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बॉम्बे हाईकोर्ट: गलत सजा के लिए पुलिस और न्यायाधीशों को लगाई फटकार, दोषी ठहराया शख्स बरी
- अदालत ने नीचली अदालतों के दोषी ठहराए गए व्यक्ति को किया बरी
- पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को विलंबित रिटर्न दाखिल करने में देरी को माफ करने की शक्ति दी गई है
- हेट स्पीच का मामला - बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को मालवाणी इलाके में रामनवम
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने व्यक्ति को गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने वाले मामले में सबूतों को संभालने और सुनवाई करने के दौरान पुलिस और न्यायाधीशों के लापरवाही बरतने को लेकर फटकार लगाई। अदालत ने महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के संयुक्त निदेशक को अकादमी में न्यायाधीशों के साथ प्रशिक्षण स्तर पर इस मामले को उठाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एसएम मोदक की एकल पीठ के समक्ष दोषी आनंद सकपाल की ओर से वकील आनंद धोर्डे और वकील नितिन पाटिल की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि रजिस्टरों का निरीक्षण किए बिना वह हेराफेरी के बारे में निष्कर्ष निकालने की स्थिति में नहीं थे। मुझे अभियोजन साक्ष्य में कमी नजर आती है। यहां तक कि सभी गवाहों (शिकायतकर्ता को छोड़ कर) के मौखिक साक्ष्यों को भी रजिस्टर और दस्तावेजी साक्ष्य पेश करके उनके दांवों की पुष्टि नहीं की जा सकी। पीठ ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत के महत्वपूर्ण सबूत के नहीं होने को नजरअंदाज करके आनंद सकपाल को दोषी ठहराने पर नाराजगी जताई। पीठ ने कहा कि यह हितधारकों को दी गई जिम्मेदारी की घोर उपेक्षा है। जांच अधिकारी सेवानिवृत्त हो गये हैं. मैं पुलिस और न्यायाधीशों के इस उदासीन दृष्टिकोण को महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के संयुक्त निदेशक के सामने लाना आवश्यक समझता हूं, क्योंकि न्यायाधीशों को ट्रेनिंग दी जाती है. वह इस तथ्य को ट्रायल कोर्ट और वहां प्रशिक्षित अपीलीय अदालत के न्यायाधीशों के ध्यान में ला सकते हैं। अदालत ने आपराधिक विश्वासघात के एक मामले में दोषी आनंद सकपाल को बरी कर दिया। पोस्टमास्टर आनंद सकपाल पर 20 अगस्त 2006 से 28 फरवरी 2007 के बीच 28 हजार 834 रुपए की राशि का दुरुपयोग करने का आरोप था। उनके वरिष्ठों ने उन रजिस्टरों का निरीक्षण किया, जिनमें डाक विभाग के खातों में जमा की गई रकम की प्रविष्ठियां थी, उन्हें अपराध का संदेह हुआ। खाताधारकों से रकम की जांच करने के बाद उसके वरिष्ठों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। सकपाल पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 468 (जालसाजी) के तहत मामला दर्ज किया गया। रायगढ़ जिले के खालापुर में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष मुकदमा चलाया गया, जिन्होंने उन्हें जालसाजी के अपराध में दोषी कर दिया और 3 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। इसे रायगढ़ के पनवेल में सत्र न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी गई, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद सकपाल ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को विलंबित रिटर्न दाखिल करने में देरी को माफ करने की शक्ति दी गई है
दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने आयकर अधिनियम की धारा 119(2)(बी) के तहत देरी को माफ करने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को शक्ति प्रदान की है और अधिकारियों को गुण-दोष के आधार पर मामले का निपटारा करके पक्षों को ठोस न्याय देने में सक्षम बनाना है। अदालत ने 31 मई से पहले आयकर विभाग को धारा 154 के तहत याचिकाकर्ता के लंबित आवेदन को गुण-दोष के आधार पर निपटाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति के.आर.श्रीराम और न्यायमूर्ति डॉ.नीला गोखले की खंडपीठ के समक्ष पंकज कैलाश अग्रवाल की ओर से वकील राहुल शारदा और वकील एस.एस.नार्गोलकर की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि सीबीडीटी को आवेदन पर विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि देरी को माफ करने की शक्ति अधिकारियों को पर्याप्त न्याय करने में सक्षम बनाने के लिए दी गई है। पार्टियों द्वारा मामलों को गुण-दोष के आधार पर निपटाने और इन पहलुओं पर विचार करते समय अधिकारियों से यह ध्यान रखने की अपेक्षा की जाती है कि विलंबित रिटर्न दाखिल करने से किसी भी आवेदक को लाभ नहीं होगा। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने अपने फॉर्म में खातों की पुस्तकों का ऑडिट करवाया और धारा 139(1) के तहत निश्चित तारीख के भीतर धारा 80 के तहत कटौती का दावा करते हुए अपना रिटर्न दाखिल किया। याचिकाकर्ता का आवेदन धारा 264 के तहत इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता ने निर्धारित समय सीमा के भीतर पुनरीक्षण के लिए आवेदन नहीं किया था और इसमें लगभग ढाई साल की देरी हुई थी। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निश्चित रूप से तथ्य यह है कि एक करदाता को लगता है कि अगर उसे धारा 80 (आई सी) के तहत कटौती का लाभ नहीं मिलता है, तो उसे अधिक कर का भुगतान करना होगा, यह निश्चित रूप से एक ‘वास्तविक कठिनाई' होगी
