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Mumbai News: चुनाव नतीजों के बाद अवैध होर्डिंग लगाने पर नकेल, बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में सीआईडी को फटकार
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने चुनाव नतीजों के बाद अवैध होर्डिंग लगाने पर नकेल का राज्य सरकार, जिला पुलिस प्रमुखों और पुलिस महानिदेशक को दिया निर्देश
- बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर कथित पुलिस मुठभेड़ में अक्षय शिंदे की हत्या को लेकर सीआईडी को लगाई फटकार
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने चुनाव नतीजों के बाद अवैध होर्डिंग लगाने पर नकेल का राज्य सरकार, जिला पुलिस प्रमुखों और पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि वे राज्य विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद अवैध होर्डिंग के खिलाफ 'सतर्क' रहें और राजनीतिक दलों और उनके समर्थकों द्वारा अवैध होर्डिंग और बैनर लगाने के किसी भी प्रयास के खिलाफ कार्रवाई करें। 18 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने सुस्वराज्य फाउंडेशन समेत कई संस्थाओं द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को यह भी निर्देश दिया कि वे पुलिस प्रमुखों को चुनाव नतीजों के बाद अवैध होर्डिंग के खतरे को रोकने में महानगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के सहायता के लिए आवश्यक पुलिस बल उपलब्ध कराने का निर्देश दें। यह मामला सार्वजनिक स्थानों पर राजनीतिक दलों द्वारा लगाए गए अवैध होर्डिंग और बैनर पर जनहित याचिकाओं से संबंधित है। पीठ ने एक बार फिर राजनीतिक दलों को चेतावनी दी कि वे कोई भी अवैध होर्डिंग, बैनर या पोस्टर न लगाने के अपने वचन का पालन करें। पीठ ने इस बात पर अपनी नाराजगी व्यक्त की कि महानगरपालिका और नगर परिषद उसके निर्देशों का पालन करने में विफल रहे। पीठ ने कहा कि कुछ महानगरपालिका के अधिकारियों ने केवल एक दिन के लिए अभियान चलाया और कुछ हलफनामों पर अपेक्षित अधिकारियों द्वारा शपथ नहीं ली गई। मुख्य न्यायाधीश ने राज्य के वकीलों से टिप्पणी की कि आप न्यायालय को हल्के में क्यों लेते हैं? आप मामले को कमजोर कर रहे हैं। होर्डिंग हटाना किसका काम है? यह आपका कर्तव्य है। ऐसे मामले को अदालत में क्यों लाया जाना चाहिए? और आप हलफनामा दाखिल नहीं कर सकते। इस प्रकार अदालत ने 29 महानगरपालिका और नगर पालिकाओं समेत 392 नगर परिषदों को इस साल 9 अक्टूबर के अपने आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में प्रासंगिक जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पीठ महानगर पालिका आयुक्तों को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने इस मामले में सहायता करने के लिए महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ को बुलाया और अपनी निराशा व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अवैध होर्डिंग्स की जांच करने का वैधानिक कर्तव्य होने के बावजूद महानगर पालिका और नगर परिषद ऐसा करने में विफल रहे हैं। राज्य सरकार को कानून द्वारा जो भी अनिवार्य किया गया है, उसका पालन नहीं किया जा रहा है। जब अदालत हस्तक्षेप करती है और आपको कर्तव्यों की याद दिलाती है, तो आप न्यायिक अतिक्रमण की बात करते हैं। पीठ ने कहा कि उसके आदेश का कोई भी उल्लंघन मुख्य आयुक्तों, जिला कलेक्टरों, जिला पुलिस प्रमुखों और नगर प्रशासन के निदेशकों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर कथित पुलिस मुठभेड़ में अक्षय शिंदे की हत्या को लेकर सीआईडी को लगाई फटकार
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बदलापुर स्कूल में बच्चियों के यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी की 23 सितंबर को कथित पुलिस मुठभेड़ में हत्या की जांच में लापरवाही बरतने के लिए महाराष्ट्र सीआईडी को फटकार लगाई। अदालत ने शिंदे के हाथों पर गोली के निशान और उसे दी गई पानी की बोतल पर फिंगरप्रिंट न होने पहलुओं को 'असामान्य' बताया। अदालत ने सीआईडी को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि मामले की जांच दो सप्ताह में पूरी हो जाए और सभी प्रासंगिक सामग्री मजिस्ट्रेट को सौंप दी जाए। मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी। पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष अक्षय शिंदे के पिता अन्ना अमृत शिंदे की ओर से वकील अमीत कटरनवरे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने कहा कि मामले की जांच को हल्के में लिया गया है और इसमें कई खामियां हैं। पीठ ने मृतक अक्षय शिंदे के हाथों पर गोली के निशान न होने और उसे दी गई पानी की बोतल पर फिंगरप्रिंट न होने पर भी सवाल उठाए और इन्हें 'असामान्य' बताया और मामले की जांच कर रहे मजिस्ट्रेट को सौंपी जाने वाली सामग्री एकत्र