रोजगार की मजबूरी: जूनियर कॉलेजों के करीब 95 फीसदी विद्यार्थियों ने चुना अंग्रेजी का विकल्प

रोजगार की मजबूरी: जूनियर कॉलेजों के करीब 95 फीसदी विद्यार्थियों ने चुना अंग्रेजी का विकल्प
  • महामुंबई में लाखों हिंदी भाषी
  • सिर्फ 478 विद्यार्थी ही करेंगे हिंदी माध्यम से पढ़ाई
  • उर्दू, मराठी, गुजराती समेत भारतीय भाषाओं में पढ़ाई के लिए महज 12,657 विद्यार्थियों ने लिया दाखिला

डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। इंजीनियरिंग और डॉक्टरी की पढ़ाई स्थानीय भाषाओं में शुरु करने के दावों के बीच हकीकत यह है कि विद्यार्थी ग्यारहवीं, बारहवीं जैसी कक्षाओं में भी अंग्रेजी माध्यम में ही पढ़ाई कर रहे हैं। मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में इस वर्ष अब तक ग्यारहवीं में कुल 2 लाख 37 हजार 806 विद्यार्थियों ने दाखिला लिया है। इनमें से 2 लाख 25 हजार 149 यानी 94.67 फीसदी विद्यार्थियों ने पढ़ाई के लिए अंग्रेजी माध्यम को चुना है। सिर्फ 12 हजार 657 (5.33 फीसदी) विद्यार्थी भारतीय भाषाओं में पढ़ाई करेंगे। मुंबई, ठाणे समेत महामुंबई (एमएमआर) क्षेत्र में लाखों हिंदीभाषी हैं। लेकिन विद्यार्थियों को हिंदी भाषा में उच्च शिक्षा हासिल करने में ज्यादा रुचि नजर नहीं आ रही है। कुल 478 विद्यार्थियों ने ही हिंदी को ग्यारहवीं-बारहवीं में पढ़ाई का माध्यम चुना है।

मराठी माध्यम की आधी सीटें खालीं

हिंदी माध्यम में पढ़ाई के लिए उपलब्ध सीटों में से 2042 सीटें खाली हैं। मराठी माध्यम में उपलब्ध सीटों में से करीब आधी सीटें खाली हैं और अब तक 9 हजार 228 विद्यार्थियों ने ही मराठी माध्यम में दाखिला लिया है। इसी तरह गुजराती भाषी विद्यार्थियों ने भी अपनी मातृभाषा से बेरुखी दिखाई है और सिर्फ 64 विद्यार्थी ही इस माध्यम से ग्यारहवीं, बारहवीं में पढ़ने के लिए सामने आए हैं। उर्दू माध्यम की स्थिति थोड़ी बेहतर है और 2 हजार 887 विद्यार्थियों ने पढ़ाई के लिए उर्दू माध्यम को चुना है। बता दें कि ग्यारहवीं में दाखिले के तीन सामान्य और दो विशेष दौर हो चुके हैं। 46 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों के दाखिले बाकी हैं।

डॉ. दयानंद तिवारी, सेवानिवृत्त प्रोफेसर के मुताबिक जिन महाविद्यालयों में ग्यारहवीं, बारहवीं में हिंदी और दूसरी स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई के विकल्प हैं उनमें से ज्यादतर में अच्छे शिक्षक और दूसरे संसाधन नहीं हैं। साथ ही विद्यार्थियों को पता होता है कि उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करनी है तो अंग्रेजी माध्यम में ही ज्यादा विकल्प होंगे। इसीलिए ज्यादातर विद्यार्थी दसवीं के बाद अंग्रेजी माध्यम में ही पढ़ाई का विकल्प चुनते हैं। सरकार की नीतियों से ऐसा प्रतीत होता है कि वह भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई को ही बढ़ावा देना चाहती है

श्रीपाद जोशी, सदस्य राज्यभाषा सलाहकार समिति के मुताबिक देश के 90 फीसदी स्नातक नौकरी लायक नहीं माने जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि वे जिस भाषा को बोलते और समझते हैं, उसमें पढ़ाई ही नहीं करते। अपनी भाषा में बात करने से आत्मविश्वास आता है। अंग्रेजों के जाने के बाद हमारी सरकारों ने हमें अंग्रेजी का गुलाम बना दिया। जब तक स्थानीय भाषाएं रोजगार और रिसर्च की भाषा नहीं बनेंगी, उसे विद्यार्थी क्यों पढ़ना चाहेंगे

भारतीय भाषाओं में पढ़ाई के लिए न सीटें न विद्यार्थी

माध्यम

उपलब्ध सीटें

दाखिला लिया

सीट खाली

अंग्रेजी

3,60,345

2,25,149

1,35,196

मराठी

18,440

9,228

9,212

उर्दू

4,350

2,887

1,463

हिंदी

गुजराती

2,520

300

478

64

2,042

236


Created On :   9 Aug 2023 5:50 PM IST

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