Mumbai News: महिला कर्मचारी के प्रति संवेदनहीनता के लिए इंडियन ओवरसीज बैंक पर 25 हजार का जुर्माना

महिला कर्मचारी के प्रति संवेदनहीनता के लिए इंडियन ओवरसीज बैंक पर 25 हजार का जुर्माना
  • अदालत ने बैंक को अपने कर्मचारी को मुंबई में पहले के क्लर्क के पद पर तैनात करने का दिया निर्देश
  • 10 साल के दिव्यांग बेटे के लिए चेन्नई में सहायक प्रबंधक के पद को छोड़ कर मुंबई में क्लर्क रहना किया स्वीकार

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने इंडियन ओवरसीज बैंक को अपनी महिला कर्मचारी के प्रति संवेदनहीनता के लिए 25 हजार का जुर्माना लगाया। जुर्माने की राशि नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड को भुगतान किया जाएगा। अदालत ने कहा कि हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि एक कर्मचारी जो किसी भी प्रशासन का केंद्र बिंदु होता है, सहानुभूति का हकदार है। विशेष रूप से उन तथ्यों के प्रकाश में जो हमारे सामने रखे गए हैं, यहां तक कि याचिकाकर्ता खुद भी एक बीमारी से पीड़ित है, जिसे विभिन्न चिकित्सा प्रमाण पत्रों के माध्यम से हमारे सामने पेश किया गया है।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति अश्विन भोबे की पीठ ने बैंक कर्मचारी भारती नीरज चौरसिया की याचिका पर कहा कि बैंक के दृष्टिकोण में मानवीय संवेदनशीलता' का अभाव है। अदालत ने याचिकाकर्ता के प्रमोशन को रद्द करने और उसे मुंबई में वापस बहाल करने के अनुरोध को अस्वीकार करने वाले बैंक के संचार (संदेश) को रद्द कर ते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को बैंक के मुंबई शाखा में क्लर्क के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।याचिकाकर्ता बैंक की मुंबई शाखा में क्लर्क के रूप में काम कर रही थी। उसके बाद उसे चेन्नई में सहायक प्रबंधक के पद पर पदोन्नत किया गया। वह अपने 95 फीसदी दृष्टिबाधित 10 वर्षीय बच्चे की देखभाल करने के लिए अपनी पदोन्नति छोड़ कर बैंक से मुंबई में क्लर्क के पद पर काम करने की अनुमति की मांग की। बैंक ने उसे अनुमति देने से मना कर दिया।

अदालत ने कहा कि बैंक द्वारा शुरू में न्यायालय के समक्ष यह बयान दिया गया था कि वह याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करेंगे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना रुख बदल दिया। बैंक के वकील ने दलील दी कि बैंक के पास याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करने के लिए कोई नीति नहीं है। बैंक के रुख से प्रभावित न होते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक मां होने के नाते अपने बच्चे के लिए बेहतर निर्णय ले सकती है, बजाय इसके कि वह बैंक के इस निर्णय पर निर्भर रहे कि चेन्नई उसके बच्चे के लिए बेहतर होगा। एक मां के रूप में वह अपने 10 वर्षीय बच्चे की कठिनाइयों को समझती है और उसे नए वातावरण में स्थानांतरित करने के कठिन कार्य के बारे में सचेत है। अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार कर रहा है। यदि याचिकाकर्ता भविष्य में पदोन्नति पद के लिए आवेदन करने के लिए खुद को पर्याप्त रूप से फिट समझती है, तो वह अवसर का लाभ उठा सकती है।

Created On :   10 Jan 2025 8:13 PM IST

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