Mumbai News: बेकरी और होटलों को नोटिस मामले में एमपीसीबी से मांगा जवाब, माइक्रो प्लास्टिक पर सरकार को देना होगा जवाब

बेकरी और होटलों को नोटिस मामले में एमपीसीबी से मांगा जवाब, माइक्रो प्लास्टिक पर सरकार को देना होगा जवाब
  • अदालत ने पूछा कि क्या चारकोल स्वीकृत ईंधन है?
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने माइक्रो प्लास्टिक समुद्री जीवन और मनुष्य के लिए भयानक खतरा को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का दिया निर्देश

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बेकरी और होटलों को नोटिस के खिलाफ चारकोल (काठकोयला) व्यवसायियों की याचिका पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) से जवाब मांगा है। अदालत ने एमपीसीबी से पूछा किक्या चारकोल स्वीकृत ईंधन है, जो प्रदूषण नहीं करता है। 21 अप्रैल को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। बॉम्बे चारकोल व्यवसाय एसोसिएशन ने अपने याचिका में दावा किया कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा चारकोल को स्वीकृत ईंधन की मानक सूची में शामिल किया है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति मकरंद कार्णिक की पीठ के समक्ष बॉम्बे चारकोल मर्चेंट्स एसोसिएशन (बीसीएमए) की ओर से वकील प्रेरक चौधरी द्वारा दायर हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील केविक सीतलवाड़ ने दलील दी कि एमपीसीबी और मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने 9 जनवरी को हाई कोर्ट के उस आदेश की गलत व्याख्या की है, जिसमें एमपीसीबी और बीएमसी को निर्देश दिया गया था कि वे सुनिश्चित करें कि लकड़ी या कोयले पर चलने वाली बेकरी छह महीने के भीतर हरित ईंधन में परिवर्तित हो जाएं। चारकोल स्वीकृत ईंधन की सूची में है और यह कोयले जैसा नहीं है। उन्होंने ने कहा कि एमपीसीबी ने विभिन्न बेकरी, भट्टी होटल और रेस्तरां को नोटिस जारी कर कहा है कि वे चारकोल का उपयोग बंद करें अन्यथा उन्हें बंद कर दिया जाएगा। याचिका यह गलत धारणा है कि कोयला और चारकोल एक ही हैं और दोनों के बीच अंतर किए बिना नोटिस जारी किए जाते हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील प्रेरक चौधरी का दावा है कि चारकोल प्रदूषणकारी ईंधन नहीं है और इसके बजाय यह हरित श्रेणी के ईंधन के अंतर्गत आता है, कार्बन न्यूट्रल है और चारकोल जलाने से कोई फ्लाई ऐश नहीं निकलती है। उन्होंने कहा कि इस तरह के नोटिस के कारण कई लोग ईंधन बदल रहे हैं, जिससे चारकोल आपूर्तिकर्ताओं के ग्राहकों में कमी आ रही है। उन्होंने कहा कि चारकोल को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा अनुमोदित ईंधन की मानक सूची में भी शामिल किया गया है, जिसने अध्ययन किया है, जिसमें दिखाया गया है कि यह प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान नहीं देता है एमपीसीबी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील आशुतोष कुंभकोनी ने कहा कि उन्होंने लकड़ी और कोयले का उपयोग करने वाली बेकरियों को बदलने के लिए हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि नोटिस में कोयला का उल्लेख है, न कि चारकोल का। इन सभी पहलुओं पर एक विशेषज्ञ समिति द्वारा विचार किया जा सकता है। एमपीसीबी को स्पष्ट करना होगा और एसोसिएशन को यह संतुष्ट करना होगा कि चारकोल प्रदूषण नहीं कर रहा है। पीठ ने कहा कि 9 जनवरी के आदेश में पारित निर्देशों के मद्देनजर हम एमपीसीबी को यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि वह अपने सदस्यों को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस पर आगे बढ़ने से पहले प्रस्तावित हस्तक्षेपकर्ता एसोसिएशन को सुनवाई का अवसर दें। इसने बीसीएमए को दो सप्ताह के भीतर एमपीसीबी को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि एमपीसीबी सुनवाई करेगा और निर्णय लेगा कि क्या लकड़ी का कोयला स्वीकृत ईंधन की सूची में है और इससे कोई प्रदूषण नहीं होता है। पीठ ने एनजीओ वनशक्ति सहित हस्तक्षेपकर्ताओं को सुनवाई में भाग लेने की अनुमति दी और एमपीसीबी को छह सप्ताह के भीतर सुनवाई और निर्णय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। एसोसिएशन ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में दावा किया कि उनकी आजीविका विकृत और गंभीर रूप से पक्षपातपूर्ण हो रही है और संविधान की धारा 21 के तहत गारंटीकृत उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसमें कहा गया है कि अधिकारियों द्वारा केवल वैध लाइसेंस प्राप्त किए बिना ‘भट्टी’ का उपयोग करने वाली बेकरियों के संबंध में निर्देश जारी किए जाने थे, लेकिन वैध लाइसेंस प्राप्त करने वाले रेस्तरां अधिकारियों की कार्रवाई के कारण प्रभावित हो रहे हैं। पीठ ने एमपीसीबी और राज्य सरकार को 21 अप्रैल को या उससे पहले 9 जनवरी के आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया, जब वह अगली बार स्वत: संज्ञान (सुमोटो) याचिका पर सुनवाई करेगा।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने माइक्रो प्लास्टिक समुद्री जीवन और मनुष्य के लिए भयानक खतरा को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का दिया निर्देश

