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बॉम्बे हाईकोर्ट: वकील सतीश महादेवराव उके को तलोजा जेल से आर्थर रोड स्थानांतरित करने पर रोक, कथित बांग्लादेशी की गिरफ्तारी भी रद्द
- आर्थर रोड जेल के 50 कैदियों के लिए बने बैरक में रह रहे 220 कैदी
- प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के सदस्य को नवी मुंबई पुलिस के निर्वासन (तड़ीपार) आदेश को किया रद्द
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में 156 परिवारों के घरों को तोड़कर बेघर करने के लिए एसआरए से मांगा जवाब
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने कथित बांग्लादेशी महिला की गिरफ्तारी को किया रद्द
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने नागपुर के वकील सतीश महादेवराव उके को तलोजा जेल से मुंबई की भीड़ वाली आर्थर रोड जेल में स्थानांतरित करने पर रोक लगा दी है। अदालत ने आरोपी उके को तलोजा जेल से भीड़ वाले आर्थर रोड जेल में स्थानंतरित करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को स्थगित कर दिया है। 16 जनवरी 2025 को मामले की अगली सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ के समक्ष सतीश उके को तलोजा जेल से आर्थर रोड जेल में स्थानांतरित करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान मुंबई केंद्रीय कारागार के अधीक्षक की रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें उन्होंने आर्थर रोड जेल में आरोपियों की भीड़ पर चिंता जताई गई है। पीठ ने जेल प्रशासन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि आर्थर रोड जेल के प्रत्येक बैरक में जहां क्षमता और स्वीकृत संख्या 50 कैदियों को रखने की है, वहां आज की तारीख में 200 से 220 कैदी रह रहे हैं। आर्थर रोड जेल में बम विस्फोट के मुकदमे, आतंकवाद से संबंधित अपराध और संगठित अपराध सहित गंभीर अपराधों के आरोपी रहते हैं। इससे जेल पर भारी बोझ पड़ता है, क्योंकि सभी विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीमित संसाधन हैं। पीठ ने कहा कि नीचे पारित किए गए दोहरे आदेश तब तक स्थगित रहेंगे, जब तक कि उके के वर्तमान आपराधिक आवेदन पर न्यायालय द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता है। उके को शुरू में आर्थर रोड जेल में रखा गया था, लेकिन भीड़ भाड़ के कारण जनवरी 2023 में उसे तलोजा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। उके ने आर्थर रोड जेल में वापसी की मांग की और 15 जून 2024 को एक विशेष अदालत ने उसे अनुमति दे दी। राज्य सरकार ने इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के सदस्य को नवी मुंबई पुलिस के निर्वासन (तड़ीपार) आदेश को किया रद्द
दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्य अब्दुल रहीम याकूब सैय्यद के खिलाफ नवी मुंबई पुलिस के निर्वासन (तड़ीपार) के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने पाया कि निर्वासन का आदेश कानून में टिकने योग्य नहीं है और उसे रद्द कर दिया। पुलिस उपायुक्त और संभागीय आयुक्त द्वारा पारित दोनों आदेशों को अमान्य घोषित कर दिया गया। न्यायमूर्ति श्याम चांडक की एकल पीठ के समक्ष अब्दुल रहीम याकूब सैय्यद की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में नवी मुंबई पुलिस के याचिकाकर्ता को निर्वासित किए जाने को चुनौती दी गई। पीठ ने याचिकाकर्ता के निर्वासन को रद्द करते हुए कहा कि पुलिस अधिकारियों के पास इस मामले में निर्वासन को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत का अभाव था। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को पंद्रह महीने के लिए निर्वासित करने का कारण रिकॉर्ड से स्पष्ट नहीं है। इस प्रकार निर्वासन का आदेश अनुचित है। पनवेल के पुलिस उपायुक्त ने सैय्यद को नवी मुंबई से 15 महीने के लिए निर्वासित किया था। इस निर्णय को बाद में कोकण डिवीजन के संभागीय आयुक्त ने बरकरार रखा। सैय्यद ने अपने वकील इब्राहिम हरबत के माध्यम से हाई कोर्ट में उस आदेश को चुनौती दी। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि सैय्यद गैरकानूनी सभा, निषेधाज्ञा का उल्लंघन और जाति-आधारित विवादों को भड़काने में शामिल था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में 156 परिवारों के घरों को तोड़कर बेघर करने के लिए एसआरए से मांगा जवाब
तीसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में 156 परिवारों के घरों को तोड़कर बेघर करने के लिए झोपड़पट्टी पुनर्वनस प्राधिकरण (एसआरए) को हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि 156 झोपड़ाधारकों का पुनर्वसन किए बिना एसआरए और बिल्डर की मिली भगत से उनके घर तोड़ दिया गया। 2 जनवरी को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे और न्यायमूर्ति अद्वैत सेथना की अवकाश कालीन पीठ के समक्ष पिंपरी चिंचवड़ महानगरपालिका के पूर्व नगरसेवक ईश्वर ठोंबरे की ओर से वकील अलंकार किरपेकर की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील अलंकार किरपेकर ने दलील दी कि पुणे के पिंपरी चिंचवड में आर.के.डेवलपर ने एसआरए के अंतर्गत झोपड़ाधारकों को उनके झोपड़े की जगह पक्का घर देने का करार किया। बिल्डर ने झोपड़ाधारकों के साथ किए गए करार को पूरा नहीं किया, बल्कि 156 झोपड़ाधारकों का पुनर्वसन किए बिना उनके घरों (झोपड़ों) को तोड़ दिया गया। इसमें बड़ी संख्या में पात्र झोपड़ाधारकों को अपात्र करार दिया गया। उनकी जगह एसआरए इमारत प्रोजेक्ट में बाहरी लोगों को शामिल कर लिया गया। झोपड़ाधारकों ने बिल्डर की एसआरए के पास शिकायत की, लेकिन उनकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके बाद उन्होंने पूर्व नगरसेवक ईश्वर ठोंबरे के माध्यम से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीठ ने इस मामले में एसआरए को हलफनामा दाखिल जवाब देने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 2 जनवरी 2025 को रखी है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कथित बांग्लादेशी महिला की गिरफ्तारी को किया रद्द
चौथे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कथित बंग्लादेशी महिला को उसे गिरफ्तारी का आधार बताए बिना गिरफ्तार करने पर ठाणे पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने रिया अरविंद बर्डे की गिरफ्तारी के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने पाया कि कानूनी अनिवार्यताओं और ठाणे पुलिस आयुक्त द्वारा पहले के अदालत के आदेश पर जारी किए गए परिपत्र के बावजूद पुलिस आरोपी को गिरफ्तारी का आधार बताने में विफल रही। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने रिया बर्डे की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने का उद्देश्य पवित्र है। याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) का उल्लंघन है। रिया बर्डे के वकील ऋषि भूता ने दलील दी कि गिरफ्तारी के आधार के बारे में याचिकाकर्ता को जानकारी दी गई। रिया को उल्हासनगर के हिल लाइन पुलिस स्टेशन ने इस आरोप के आधार पर गिरफ्तार किया था कि वह और उसका परिवार कथित रूप से बांग्लादेशी है। उस पर जालसाजी, धोखाधड़ी और विदेशी अधिनियम का उल्लंघन करने का आरोप है। पुलिस ने अपने हलफनामे में गिरफ्तारी में कानून के पालन का दावा किया गया था। पीठ ने इसमें विसंगतियां पाईं और पुलिस की गिरफ्तारी के आदेश को रद्द कर दिया।
Created On :   24 Dec 2024 10:42 PM IST