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Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे के जुन्नर में सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण को लेकर हुआ सख्त
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Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के जुन्नर में सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण को लेकर सख्त रुख अपना है। अदालत ने पुणे के जिला अधिकारी को अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। वकील विनोद नाथा भगत की दायर जनहित याचिका (पीआईएल) में दावा किया गया है कि जुन्नर के निमगांव में सरकारी भूमि पर 2004 से कब्जा किया गया है। इसको लेकर पुणे के जिला अधिकारी और जुनर के तहसीलदार से शिकायत की गई, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ के समक्ष वकील विनोद नाथा भगत की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से वकील साक्षी अग्रवाल ने दलील दी कि पुणे से जुन्नर स्थित निमगांव में सरकारी भूमि पर 2004 में सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण किया गया। याचिकाकर्ता ने इसकी शिकायत जिला अधिकारी और तहसीलदार से की, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। पीठ ने कहा कि किसी को भी सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण करने का अधिकार नहीं है। हम जिलाधिकारी और तहसीलदार को निदेश देते हैं कि वे याचिकाकर्ता के साथ-साथ भूमि पर कब्जा करने वाले व्यक्तियों को नोटिस जारी करेंगे। तहसीलदार संबंधित भूमि पर अवैध निर्माण का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण करेंगे। इसके बाद सक्षम प्राधिकारी सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा, जो अपने दावे के समर्थन में दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे। यदि भूमि सरकारी भूमि पर अवैध पाया जाता है, तो सक्षम प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि आदेश से चार महीने की अवधि के भीतर अवैध निर्माण हटा दिए जाए। इसके साथ ही पीठ ने जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि यदि सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, तो याचिकाकर्ता अदालत में अपील कर सकता है।
महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की है नियुक्ति
उधर महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की गई है। आयोग ने अपना कार्य शुरू कर दिया है। राज्य सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यह जानकारी दी। इसके साथ ही अदालत ने जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा कर दिया।मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ के समक्ष सागर शिंदे की ओर से वकील युवराज नरवडकर की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार के वकील ने हलफनामा दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि 16 सितंबर 2024 के शासनादेश (जीआर) के माध्यम से आयोग में अध्यक्ष और 2 सदस्यों की नियुक्ति की गई है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि आयोग कार्यरत है। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील युवराज नरवडकर ने नियुक्तियों पर आपत्ति जताई और दलील दी कि नियुक्त सदस्य अपेक्षित योग्यताएं पूरी नहीं करते हैं। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को स्वतंत्र कार्रवाई का कारण जानने की स्वतंत्रता है।आयोग का गठन 1 मार्च 2020 को एक शासनादेश द्वारा किया गया था। आयोग की भूमिका अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्थितियों का अध्ययन करना और उनके सुधार के लिए राज्य सरकार को सुझाव देना है। इसके अतिरिक्त, आयोग एससी और एसटी समुदायों के सदस्यों द्वारा उठाई गई शिकायतों की भी जांच कर सकता है। याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति 3 दिसंबर 2020 से नहीं की गई है और इस प्रकार एससी और एसटी समुदायों द्वारा उठाई गई शिकायतों का समाधान नहीं किया जा रहा है। पिछले साल 4 सितंबर पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस बारे में जवाब दाखिल करे कि दिसंबर 2020 से महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति क्यों नहीं की गई है? इसके बाद सरकार ने आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की।
Created On :   19 Feb 2025 10:27 PM IST