Mumbai News: केवल उत्पीड़न या मांग का आरोप क्रूरता नहीं हो सकती, हर किसी को रैली का अधिकार-रोक नहीं सकते

केवल उत्पीड़न या मांग का आरोप क्रूरता नहीं हो सकती, हर किसी को रैली का अधिकार-रोक नहीं सकते
  • सरकार ने आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता के लिए गिरफ्तार किए गए एक परिवार को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1997 में पुणे के एक परिवार की हत्या के दोषी की मौत की सजा से किया निर्देश बरी
  • अदालत ने बारामती पुलिस को लगाई फटकार, हर किसी को रैली का अधिका

Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में कहा कि केवल उत्पीड़न या मांग का आरोप क्रूरता नहीं हो सकती है। अदालत ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आईपीसी की धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न) के तहत क्रूरता के लिए गिरफ्तार किए गए एक परिवार को बरी करने के पुणे ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ के समक्ष राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि क्रूरता का सबूत एक ऐसी चीज है, जिसका जवाब इस मामले में दिया जाना बाकी है। केवल उत्पीड़न या मांग का आरोप क्रूरता नहीं हो सकती है। इस संबंध में आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मुख्य प्रावधान के लिए दिया गया स्पष्टीकरण (बी) आरोपी की मदद करता है। पीठ ने कहा कि उसने स्वीकार किया है कि जो घटनाएं घटीं और जो उसने अपनी शिकायत में बताईं, उनकी शिकायत उसके माता-पिता ने नहीं की थी। पीठ ने यह भी कहा कि देवर और उसकी पत्नी अलग-अलग रह रहे थे। जुलाई-2001 और दिसंबर-2001 के बीच की किसी भी घटना में शिकायतकर्ता ने कोई विवरण नहीं दिया है, न तो शिकायतकर्ता ने कभी शिकायत की है। इसके अलावा उसके माता-पिता या उसकी बड़ी बहन ने भी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है। उसकी बड़ी बहन का बयान दर्ज नहीं किया गया और अभियोजन पक्ष ने उसका साक्ष्य भी पेश किया। पत्नी अंजली सोनावने ने पति विशाल प्रकाश शिंदे समेत सास, ससुर, देवर और देवर की पत्नी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया कि उसके साथ मारपीट की गई और उससे उसके माता-पिता से 80 हजार रुपए लाने की मांग की गई। यह राशि शादी के दौरान उसके पति के परिवार द्वारा किए गए खर्च थे। उसने यह भी कहा कि उसके साथ लात-घूंसों से मारपीट की गई।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1997 में पुणे के एक परिवार की हत्या के दोषी की मौत की सजा से किया निर्देश बरी

वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को 1997 में पुणे के एक परिवार की हत्या के दोषी की मौत की सजा से निर्देश बरी कर दिया। अदालत ने पुणे कोर्ट के 14 दिसंबर 2021 के दोषी को मौत की सजा सुनाने के फैसले को रद्द कर दी। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने राज्य सरकार की दोषी भागवत बाजीराव काले को पुणे की अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि मौत की सजा की पुष्टि करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। पीठ ने पाया कि काले मौत की सजा के लायक नहीं है। पीठ ने कहा कि भागवत काले को तत्काल रिहा किए जाने का अधिकारी है। पुणे की अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि इस तरह के क्रूर और बर्बर कृत्य से समाज और यहां तक कि मानवता की अंतरात्मा भी स्तब्ध है। आरोपी द्वारा इस तरह का बर्बर कृत्य करना समाज की सद्भावना के लिए खतरा है। आरोपी को मृत्युदंड की सजा दी जानी चाहिए। 15 मई 1997 को रमेश जयकुमार पाटिल (55), विजया कुमारी उर्फ विजया पाटिल(47), पूजा पाटिल (13) और मंजूनाथ पाटील (10) की उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी। कर्नाटक के हुबली के रहने वाले पाटिल किराए के अपार्टमेंट में रहते थे, जहां काले की पत्नी गीता घरेलू नौकरानी के रूप में काम करती थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार काले, गीता और उनके रिश्तेदार साहेबराव ने परिवार की हत्या कर दी और लगभग 49 लाख रुपए की नकदी और चांदी के गहने लेकर भाग गए। उन्हें सितंबर 1997 में गिरफ्तार किया गया था। गीता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और साहेबराव को पुणे कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई, जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि जब उन्होंने अपराध किया था, तब वह नाबालिग था। हाई कोर्ट ने मामले में उनकी रिहाई का आदेश दिया। 2009 में काले की फिर से गिरफ्तारी के बाद उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया और उसे 2021 में पुणे की अदालत ने दोषी ठहराया।

अदालत ने बारामती पुलिस को लगाई फटकार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हर किसी को रैली करने के अधिकार है और उसे रोक नहीं सकते हैं। बारामती पुलिस ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पुणे जिला अध्यक्ष के संविधान दिवस, हजरत टीपू सुल्तान स्मृति दिवस और भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद स्मृति दिवस पर रैली आयोजित करने के अधिकार को सीमित नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे की पीठ के समक्ष फैयाज इलाही शेख की ओर से वकील तपन थत्ते और विवेक अरोटे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील तपन थत्ते ने दलील दी कि याचिकाकर्ता द्वारा संविधान दिवस, हजरत टीपू सुल्तान स्मृति दिवस और भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद स्मृति दिवस पर नवंबर में रैली आयोजित की जानी थी, लेकिन बारामती पुलिस ने उन्हें अनुमति देने से इनकार कर दिया था। जबकि पिछले साल भी इसी तरह की रैली की योजना बनाई गई थी, लेकिन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्यों ने इसका विरोध किया था, जिसके कारण पुलिस ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। इस साल भी यही मुद्दा उठा और पुलिस ने फिर से अनुमति देने से इनकार कर दिया। पीठ ने बारामती पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि हर किसी को रैली करने का अधिकार है। आप उस अधिकार को कम नहीं कर सकते हैं। पीठ ने अतिरिक्त सरकारी वकील से पूछा कि क्या कठिनाई है? पुलिस को कानून और व्यवस्था का प्रबंधन करना है। आप रैली का मार्ग बदल सकते हैं, लेकिन आप अनुमति देने से इनकार नहीं कर सकते हैं। याचिकाकर्ता के वकील थत्ते ने कहा कि याचिकाकर्ता 13 दिसंबर को रैली आयोजित करना चाहते हैं, लेकिन सीमित समय को देखते हुए वह इसे अगले सप्ताह आयोजित करना चाहते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता को अनुमति के लिए फिर से आवेदन करने का निर्देश दिया, साथ ही पुलिस को निर्णय लेने के लिए कम से कम दो वैकल्पिक तिथियां भी दीं। पीठ ने कहा कि हम पुलिस अधीक्षक से इस सप्ताह निर्णय लेने के लिए कहेंगे। थत्ते ने यह भी बताया कि मेहराब और बैनर लगाने की अनुमति खारिज कर दी गई थी, लेकिन पीठ ने इस मुद्दे पर विचार करने से इनकार कर दिया।

Created On :   9 Dec 2024 9:32 PM IST

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