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नागपुर: श्वसनरोग शास्त्र विभाग में आने वाले 20 फीसदी मरीज प्रदूषण के कारण अस्थमा के शिकार
- धूम्रपान व प्रदूषण के कारण बढ़ रहे अस्थमा के मरीज
- इन मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होती है
डिजिटल डेस्क, नागपुर. शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) से संलग्न सुपर स्पेशलिटी विभाग के श्वसनरोग शास्त्र विभाग मे आने वाले कुल मरीजों में 20 फीसदी मरीज अस्थमा (दमा) के शिकार होते हैं। यह बीमारी होने का प्रमुख कारण धूम्रपान व प्रदूषण होता है। श्वसन रोग विभाग की हर दिन की ओपीडी संख्या औसत 80 है। उनमें सांस की विविध बीमारियां होती हैं। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के श्वसन रोग शास्त्र विभाग में हर रोज 80 मरीज सांस से संबंधित विविध बीमारियों का उपचार कराने के लिए आते हैं। इनकी आयु 30 से अधिक होती है। इनमें से 20 फीसदी यानि औसत 16 मरीजों को अस्थमा की बीमारी होती है। यह दीर्घकालिक बीमारी है। इसमें फेफड़ों के वायु मार्ग पर सूजन व संकीर्णता आ जाती है। इस बीमारी के मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होती है। इसके अलावा घरघराहट, खांसी, सीने में जकड़न जैसी तकलीफ होती है।
इन कारणों से बचना जरूरी
अस्थमा के मरीज के वायु मार्ग की पर्त पर सूजन आती है। आस-पास की मांसपेशिया सख्त हो जाती हैं। इससे वायु मार्ग से गुजरने वाली हवा की मात्रा कम हो जाती है। इसके अनेक कारण हैं। प्रदूषण के चलते सांसों के माध्यम से शरीर में जाने वाले धूलकणों से होने वाली एलर्जी के कारण यह बीमारी होती है। मौसम में बदलाव के कारण, संक्रमण के चलते, सिगरेट व तंबाकू आदि के व्यसन के चलते अस्थमा होता है। किसी रसायन का हवा के माध्यम से लगातार नाक से शरीर में प्रवेश करने से, लकड़ी की धूल, धुआं, जानवरों की रुसी के संपर्क में आने से, पारिवारिक एलर्जी का इतिहास हो तो भी अस्थमा का खतरा होता है।
बीमारी का प्रभाव देखकर उपचार
अस्थमा के मरीजों की विविध जांच व बीमारी के प्रकार को देखकर उपचार किया जाता है। उनकी एलर्जी की जांच, धमनियों की जांच, छाती का एक्स-रे या सिटी स्कैन, फेफड़े की गतिविधियां समेत अन्य जरूरी जांच की जाती है। अस्थमा के लक्षण देखने के बाद उसे नियंत्रित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। उन्हें नियमित रूप से दवाओं का सेवन करने के लिए निर्देश दिए जाते हैं। बीमारी के प्रभाव को देखते हुए कुछ दवाएं कम समय के लिए, तो कुछ लंबे समय के लिए दी जाती हैं। अधिक तकलीफ होने पर ब्रोन्कोडायलेटर्स, ओरल कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स आदि दिया जाता है। गंभीर मामले में भर्ती भी किया जाता है।
ऐसे लक्षण हों तो जांच कराना जरूरी
अस्थमा से पीड़ितों में अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ को लंबे समय तक सांस लेने में तकलीफ होती है। उनमें घरघराहट या खांसी होती है। उन्हें कम से कम दो मिनट या कई घंटों तक अस्थमा के चलते खांसना पड़ता है। यदि वायु प्रवाह गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाए, तो खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा कई बार बलगम के साथ खांसी होती है। सांस लेते समय पसलियों की त्वचा में भीतरी खिंचाव होता है। घरघराहट, सीटी बजना, सीने में दर्द, जकड़न, नींद की समस्या, सांस लेने की असामान्य प्रक्रिया, पसीना आना, बात करने में दिक्कत आना, सांस का अचानक रुक जाना आदि लक्षण दिखायी देते हैं।
विशेषज्ञ डॉक्टर से जांच व उपचार कराएं
डॉ. सुशांत मेश्राम, प्राध्यापक व विभाग प्रमुख, श्वसन रोग शास्त्र विभाग, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के मुताबिक श्वसन रोग शास्त्र विभाग की ओपीडी में हर रोज औसत 80 मरीज जांच व उपचार के लिए आते हैं। इनमें से 20 मरीजों में अस्थमा की शिकायत पायी जाती है। प्रदूषण, धूम्रपान व अन्य कारणों से अस्थमा होता है। उनका बीमारी के अनुसार उपचार किया जाता है। अस्थमा से बचने के लिए प्रदूषण व धूम्रपान आदि से बचना चाहिए। कोई भी समस्या होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर से जांच करवाकर उपचार करवाना चाहिए।
Created On :   15 April 2024 1:33 PM GMT