयागराज

Nagpur News : युगों पहले अमृत की खोज में सागर को मथा गया। अमृत निकला, लेकिन इसे लेकर उन दो दलों में भीषण युद्ध हो गया, जिन्होंने इसे पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी। इसमें एक ओर थे देवता और दूसरे असुर। ये पहली बार था कि दो अलग-अलग तरह की संस्कृति, सोच और विचार रखने वाले लोग एक बड़े लक्ष्य के लिए एक साथ आए थे। वह लक्ष्य तक पहुंचे भी, लेकिन पा नहीं सके, क्योंकि लक्ष्य था अमृत और उस पर सिर्फ अपना ही अधिकार रखने की जिद व लालच के कारण छीना-झपटी हुई। इस छीना-झपटी में अमृत कलश (कुंभ) से अमृत छलका और 16 स्थानों पर गिरा। इनमें से चार पवित्र जगहों पर पृथ्वी पर और बाकी 12 जगहों पर स्वर्ग में गिरा। पृथ्वी पर जिन 4 जगहों पर अमृत गिरा वो हैं प्रयागराज, नाशिक, उज्जैन और हरिद्वार। यहां हर 12वें वर्ष में महाकुंभ स्नान का आयोजन होता है।

जानें...कुंभ का मतलब : कुंभ अमृत वितरण का पर्व है। समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि का प्रागट्य अमृत कलश धारण किए होता है। वही अमृत, जिसके देवगण भी अभिलाषी रहे। कुंभ पर्थ पंथ, जाति, वर्ग और व्यक्ति सापेक्ष नहीं है, बल्कि उसका स्वरूप सर्वजनहिताय और सार्वभौम है। यथा सभी नदियां सागर में एकाकार हो जाती हैं। समाज के सभी जाति और पंथ कुंभ पर्व में स्व-होम कर एकरूप हो जाते हैं। कुंभ के अमृत वितरण में कोई बंधन नहीं, यहां वर्ग और वर्ण से परे सभी एक माला के मनके हो जाते हैं।

हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेला

हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेला दुनिया का सबसे विशाल, पवित्र, धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है। यह मेला 45 दिनों तक चलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेला कब लगेगा और यह कितने प्रकार के होते हैं और कुंभ मेला की तिथि कैसे निर्धारित होती है। तो बता दें कि मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में गोचर करने पर अमावस्या के दिन महाकुंभ मेला लगता है और यह मेला प्रयागराज में लगता है। महाकुंभ को लेकर शहर में भी धूम है। अनेक श्रद्धालु यहां से महाकुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जाने वाले हैं।

पूर्ण महाकुंभ मेला :बता दें कि हर 144 सालों के अंतराल पर पूर्ण महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। दरअसल, कुंभ 12 होते हैं, जिनमें से 4 कुंभ का धरती पर और 8 कुंभ का देवलोक में आयोजन होता है।

पूर्ण कुंभ मेला : पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है और यह मेला भारत के 4 स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में लगता है। हर 12 साल के अंतराल पर चारों कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

अर्ध कुंभ मेला : अर्ध कुंभ मेले का अर्थ है आधा कुंभ मेला। यह मेला हर 6 साल में दो स्थानों प्रयागराज और हरिद्वार में लगता है।

कुंभ मेला : कुंभ मेले का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर हर तीसरे साल आयोजित किया जाता है।

माघ कुंभ मेला: हर साल माघ महीने में माघ कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।

सिंहस्थ कुंभ : सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के गोचर करने पर उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है।

कुंभ मेले की तिथि कैसे निर्धारित होती है : कुंभ मेले का आयोजन कब और किस स्थान पर किया जाएगा, इसकी तिथि ग्रहों और राशियों पर निर्भर करती है। बता दें कि सूर्य और बृहस्पति को कुंभ मेले के लिए काफी अहम माना जाता है। जब सूर्य और बृहस्पति ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसी तरह से कुंभ मेले के आयोजन के स्थान भी निर्धारित किए जाते हैं।

कुंभ मेले के स्थान का निर्धारण कैसे होता है

  • जब वृष राशि में बृहस्पति ग्रह प्रवेश करते हैं और मकर राशि में सूर्य गोचर करते हैं, तो प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
  • वहीं मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति गोचर करते हैं, तो हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
  • जब सिंह राशि में सूर्य और बृहस्पति प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ मेले का आयोजन नासिक में होता है।
  • इसके साथ ही सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं, तो महाकाल की नगरी उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

Created On :   5 Jan 2025 8:01 PM IST

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