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बॉम्बे हाईकोर्ट: पूर्व एनसीपी कार्यकर्ता कैलाश प्रेमचंद रामचंदानी को जमानत देने से किया इनकार
- गंभीर अपराधों से संबंधित मुकदमे में केवल देरी किसी आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकती
- 1 मई 2019 के गढ़चिरौली नक्सली हमले में 15 पुलिसकर्मियों का मामला
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि गंभीर अपराधों से संबंधित मुकदमे में केवल देरी अपने आप में किसी आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकती है। हम इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते कि 1 मई 2019 को हुए एक बारूदी सुरंग विस्फोट में 15 पुलिसकर्मी मारे गए थे। अदालत ने इस मामले में आरोपी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कार्यकर्ता कैलाश प्रेमचंद रामचंदानी को जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष वकील श्याम देवानी और वकील सचेत मखीजा की ओर से कैलाश प्रेमचंद रामचंदानी की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष (जांच एजेंसी) द्वारा बताई गई रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री प्रथम दृष्टया साजिश के हिस्से के रूप में याचिकाकर्ता की मिलीभगत का संकेत देती है। रिकॉर्ड पर मौजूद बयानों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता नक्सली के संपर्क में था। वह जंगल का दौरा किया था और उसने सह-अभियुक्त (सह-आरोपी) को उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को पुलिस वाहन के गुजरने की सूचना दी थी।
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने में मदद की थी और 1 मई 2019 के गढ़चिरौली के जम्भुल खेड़ा में नक्सली को बारूदी सुरंग लगा कर विस्फोट करने में मदद की। इस नक्सली हमले में क्विक रिस्पांस टीम के 15 पुलिस जवान मारे गए थे। इसे ध्यान में रखते हुए इस मामले में मुकदमे में देरी याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकती है।
याचिकाकर्ता के वकील ने मुकदमे में देरी के अलावा दलील दी कि इस मामले में हाई कोर्ट ने सह आरोपी सत्यनारायण रानी को जमानत दे दी है। विशेष सरकारी वकील अरुणा एस.पई ने रामचंदानी की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि रानी की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है। खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एनसीपी के तहसील अध्यक्ष रहे रामचंदानी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
Created On :   4 April 2024 7:59 PM IST