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सावधानी: नांदेड़ व संभाजीनगर की घटना के बाद मेयो-मेडिकल अलर्ट मोड पर
डिजिटल डेस्क, नागपुर। नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में 24 घंटे में 24 मौत और संभाजीनगर में 10 की मौत की घटना होने से राज्य भर में खलबली मची है। सरकारी अस्पतालों में नियमित दवाओं की आपूर्ति नहीं होने से मरीजों को रोज समस्याओं से जूझना पड़ता है। नांदेड़ व संभाजीनगर जैसी घटनाएं नागपुर में न हो इसके लिए शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) और इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो) में मंगलवार को आपात बैठक ली गई। मेडिकल के अधिष्ठाता डॉ. राज गजभिये व मेयो की प्रभारी अधिष्ठाता ने यह बैठक ली।
प्राधिकरण को दिए पूरा अधिकार : छह साल पहले चिकित्सा शिक्षा विभाग अंतर्गत आने वाले सरकारी अस्पतालों में जरूरी दवाएं, चिकित्सा सामग्री, समेत मशीनें खरीदने का अधिकार हॉफकिन महामंडल को दिया गया था। कई बार सरकारी अस्पतालों द्वारा हॉफकिन को निधि उपलब्ध कराने के बावजूद समय पर सामग्री, दवाएं, मशीनें नहीं मिल पाई है। इसलिए हॉफकिन के अधिकार खत्म कर दिए गए। इसी साल सरकार ने महाराष्ट्र चिकित्सा खरीदी प्राधिकरण की स्थापना की। प्राधिकरण को खरीदी के सारे अधिकार दिए गए हैं। प्राधिकरण क्रियान्वित होने तक खरीदी के अस्थायी अधिकार चिकित्सा शिक्षा व संशोधन संचालनालय के आयुक्त को सौंपे गए हैं। खरीदी प्रक्रिया में विलंब होने से अस्पतालों को समय पर दवाएं व अन्य सामग्री आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
दोनों अस्पताल में पर्याप्त स्टॉक : मेयाे व मेडिकल में फिलहाल जरुरी दवाएं व अन्य चिकित्सा सामग्री का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध होने की जानकारी संबंधितों ने दी है। पुराना स्टॉक कम होने तक नया स्टॉक आ जाएगा। बावजूद जरुरत पड़ने पर स्थानीय स्तर पर दवा खरीदी की व्यवस्था की गई है। मेयो-मेडिकल में हुई समीक्षा बैठक में दवा, इंजेक्शन व अन्य सर्जिकल साहित्य के स्टॉक की जानकारी ली गई। स्टॉक के आधार पर दोनों अस्पतालों में पर्याप्त दवाएं होने की जानकारी सूत्रों ने दी है। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर जरूरी दवाएं खरीदने के लिए तैयारी की गई है।
...लेकिन, मेडिकल- मेयो अस्पताल में 24 घंटे में 25 मरीजों की मौत : शहर के दो सरकारी अस्पताल मेडिकल व मेयो में 24 घंटे में 25 मरीजों की मौत हुई है। 2 अक्टूबर को मेडिकल में 24 घंटे में 16 और मेयो में 9 मरीजों की मृत्यु हुई है। मेडिकल में मृत 8 मरीजों को निजी अस्पतालों से रेफर किया गया था। उनकी हालत नाजुक थी। उन्हें अतिदक्षता विभाग में भर्ती किया गया, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही उनकी मृत्यु हुई। मेयो में भी यही स्थिति थी। निजी अस्पताल वाले मृत्यु के द्वार पहुंचे मरीजों को सरकारी अस्पताल में रेफर कर देते हैं, ताकि मौत का ठीकरा सरकारी अस्पताल के सिर पर फूट जाए। इसलिए सरकारी अस्पतालों में मृत्यु के आंकड़े बढ़ते हैं। सूत्रों ने बताया कि अचानक रात 9 बजे के बाद निजी अस्पताल के मरीजों को सरकारी अस्पताल में रेफर किया जाता है। उस समय मरीजों का उपचार करने के लिए डॉक्टरों व सहायक कर्मचारियों काे काफी भागदौड़ करनी पड़ती है।
Created On :   4 Oct 2023 11:25 AM IST