मंडला: क्लीन लैंड सौदागरों को बेची, ट्रस्ट के पास बचा अतिक्रमण वाला हिस्सा

क्लीन लैंड सौदागरों को बेची, ट्रस्ट के पास बचा अतिक्रमण वाला हिस्सा
  • मेहेर बाबा ट्रस्ट की ‘दान की जमीन’ का मामला
  • खसरा नंबर 158 की पूरी 0.66 एकड़ जमीन पर तथा 157 की करीब एक एकड़ जमीन पर अतिक्रमण है।
  • ‘अतिक्रमण’ के नाम पर लिखी गई सौदे की पटकथा

डिजिटल डेस्क,जबलपुर/मंडला। 72 एकड़ की मिल्कियत वाले मेहेरबाबा चेरिटबिल ट्रस्ट (मंडला) की जमीन पर सौदागरों की ऐसी नजर लगी की आज ट्रस्ट के पास 2 एकड़़ जमीन भी नहीं बची। जो बची, उस पर अतिक्रमण है।

खसरा नंबर 158 की पूरी 0.66 एकड़ जमीन पर तथा 157 की करीब एक एकड़ जमीन पर अतिक्रमण है। एम.एस. ईरानी (मेहेरबाबा) के अहमदनगर (महाराष्ट्र) के मूल ट्रस्ट ‘श्री अवतार मेहेरबाबा परपीचूअल पब्लिक चेरिटेबिल ट्रस्ट’ को खसरा नंबर 159 की जो 4.40 एकड़ जमीन समझौते के तहत बिना प्रतिफल दान में दी गई, उस पर भी कच्चे-पक्के कब्जे हैं।

कुल 27 एकड़ में से करीब 21 एकड़ ‘क्लीन लैंड’ मंडला ट्रस्ट के प्रबंधक धीरेन्द्र चौधरी ने खुद खरीद ली और बाद में 10 एकड़ जमीन जबलपुर व मंडला के डेवलपर को बेच दी।

दान की जमीन पर शुरू से लगी थी नजर

सूत्रों के अनुसार, मंडला ट्रस्ट के न्यासी प्रबंधक धीरेन्द्र चौधरी की शुरू से नजर उनके पूर्वजों द्वारा दान की गई जमीन पर लगी थी और वे इस पर अपना कब्जा चाह रहे थे। यही वजह रही कि अपने करीब साढ़े तीन दशक के प्रबंधकीय कार्यकाल दौरान न तो उन्होंने मेहेरबाबा की इच्छा व ट्रस्ट के नियमों तहत इस जमीन पर स्वास्थ्य,शिक्षा तथा धमार्थ आदि के कार्य संचालित किए, न ट्रस्ट की जमीन की देखभाल की और न ही 2018 तक न्यासी सदस्यों की नियुक्ति की।

बाबा के जीवित रहते 1949 में लोकन्यास के रूप में पंजीकृत मंडला के ‘मेहेरबाबा चेरिटबिल ट्रस्ट’ का मप्र पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1951 के तहत पंजीयन भी नहीं कराया। उल्टे बाबा के अनुयायियों ने जब ऐसा करना चाहा तो धीरेन्द्र ने आपत्तियां लगा दीं।

‘अतिक्रमण’ के नाम पर लिखी गई सौदे की पटकथा

सूत्रों के अनुसार, मंडला ट्रस्ट का लोकन्यास अधिनियम 1951 के तहत पंजीयन को लेकर दो-ढाई दशक तक चले कानूनी विवाद के बीच सितंबर 2023 में धीरेन्द्र ने जबलपुर व मंडला के अपने व्यवसायिक पार्टनर के साथ मिल कर बाबा के अनुयायियों से एक समझौता किया।

अहमदनगर (महाराष्ट्र) ट्रस्ट की अथॉरिटीज साथ हुए समझौते में धीरेन्द्र ने मंडला ट्रस्ट के पास एम.एस. ईरानी के स्वामित्व वाली शेष बची 11.080 हेक्टेयर (करीब 27 एकड़) जमीन में से खसरा नंबर 157 व158 की करीब साढ़े 22 एकड़ जमीन के अधिकांश हिस्से पर कब्जा व इसे अनुपयोगी बताया।

यहां काम में बाधा व विवाद होने की आशंका में अहमदनगर ट्रस्ट इस पर से दावा छोडऩे और यह जमीन धीरेन्द्र चौधरी के नाम पर किए जाने की सहमति दे देता है। इसके बाद धीरेन्द्र यह जमीन मंडला ट्रस्ट के प्रबंधक की हैसियत से खुद को महज 75 लाख रुपए में बेच देते हैं और फिर करीब 10 एकड़ जमीन एक करोड़ रुपए में जबलपुर व मंडला के अपने साथी डेवलपर को बेच देते हैं। समझौते तहत अहमदनगर ट्रस्ट को खसरा नंबर 159 की 4.40 हेक्टेयर जमीन, अतिक्रमण वाली बात छिपाते हुए दान में बिना प्रतिफल दे दी।

अहमदनगर की अनापत्ति ली मंडला का कहीं जिक्र नहीं

1939 तथा 1949 के ट्रस्ट के दस्तावेजों के मुताबिक एम.एस. ईरानी की देवदरा की जमीन 1969 में उनके निधन के बाद मंडला के मेहेरबाबा चेरिटबिल ट्रस्ट की मिलकियत थी। ट्रस्ट के एकल सदस्य होने के चलते धीरेन्द्र ने एम.एस. ईरानी के प्रबंधक की हैसियत से राजस्व खातों में अपना नाम चढ़वा लिया।

धीरेन्द्र ने अदालत के बाहर समझौता अहमदनगर ट्रस्ट के साथ किया जबकि इससे पहले वे इसके प्रयासों का विरोध करते रहे। जमीन के इस समझौते, बटवारे और सौदे में धीरेन्द्र द्वारा कहीं भी मंडला के ट्रस्ट और उसके सदस्यों की सहमति का जिक्र नहीं किया गया, जबकि पहली सहमति उन्हें मंडला ट्रस्ट के सदस्यों की लेनी थी।

18 जून 2018 से 3 जून 2024 तक मंडला ट्रस्ट के सदस्य रहे शैलेन्द्र चौधरी के मुताबिक ‘पूर्वजों की दान की जमीन के सौदे, उसे लेकर हुए समझौते व बटवारे को लेकर मेरे बड़े भाई तथा ट्रस्ट के न्यासी प्रबंधक धीरेन्द्र ने न कभी बैठक बुलाई और न ही ऐसी कोई जानकारी देते हुए मुझ से सहमति ली।’

Created On :   12 July 2024 1:33 PM GMT

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