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वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे आज: मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग में समय के साथ बढ़े मरीज
- 100 में से 1 व्यक्ति को सिजोफ्रेनिया उपचार में देरी हुई तो गंभीर परिणाम
- विभाग में पीजी साइकेट्री शुरू होने के बाद चिकित्सकों की संख्या बढ़ी है।
- बीमारी की शुरुआत 16-17 वर्ष की उम्र से हो सकती है।
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। "एक 40 वर्षीय युवक रिश्तों में आए नकारात्मक बदलाव के बाद इतना आहत हो गया कि मानसिक रूप से बीमार रहने लगा। शुरुआती लक्षणों पर जब ध्यान नहीं दिया तो समस्या बढ़ने लगी। वास्तविक जीवन से इतर वह काल्पनिक दुनिया में खुशी ढूँढने लगा। परिजन जब चिकित्सक के पास लेकर पहुँचे तो पता चला युवक सिजोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित है।
ऐसी मानसिक समस्या, जिसका समय रहते उपचार न हो तो गंभीर परिणाम देखने मिल सकते हैं। लंबे समय तक चले उपचार के बाद युवक इस समस्या से दूर हो गया और अब सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है।' विशेषज्ञों के अनुसार आज प्रत्येक 100 में 1 व्यक्ति सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग में समय के साथ रोगियों की संख्या बढ़ी है। चिकित्सकों की मानें तो समय के साथ जागरूकता बढ़ी है। इसलिए मरीज उपचार के लिए आ रहे हैं। हालाँकि अभी भी शुरुआती लक्षणों में रोग पहचान के मामले कम हैं। इस दिशा में जागरूकता बढ़े, इसलिए आज वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे मनाया जाता है।
16 वर्ष की उम्र से बीमारी, इलाज मे लग सकते हैं 2 से 5 वर्ष
मेडिकल कॉलेज में मानसिक रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ओपी रायचंदानी कहते हैं कि सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज रियलिटी से कनेक्शन छोड़ देते हैं। इलाज के अभाव में बीमारी के लक्षण बने रहते हैं।
जागरूकता न होने के चलते उपचार में जादू-टोना भी कराते हैं, जबकि रोग को शुरुआत में ही पहचानने की जरूरत है। विभाग में पीजी साइकेट्री शुरू होने के बाद चिकित्सकों की संख्या बढ़ी है। उपचार के लिए नई दवाएँ भी आ रही हैं।
बीमारी की शुरुआत 16-17 वर्ष की उम्र से हो सकती है। इसमें फैमिली हिस्ट्री का भी अहम रोल है। इसके इलाज में 2 से 5 वर्ष तक का समय लग सकता है।
Created On :   24 May 2024 3:19 PM IST