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देश के ऐसे अकेले आचार्य, जिन्होंने 505 मुनियों को दीक्षा दी
डिजिटल डेस्क जबलपुर। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शरीर त्यागने की खबर फैलते ही जैन समाज के लोग डोंगरगढ़ की तरफ बढऩे लगे। पूजन के बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया। मध्य प्रदेश में सरकार के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए। इसके अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज देश के ऐसे अकेले आचार्य थे, जिन्होंने 505 मुनियों को दीक्षा दी। आचार्य श्री का ससंघ देश का सबसे बड़ा ससंघ है, जिसमें 300 से ज्यादा मुनि श्री और आर्यिका हैं।
गुरु ज्ञानसागर महाराज ने दिया था आचार्य पद
विद्यासागर महाराज को आचार्य पद की दीक्षा आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने 22 नवंबर 1972 को अजमेर राजस्थान के नसीराबाद में दी थी। इसके बाद आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने आचार्य श्री के मार्गदर्शन में ही 1 जून 1973 को समाधि ली थी।
विद्यासागर जी ने 1980 में दी थी पहली दीक्षा
विद्यासागर जी ने 8 मार्च 1980 को पहली दीक्षा छतरपुर में मुनि श्री समय सागर महाराज को दी। दूसरी दीक्षा सागर जिले में योग सागर और नियम सागर महाराज को दी थी। दीक्षा लेने वालों में आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन के भाई मुनि श्री समय सागर और मुनि श्री योग सागर हैं। आचार्य श्री की दो बहनें शांता और सुवर्णा दीदी भी दीक्षा ले चुकी हैं।
आचार्य श्री की ओर से पिछले 4 साल से दीक्षा नहीं दी गई। आखिरी बार उत्तर प्रदेश के ललितपुर में 28 नवंबर 2018 को दीक्षांत समारोह हुआ। इसमें 10 को मुनि दीक्षा दी गई थी।
22 की उम्र में दीक्षा ली-: आजीवन नमक-चीनी, हरी सब्जी, दूध-दही नहीं खाया; दिन में एक बार पानी पीते थे। आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगाँव जिले के सदलगा गाँव में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा थी। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था।
22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने मुनि दीक्षा ली थी। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया। उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियाँ और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था। संन्यास के बाद उन्होंने कभी ये चीजें ग्रहण नहीं कीं। पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे। बार-बार पानी नहीं पीते थे। वे बहुत ही सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी खाने में लेते थे। उन्होंने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया।
संत श्री विद्यासागर जी के जीवन से जुड़ी खास बातें...
कर्नाटक में जन्म, राजस्थान में दीक्षा
कर्नाटक में जन्मे संत श्री विद्यासागर जी के पिता श्री मल्लप्पा थे, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थीं, जो बाद में आर्यिका समयमति बनीं। विद्यासागर जी को 30 जून 1968 को अजमेर में 22 वर्ष की उम्र में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी, जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे। 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी ने उन्हें आचार्य पद दिया था।
पूरा परिवार ले चुका है संन्यास
विद्यासागर जी के बड़े भाई अभी मुनि उत्कृष्ट सागर जी हैं। उनके घर के सभी लोग संन्यास ले चुके हैं। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समय सागर जी के नाम से जाने जाते हैं। माता-पिता भी संन्यास ले चुके हैं।
कई भाषाओं के जानकार थे मुनिश्री
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्टरेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।
आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
Created On :   18 Feb 2024 11:32 PM IST