हेट स्पीच का मामला - बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को मालवाणी इलाके में रामनवमी
इसके अलावा तीसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को यह सुनिश्चित करने को कहा कि रामनवमी पर मस्जिदों के बाहर से रैलियां निकाले जाने के दौरान कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब नहीं होगी। सोमवार को सुनवाई को याचिकाकर्ता की ओर से रामनवमी की रैली के दौरान हिंसा होने का अंदेशा जताया गया। मामले की सुनवाई 23 अप्रैल को रखी गई है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष आफताब सिद्दीकी की ओर से करीम पठान की याचिका पर सुनावाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील करीम पठान ने दलील दी कि राम नवमी की रैली के आयोजक जानबूझकर उन क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं, जहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। पिछले साल रैली के दौरान ही हिंसा भड़की थी। राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता डॉ.बीरेंद्र सराफ ने कहा कि राम नवमी की रैली के मार्ग बदले गए हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि सुनिश्चित करें कि मार्ग बदले गए हैं। यदि कानून-व्यवस्था की कोई समस्या है, तो आप को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। सराफ ने खंडपीठ को आश्वासन दिया कि पुलिस सतर्क रहेगी और अपने कर्तव्यों का जिम्मेदारी से पालन करेंगे। खंडपीठ ने कहा कि हम किसी भी सार्वजनिक रैली को नहीं रोक सकते, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि आपके अधिकारी राजनीतिक दल की परवाह किए बिना कोई भी उल्लंघन होने पर कानून के मुताबिक उचित कार्रवाई करेंगे। एक अन्य मामले में हम ने (विधायक टी राजा सिंह को) महाराष्ट्र में रैली आयोजित करने की अनुमति इस आश्वासन पर दी थी कि कोई उल्लंघन नहीं होगा। इसके बावजूद एफआईआर दर्ज करानी पड़ी। यदि कोई कानून का उल्लंघन करता है तो कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर वे कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम पुलिस से हलफनामा दाखिल करने के लिए कहेंगे। सराफ ने अदालत को बताया कि मुंबई और मीरा-भायंदर-वसई-विरार (एमबीवीवी) के पुलिस आयुक्त एक सप्ताह के भीतर निर्णय लेंगे कि संबंधित नेताओं के खिलाफ कथित नफरत फैलाने वाले भाषण के लिए एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। खंडपीठ ने सराफ को व्यक्तिगत रूप से भाषणों को देखने और यदि आवश्यक हो, तो पुलिस को सलाह देने के लिए भी कहा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने मीरा रोड में कथित नफरत भरे भाषणों के लिए भाजपा विधायकों नितेश राणे और गीता जैन और तेलंगाना विधायक टी राजा सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। राणे ने मीरा रोड के अलावा मालवणी, गोवंडी और घाटकोपर में कथित नफरत भरे भाषण दिए थे।
नालासोपारा फर्जी एनकाउंटर मामला- बॉम्बे हाई कोर्ट ने विशेष जांच टीम (एसआईटी) को आरोपी पुलिस वालों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) की जांच करने का दिया निर्देश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नालासोपारा में 2018 को जोगेंदर गोपाल राणा की फर्जी एनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम (एसआईटी) को गिरफ्तार दो पुलिसकर्मियों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) की जांच कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। अदालत ने एसआईटी को आरोपियों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 18 जून को रखी गई है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को सुरेंद्र गोपाल राणा की ओर से वकील दत्ता माने की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान एसआईटी ने अदालत के बताया कि आरोपी पुलिसकर्मी मनोज सकपाल और मंगेश चव्हाण का सीडीआर निकाला गया है। सीडीआर की इस आधार पर जांच की जा रही है कि दोनों पुलिसकर्मियों ने कही किस के निर्देश पर जोगेंदर राणा का फर्जी एनकाउंटर तो नहीं किया? एसआईटी ने इस मामले में 15 पुलिसकर्मियों के बयान दर्ज किया है। याचिकाकर्ता के वकील दत्ता माने ने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बिना मिलीभगत के दो पुलिसकर्मी एनकाउंटर करने का इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकते थे। खंडपीठ ने एसआईटी को आरोपी पुलिसकर्मियों के सीडीआर की जांच कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। पिछले दिनों खंडपीठ ने एसआईटी की जिम्मेदारी ठाणे के पुलिस आयुक्त आशुतोष डुंबरे को सौंपी दी थी। एसआईटी ने आरोपी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया है। वे इस समय न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। पालघर जिले के नालासोपारा में लोकल क्राइम ब्रांच में तैनात रहे पुलिस नाइक सकपाल और हेड कांस्टेबल चव्हाण ने याचिकाकर्ता सुरेंद्र गोपाल राणा के भाई जोगिंदर राणा की 23 जुलाई 2018 में फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी।
Created On :   15 April 2024 3:27 PM GMT