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54 वर्षीय व्यक्ति पर जानलेवा हमले को लेकर पुलिस को लगाई फटकार
- 54 वर्षीय व्यक्ति पर जानलेवा हमला
- आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मामला दर्ज करने का निर्देश
- पुलिस ने आईपीसी की धारा 324 के तहत मारपीट मामला दर्ज कर केस किया था रफा-दफा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंधेरी(प.) के गांवदेवी डोंगर इलाके में 54 वर्षीय व्यक्ति पर जानलेवा हमले को लेकर मुंबई पुलिस को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि कुछ लोगों ने व्यक्ति पर हमला किया। वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। क्या पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की? यदि पुलिस ने ऐसा नहीं किया, तो पुलिस उपायुक्त को तलब कहना होगा। अदालत ने पुलिस को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (जानलेवा हमला) के अंतर्गत मामला दर्ज करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ के समक्ष 2 अगस्त को मोहम्मद मोइन कुरैशी उर्फ अजमेरी भाई की ओर से वकील आशीष दुबे और वकील अजय दुबे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया था कि अंधेरी (प.) के गांवदेवी डोंगर स्थित अजमेरी मस्जिद के आस-पास ड्रग्स तस्कर विधवा महिलाओं और नाबालिग बच्चों के एमडी ड्रग्स सप्लाई करवाते हैं। याचिकाकर्ता ने 25 जून को पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर एमडी ड्रग्स की सप्लाई करने वालों की शिकायत की। उस दिन पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और याचिकाकर्ता से मिली। पुलिस ने उनसे कहा कि उन्हें एमडी ड्रग्स सप्लाई करते हुए कोई नहीं मिला। जैसे ही पुलिस वहां से निकली, उसी दौरान सात लोगों ने याचिकाकर्ता पर लोहे के रड और बियर की बोतल से हमला कर दिया। हमलावरों ने याचिकाकर्ता को कहा कि एमडी का धंधा बंद करवाएगा। पुलिस मेरे साथ है। आज तेरा काम बजा देंगे।
याचिकाकर्ता के वकील अजय दुबे ने अदालत में दलील दी कि ड्रग्स तस्करों के हमले में याचिकाकर्ता के सिर पर गंभीर चोट आई थी। वह 10 दस दिनों तक अदालत में भर्ती रहे। उनके सिर पर 15 टांका लगा था। डीएन नगर पुलिस ने याचिकाकर्ता पर हमला करने वाले सलमान पशंम्बे और अफजल खान उर्फ राजू समेत सात आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 324, 504 और 34 के अंतर्गत मामला दर्ज किया, जिसमें आरोपियों को पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल गई। पुलिस ने पूरे मामले को रफा-दफा कर दिया।
खंडपीठ ने मामले की जांच करने वाले डीएन नगर पुलिस स्टेशन के सहायक पुलिस निरीक्षक वैभव खाड़े से पूछा कि इतने गंभीर मामले में मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? क्या इसके लिए पुलिस उपायुक्त को अदालत में बुलाना पड़ेगा। इस पर जांच अधिकारी खाड़े ने कहा कि पुलिस याचिकाकर्ता के बयान के आधार पर दर्ज एफआईआर में आईपीसी की धारा 307 को जोड़ने के लिए तैयार है। इस धारा के अंतर्गत आरोप साबित होने पर दोषियों को 10 साल की कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है। याचिकाकर्ता की मांग को पुलिस के मान लेने पर अदालत ने याचिका को समाप्त कर दिया।
Created On :   6 Aug 2023 8:58 PM IST