करने में देरी के लिए सीआईडी को फटकार लगाई। पीठ ने फोरेंसिक रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि यह असामान्य है कि मृतक के हाथों पर गोली का कोई निशान नहीं पाया गया और पानी की बोतलों पर कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिला। पीठ ने पूछा कि यह असामान्य बात है। किसी व्यक्ति के हाथ पर निशान तीन से चार दिनों तक रहता है। क्या नमूना प्राप्त करने के लिए उचित प्रयास किए गए थे। पीठ ने कहा कि 12 बोतलों में से किसी पर भी एक भी फिंगरप्रिंट नहीं मिला। इस पर कैसे विश्वास किया जाए। पीठ ने कहा कि कानून के तहत हिरासत में हुई मौतों के मामलों में मजिस्ट्रेट जांच अनिवार्य है। हमारा प्रयास सच्चाई का पता लगाना है। हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि हर सामग्री को एकत्र करके मजिस्ट्रेट के समक्ष रखा जाए और जांच सही तरीके से आगे बढ़े। हम निष्पक्ष जांच चाहते हैं। पीठ ने कहा कि अदालत को यह देखना होगा कि जांच सही तरीके से की जाए और अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो सवाल उठता है कि ऐसा क्यों नहीं किया गया? पीठ ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट के समक्ष सभी सामग्री नहीं रखी जाती है, तो रिपोर्ट समय पर प्रस्तुत नहीं की जाएगी। पीठ ने कहा कि आप (सीआईडी) मजिस्ट्रेट को विवरण न देकर प्रक्रिया में देरी क्यों कर रहे हैं? आप अभी भी बयान दर्ज कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि कानून के अनुसार मजिस्ट्रेट को सभी जानकारी दी जाए। रिपोर्ट आज आनी थी और पुलिस अभी भी बयान दर्ज कर रही है। पीठ ने कहा कि देखिए जांच को किस तरह हल्के में लिया गया है। मजिस्ट्रेट केवल यह देखेगा कि मौत हिरासत में हुई है या नहीं। अगर पुलिस उचित सामग्री भी प्रस्तुत नहीं करती है, तो मजिस्ट्रेट अपना काम कैसे करेगा? पीठ ने राज्य सीआईडी की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से पूछा कि जांच में खामियों को सही ठहराने के लिए वह कब तक और किस हद तक जाएंगे। जांच किस तरह की जा रही है, यह देखने और कहने के लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्माण के व्यवसाय में लगी संस्थाओं को जीएसटी को लेकर जारी नोटिस को रद्द करने की याचिका से पहले वैकल्पिक उपाय अपनाने की दी सलाह
बॉम्बे हाई कोर्ट में निर्माण व्यवसाय में लगी अलग-अलग संस्थाओं द्वारा माल और सेवा कर (जीएसटी) अधिनियमों के तहत जारी किए गए नोटिस को रद्द करने से संबंधित कई याचिकाएं दायर की गई हैं। अदालत ने इन संस्थाओं के याचिकाकर्ताओं को सुझाव दिया कि वे जीएसटी की नोटिस से राहत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले अपने मामले को चुनौती देने के लिए उपलब्ध सभी अन्य उपायों का इस्तेमाल करें। न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेन्द्र जैन की पीठ ने ओबेरॉय कंस्ट्रक्शन लिमिटेड द्वारा राजस्व और उसकी सहायक कंपनियों के खिलाफ दायर याचिका पर कहा कि क्या आवेदकों के खिलाफ कथित कर मांग अनुच्छेद 243(डब्ल्यू) के तहत महानगर पालिका के संचालन के लिए किसी भी गतिविधि से संबंधित है। यह केवल उचित न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है, न कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण और सारांश क्षेत्राधिकार का अभ्यास करने वाले हाई कोर्ट के माध्यम से, क्योंकि इसमें तथ्यात्मक पहलुओं की जांच की आवश्यकता हो सकती है, जिसे इस चरण में हाई कोर्ट द्वारा आसानी से नहीं किया जा सकता है। पीठ ने ओबेरॉय कंस्ट्रक्शन लिमिटेड द्वारा राजस्व और उसकी सहायक कंपनियों के खिलाफ दायर याचिका को संबंधित मामलों के संयुक्त निर्णय के लिए अग्रणी मामला माना है। सभी याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम 2017 (सीजीएसटी अधिनियम) के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ राजस्व द्वारा प्रस्तुत मांगों और कारण बताओ नोटिस को रद्द करने का अनुरोध किया है। ओबेरॉय कंस्ट्रक्शन की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील वी.श्रीधरन ने 28 जून 2017 को अधिसूचना में केंद्रीय कर (दर) को यह प्रस्तुत करने का निर्देश दिया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 243(डब्ल्यू) के तहत महानगर पालिका को सौंपे गए किसी भी कार्य से संबंधित किसी भी गतिविधि के माध्यम से केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों, स्थानीय प्राधिकरणों या सरकारी प्राधिकरणों द्वारा सेवाओं पर कर की कोई दर नहीं वसूली जाती है। पीठ ने सभी दलीलों पर विचार करते हुए मामले का निपटारा कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को एक अन्य उपाय का दावा करने का अधिकार दिया और जीएसटी के कारण बताओं नोटिस (एससीएन) का जवाब देने के लिए 6 महीने का समय दिया
Created On :   18 Nov 2024 10:46 PM IST