बॉम्बे हाईकोर्ट: सचिन वाझे के बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाई कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सचिन वाझे के बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाई कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
  • अदालत 23 अगस्त को सुनाएगा फैसला
  • याचिका में सीबीआई के मामले में जमानत का अनुरोध
  • 100 करोड़ की वसूली का मामला
  • नागपुर के महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रवेश के इच्छुक विकलांग छात्र को हाई कोर्ट से बड़ी राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार मुंबई पुलिस के बर्खास्त सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वझे की 100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत 23 अगस्त को अपना फैसला सुनाए गा। वाझे ने याचिका में सीबीआई के भ्रष्टाचार के मामले में जमानत का अनुरोध किया है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष सचिन वाझे की दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील आबाद पोंडा ने दलील दी कि 100 करोड़ रुपए की वसूली के मामले में उनके मुवक्किल को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है। जबकि सीबीआई ने इस मामले में याचिकाकर्ता को क्षमादान देते हुए सरकारी गवाह बनाया है। उसे हिरासत में रखा गवाह के संरक्षण कानून का भी उल्लंघन है। इस मामले के मुख्य आरोपी तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख समेत सभी आरोपियों को जमानत मिल गई है। ऐसे में याचिकाकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि हम में 23 अगस्त को अपना फैसला सुनाएंगे।‌ 2021 के एंटीलिया बम कांड और व्यवसायी मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने सचिन वाझे को गिरफ्तार किया है। वह तलोजा जेल में बंद है। यदि सीबीआई के मामले में वझे को जमानत मिल भी जाती है, तो उनके जेल से बाहर आना संभव नहीं है।

नागपुर के महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रवेश के इच्छुक विकलांग छात्र को हाई कोर्ट से बड़ी राहत

बॉम्बे हाई कोर्ट ने नागपुर के महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रवेश के इच्छुक विकलांग छात्र को लेकर अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय विकलांग व्यक्तियों के कोटे में बैचलर ऑफ वेटनरी साइंस एंड एनिमल हसबैंड्री डिग्री कोर्स 2024-25 में प्रवेश पाने के इच्छुक उम्मीदवारों की अंतिम मेरिट सूची में छात्र का नाम शामिल करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा। छात्र को प्रवेश निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार दिया जाएगा। विश्वविद्यालय के छात्र को अयोग्य ठहराने वाले पात्र उम्मीदवारों की अंतिम मेरिट सूची और उसकी उम्मीदवारी को अस्वीकार करने के आदेश को रद्द किया जाता है। न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश एस.पाटिल की पीठ समक्ष पुणे के जुन्नार निवासी मयूरेश दत्तात्रेय गुंड की ओर से वकील पूजा वी.थोरात और वकील त्रिशा चौधरी की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता मेडिकल बोर्ड द्वारा हस्ताक्षरित दिनांक 8 अगस्त 2024 के शारीरिक रूप से विकलांग प्रमाण पत्र की एक प्रति ई-मेल सहित सभी स्वीकार्य तरीकों से महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय को भेजेगा। पीठ ने कहा कि शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के लिए सिविल सर्जन एवं मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित विकलांगता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है। छात्र द्वारा 12 जुलाई 2024 को प्रस्तुत प्रमाण पत्र पर आर्थोपेडिक सर्जन द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं, लेकिन इस पर सिविल सर्जन के कार्यालय की मुहर लगी हुई है। इसके लिए छात्र को आर्थोपेडिक सर्जन द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण-पत्र जारी किए जाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

याचिकाकर्ता की वकील पूजा थोरात ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने अपेक्षित प्रक्रिया का पालन करके शारीरिक रूप से विकलांग प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आवेदन किया था। हालांकि 12 जुलाई 2024 को याचिकाकर्ता को जारी किए गए प्रमाण पत्र पर आर्थोपेडिक सर्जन के हस्ताक्षर थे, लेकिन उस पर सिविल सर्जन के कार्यालय की मुहर लगी हुई थी। छात्र को इस तरह के प्रमाण पत्र जारी किए जाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि उसका इस पर कोई नियंत्रण नहीं था। छात्र को 8 अगस्त 2024 को याचिकाकर्ता को 45 फीसदी विकलांगता दर्शाने वाला एक और प्रमाण पत्र जारी किया गया। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने छात्र को प्रवेश पाने के लिए विकलांग व्यक्तियों की श्रेणी में पात्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

Created On :   14 Aug 2024 10:41 PM IST

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