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Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुराचार के मामले में एक व्यक्ति को दी जमानत
- अदालत ने संबंध सहमति से बनाने का दिया हवाला
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने न्यायाधीश को व्हाट्सएप पर मैसेज करने वाली मां की माफी को किया स्वीकार
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी की 20 लाख से अधिक की रोकी गई ग्रेच्युटी को 31 जनवरी 2025 तक बीएमसी को देने का दिया निर्देश
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुराचार के मामले में एक व्यक्ति को जमानत दी। अदालत ने पाया कि संबंध सहमति से बने थे। रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि पीड़िता उस समय नाबालिग थी। न्यायमूर्ति आर.एन.लड्ढ़ा की एकलपीठ के समक्ष आकाश उतम वावलकर की दायर जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड देखने पर ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता दोनों सहमति से संबंध में थे। उनका रिश्ता अक्टूबर 2023 से जुलाई 2024 तक चला। आरोप है कि शादी का झांसा देकर याचिकाकर्ता ने पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए। बाद में वह उससे शादी करने से मुकर गया। उस समय पीड़िता 17 साल और 9 महीने की थी। याचिकाकर्ता के वकील निशी संघवी ने कहा कि दोनों ने सहमति से संबंध बनाए थे और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि संबंधित समय पर पीड़िता नाबालिग थी। इस मामले में जांच पूरी हो चुकी है। याचिकाकर्ता के पास से कुछ भी बरामद नहीं किया जाना है। वह इस अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों का पालन करने के लिए तैयार है, जिसमें मेडिकल जांच भी शामिल है। सरकारी वकील हर्षदा मोरे ने कहा कि याचिकाकर्ता ने शादी का झूठा वादा करके नाबालिग पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए। यह अपराध गंभीर है। याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच को छोड़कर जांच पूरी हो चुकी है। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद याचिकाकर्ता को जमानत दे दी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने न्यायाधीश को व्हाट्सएप पर मैसेज करने वाली मां की माफी को किया स्वीकार
दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति से बच्ची की कस्टडी के मामले में न्यायाधीश को व्हाट्सएप पर मैसेज करने वाली मां की माफी को स्वीकार कर लिया है। अदालत ने महिला को भविष्य में किसी न्यायाधीश से सीधे संपर्क करने की कोशिश नहीं करने की हिदायत दी। न्यायमूर्ति एम.एम.सथाये की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह भविष्य में किसी न्यायाधीश से सीधे संपर्क करने की कोशिश में शामिल न हो। पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने उससे पूछा था कि इस तरह के आचरण के लिए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए? इसके बाद महिला ने अपने किए के लिए माफी मांगी और अपने आचरण के लिए स्पष्टीकरण दिया। उसने दलील दी कि वह भावनात्मक रूप से तनावग्रस्त थी और संबंधित समय पर खुद को असहाय महसूस कर रही थी। इसलिए अपने बच्ची के लिए चिंता और हताशा के कारण व्हाट्सएप मोबाइल नंबर पर सीधे अदालत (न्यायमूर्ति एम.एम. सथाये) से संपर्क करने का प्रयास किया गया। महिला ने अपने पति को उनकी 6 वर्षीय बेटी की हिरासत देने के जिला अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर किया। जिला अदालत ने मां को मुलाकात का अधिकार दिया था और बच्चे के साथ वीडियो कॉल के लिए निर्देश भी जारी किया था। न्यायमूर्ति सथाये द्वारा 29 नवंबर को जिला अदालत के आदेश को बदलने से इनकार कर दिया, तो महिला ने न्यायाधीश को उनके निजी नंबर पर व्हाट्सएप के जरिए संदेश भेजा। न्यायाधीश ने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया था, फिर भी उन्हें एक अलग नंबर से और संदेश और वीडियो मिले। 2 दिसंबर को महिला ने न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया कि वह उन संदेशों को भेजा था। इस पर पीठ ने कहा कि मेरे प्रथम दृष्टया विचार में याचिकाकर्ता द्वारा न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने और न्यायाधीश के मन को प्रभावित करने के लिए कानून का अतिक्रमण करने का प्रयास किया गया। यह आचरण न्यायालय की अवमानना है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी की 20 लाख से अधिक की रोकी गई ग्रेच्युटी को 31 जनवरी 2025 तक बीएमसी को देने का दिया निर्देश
इसके अलावा एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) से सेवानिवृत्त महिला कर्मचारी शमा परवीन अब्दुल बशीर शेख की 20 लाख 55 हजार 975 रुपए की ग्रेच्युटी को 31 जनवरी 2025 तक बीएमसी को देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता मराठी भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाई, लेकिन हम पाते हैं कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि इस कमी ने याचिकाकर्ता के दैनिक कामकाज में बाधा उत्पन्न की हो। बीएमसी ने उसके खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं किया है। उसकी याचिका को स्वीकार की जाती है। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन भोबे की पीठ के समक्ष सोलापुर निवासी शमा परवीन अब्दुल बशीर शेख की ओर से वकील पंथी देसाई की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता 28 नवंबर 1991 से बीएमसी में मलेरिया सर्विलांस इन्वेस्टिगेटर के रूप में कार्यरत थी और वह 1 अप्रैल 2024 को सेवानिवृत्त हो गई। बीएमसी ने उसकी (याचिकाकर्ता) 26 लाख 94 हजार 238 रुपए ग्रेच्युटी रोक दी। याचिका में याचिकाकर्ता के पेंशन, ग्रेच्युटी ओर सार्वजनिक भविष्य निधि समेत सभी सेवानिवृत्ति लाभ को 18 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित भुगतान करने का अनुरोध किया गया। बीएमसी ने हलफनामा दाखिल कर अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता को 20 लाख 55 हजार 975 रुपए अतिरिक्त राशि इस गलत धारणा में दी गई कि वह मराठी भाषा में दक्षता है। याचिकाकर्ता से अतिरिक्त राशि के साथ स्टाफ क्वार्टर के लिए किराए का बकाया 1 लाख 29 हजार 42 रुपए वसूली के लिए ग्रेच्युटी रोकी गई है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता मराठी भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाई, लेकिन हम पाते हैं कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि इस कमी ने याचिकाकर्ता के दैनिक कामकाज में बाधा उत्पन्न की हो। हम बीएमसी को याचिकाकर्ता की रोकी गई शेष राशि उसे 31 जनवरी 2025 से पहले भुगतान करने का निर्देश देते हैं। ऐसा नहीं करने पर बीएमसी को भुगतान की राशि उस तिथि से 6 फीसदी की दर से ब्याज देने होंगे। यह ब्याज की राशि उस अधिकारी के वेतन से वसूल किया जाएगा, जो याचिकाकर्ता को भुगतान करने में देरी करेगा।
Created On :   23 Dec 2024 8:59 PM IST