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने माइक्रो प्लास्टिक समुद्री जीवन और मनुष्य के लिए भयानक खतरा को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। सार्वजनिक धर्मार्थ संस्था कंजरवेशन ऐक्शन ट्रस्ट ने हस्तक्षेप याचिका में दावा किया है कि कैसे प्लास्टिक और सूक्ष्म प्लास्टिक न केवल मानव जीवन को, बल्कि समुद्री जीवन, वन्यजीवों और यहां तक कि भूमि पर गायों को भी प्रभावित कर रहे हैं। 21 अप्रैल को स्वतः संज्ञान याचिका पर अगली सुनवाई रखी गई है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति मकरंद कार्णिक की पीठ के समक्ष कंजरवेशन ऐक्शन ट्रस्ट की ओर से वकील रोनिता भट्टाचार्य ने हस्तक्षेप याचिका दायर किया। याचिका में दावा किया गया है कि प्लास्टिक के टुकड़े न केवल मछलियां, बल्कि अन्य समुद्री प्रजातियां भी खाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों समुद्री प्रजातियां मर जाती हैं। सूक्ष्म प्लास्टिक छोटे टुकड़े होते हैं, जिनकी लंबाई 5 मिमी से कम होती है। प्लास्टिक के कंटेनरों में बेचे जाने वाले विभिन्न उत्पादों के माध्यम से भी हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं, जिनमें बोतलबंद पानी, खाद्य तेल, दूध के पाउच, टेट्रा पैक जैसी पैकेजिंग और यहां तक कि दवाएं भी शामिल हैं। पीठ ने 4 अक्टूबर 2024 के अपने आदेश में प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या का संज्ञान लिया था। पीठ ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है कि माइक्रो प्लास्टिक पर रोक लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? 21 अप्रैल को मामले में अगली सुनवाई रखी गई है। पीठ ने स्वतः संज्ञान याचिका सुनवाई के दौरान कहा था कि समुद्र में फेंका गया माइक्रो प्लास्टिक युक्त कचरा भयावह है, क्योंकि यह न केवल समुद्री जीवन के लिए बल्कि मनुष्यों के लिए भी खतरा पैदा करता है। मनुष्यों द्वारा खाई जाने वाली मछलियों की आंतों में माइक्रो पॉलीथीन पाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत महासागर में ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच नामक एक क्षेत्र है जो फ्रांस के आकार से तीन गुना बड़ा है और पूरी तरह से माइक्रोप्लास्टिक से बना है और बड़े कचरे के साथ मिला हुआ है। पीठ ने कहा था कि यह इस तरह के कचरे की सीमा है। हम स्वतः संज्ञान ले रहे हैं। माइक्रो प्लास्टिक नालियों के माध्यम से समुद्र में जाता है और वापस (किनारे पर फेंका जाता है) आता है। इस माइक्रो प्लास्टिक पर प्रतिबंध होना चाहिए। मुझे नहीं पता कि प्रतिबंध हैं, लेकिन वे अप्रभावी हैं। इसका असर मुंबई के पूरे समुद्र तट पर पड़ेगा। पीठ ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी), केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और शहर में मत्स्य पालन संस्थान से भी सहायता मांगी थी।

Created On :   24 March 2025 9:10 PM IST

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