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Mumbai News: बंट गए परिवार, पुरुष मतदाता जरांगे पाटील से प्रभावित, तो महिलाएं लाडकी बहिन से
- महाराष्ट्र को छह हिस्सों में समझना होगा
- लोग मुंबई को ही महाराष्ट्र समझते जबकि यहां गुजरातियों का कब्जा
- काका भतीजे मैदान में , रोचक बना मुकाबला
Mumbai News आइए! महाराष्ट्र और उसके चुनाव को समझते हैं। दरअसल, महाराष्ट्र जितना बड़ा है, उसके चुनाव उतने ही पेचीदा। बाकी देश अक्सर मुंबई को ही महाराष्ट्र समझता है जबकि इस नगरी के आधे हिस्से पर तो वर्षों से गुजरातियों का कब्जा है। महाराष्ट्र के नेताओं में यही भ्रम वर्षों से है। वे भी मुंबई को ही सबकुछ समझते रहे हैं। जबकि इस राज्य के प्राण छह टुकड़ों में बंटे हुए हैं, जो मुंबई में बैठकर दिखते ही नहीं। यही वजह है कि मुंबई छोड़ बाकी महाराष्ट्र में विकास के नाम पर केवल परती भूमि, सूखे खेत और उखड़ी सड़कें ही नजर आती हैं। कहते हैं साठ साल से यहां की राजनीति का सिरमौर कहा जाने वाला ‘पवार’ परिवार बारामती की तरह पूरे महाराष्ट्र को चमकाता तो इस प्रदेश की सूरत कुछ और ही होती!
खैर, चुनावी नजर से समझें तो महाराष्ट्र को छह हिस्सों में समझना होगा। पहला है- विदर्भ। कुल 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र के इस क्षेत्र में 62 सीटें हैं। विदर्भ नागपुर से अकोला तक 11 जिलों में फैला है। इसका आधा हिस्सा जो मप्र से लगा है, हिंदी भाषी कहलाता है। यही वजह है कि यहां भाजपा और कांग्रेस का जोर है। दूसरा हिस्सा- 46 सीटों वाला मराठवाड़ा है। छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) से लातूर तक 8 जिलों में फैले इस क्षेत्र में कांग्रेस छोड़ बाकी सभी पार्टियों का प्रभाव है। यह मराठा बाहुल्य है। तीसरा हिस्सा पश्चिम महाराष्ट्र है। सोलापुर से कोल्हापुर तक 5 िजलों में फैले मराठा प्रभाव वाले इस क्षेत्र में 70 सीटें हैं। यही वजह है कि सांगली, सातारा और पुणे वाले क्षेत्र में एनसीपी का प्रभाव ज्यादा है। एनडीए या महायुित वाले एकनाथ शिंदे साहब भी बीच में कहीं आ जाते हैं। चौथा हिस्सा उत्तर महाराष्ट्र है। नंदूरबार से अहिल्यानगर (अहमदनगर) तक 5 जिलों में फैला यह क्षेत्र ओबीसी और आदिवासी बहुल है। इसकी 35 सीटों पर भाजपा का प्रभाव कहा जा सकता है। पांचवां हिस्सा है- मुंबई, जहां 36 सीटें हैं। इन पर दोनों शिवसेना का प्रभाव ज्यादा है। तीसरे नंबर पर भाजपा और उसके बाद कांग्रेस का नंबर आता है। एनसीपी का यहां नामलेवा नहीं है। छठा और आखिरी हिस्सा है- कोंकण। ठाणे से सिंधुदुर्ग तक फैला यह समुद्री किनारा 39 सीटें समेटे है। सिंधुदुर्ग दरअसल, तल कोंकण कहा जाता है। तल मतलब नीचे... बहुत नीचे। वैसे ही जैसे राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर के लोगों को कहा जाता है- ऊंडा पाणी रा मिनख, वैसे ही यहां के लोग भी गहरे मन वाले होते हैं। विकास के नाम पर कभी किसी पार्टी ने यहां कुछ नहीं किया। हर परिवार का एक व्यक्ति ही यहां रहता है, बाकी मुंबई में काम करते हैंं। मोटे तौर पर पानी और मछली के अलावा यहां कुछ नहीं। कुछ लोग पर्यटकों को होम स्टे करवाकर रोजी कमा लेते हैं।
चुनावी हवा की बात करें तो मुख्य मुकाबला मराठा (जरांगे) वर्सेज ‘लाडकी बहिन’ में है। कहने को 6 अलग-अलग दल हैं जो 3- 3 का गुट बनाकर एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। एनडीए वाला गुट महायुति और ‘इंडिया’ वाला गुट महाविकास अघाड़ी (एमवीए) है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को फटका देने वाले जरांगे पाटील इस बार भी चुनाव तो नहीं लड़ रहे, लेकिन भाजपा को हराने की कसम खाते फिरते हैं। भाजपा ने इनकी काट के लिए मप्र की लाड़ली बहना यहां ‘लाडकी बहिन’ के नाम से लांच कर दी। जुलाई से शुरू योजना में महिलाओं को 1500 रुपए महीने के हिसाब से 7500 रु. मिल चुके हैं। प्रदेश की 2.40 करोड़ महिलाएं इसका लाभ ले रही हैं। आमचुनाव में जो मराठा परिवार एकतरफा जरांगे के कहने पर वोट कर रहे थे, लाडकी बहिन ने उनमें बंटवारा कर दिया लगता है। कहा जाता है कि घर के पुरुष मराठा आंदोलन की मशाल थामने वाले जरांगे के पक्ष में हैं लेकिन महिलाएं लाडकी बहिन के सम्मोहन में हैं। यानी वोटों का बंटवारा तय है।
बड़े नेताओं की बात करें तो सभी सुरक्षित हैं सिवाय एक के। ये एक हैं अजित दादा पवार। लोकसभा चुनाव में बारामती सर्वाधिक चर्चित सीट इसलिए थी क्योंकि ननद-भाभी का मुकाबला था। ननद यानी शरद पवार की बेटी सुप्रिया और भाभी यानी अजित की पत्नी सुनेत्रा। इस बार शरद पवार ने बारामती से अजित के खिलाफ अजित के भतीजे को उतारा है। अब यहां व्यक्ति तीन और रिश्ते चार हैं। तीन में दो भतीजे और दो काका हैं। अजित के भतीजे उनके सामने लड़ रहे हैं और खुद अजित शरद पवार के भतीजे हैं। अजित और शरद दोनों काका तो हैं ही। मुकाबला रोचक हो गया है।
Created On :   10 Nov 2024 6:42 PM IST