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मध्य प्रदेश: खतरे में एनएच 30 का 100 मीटर का हिस्सा, गांधीग्राम स्थित खदानों द्वारा हाइवे किनारे छोड़े जा रहे पानी से कमजोर हो रही सडक़ की नींव
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्य प्रदेश के सिहोरा -जबलपुर के बीच रामपुर टोला में प्राथमिक शाला भवन के आगे ऊपर पहाड़ी पर स्थित मे. केपिटल मिनरल्स की खदान से बड़े-बड़े पााइपों के जरिए इस तरह से एनएच के किनारे पानी छोड़ा जा रहा है। चार साल पहले बना माना-रीवा नेशनल हाइवे (एनएच 30) का 100 मीटर का हिस्सा कभी भी भारी वाहनों के दबाव से धंसक सकता है। यह खतरा जबलपुर से करीब 24 किलोमीटर दूर गांधीग्राम (बुढ़ागर) में बना हुआ है। इसकी वजह यहां हाइवे के ठीक किनारे (सिहोरा-जबलपुर साइड) स्थित आयरन ओर, मैगनीज, लेट्राइट और बॉक्साइट की खदानोंं के संचालकों द्वारा वेस्ट वॉटर (खराब पानी) लगातार बाहर कच्ची नाली में छोड़ा जाना है। रामपुर टोला प्राथमिक शाला से हाइवे हिल्स होटल के पहले बनी पुलिया तक के करीब 100 मीटर के हिस्से में साल के 8 महीने (अक्टूबर से मई तक) खदानों का मिनरल्स व रसायन युक्त पानी भरा रहता है। इससे सडक़ की निचली सतह को नुकसान पहुंच रहा है, जो कभी भी यहां हाइवे के धंसकने का कारण बन सकती है। एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अमृत साहू इस मामले में तकनीकी टीम भेज कर जल्द मौका मुआयना व जांच कराने की बात कहते हैं।
कैपिलरी एक्शन सडक़ को करेगा कमजोर
सडक़ निर्माण का खासा अनुभव रखने वाले रिटायर्ड इंजीनियर महेन्द्र शुक्ला के अनुसार सडक़ सीमेंटेड हो या फिर डामर की, सडक़ के किनारे यदि बराबर पानी भरा रहता है तो कैपिलरी एक्शन होना तय है। डामर की सडक़ में इसका बुरा असर बहुत जल्द देखने में आ जाता है जबकि सीमेंटेड सडक़ पर कुछ देरी से दुष्प्रभाव नजर आएगा। श्री शुक्ला के अनुसार पानी के भराव की वजह से होने वाले कैपिलरी एक्शन से सडक़ की निचली सतह जिसे नींव भी कहा जा सकता है, लगातार कमजोर होती जाएगी। यह आगे चलकर वह सडक़ के धंसकने का कारण बन सकती है। यदि सडक़ के किनारे पक्की नाली न बनाई गई हो तो यह खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। गौरतलब है कि गांधीग्राम में, हाइवे से लगे हर आबादी वाले गांव व शहर की तरह सडक़ किनारे पक्की नालियों का निर्माण नहीं किया गया है।
खतरा इसलिए ज्यादा
एनएच-30 पर सिहोरा-जबलपुर के बीच सडक़ के धंसकने का खतरा इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसका पीसीयू (प्रति कार यूनिट) 30 हजार के ऊपर है। औसतन रोज यहां से करीब 8 हजार भारी/हल्के वाहन गुजरते हैं। सडक़ निर्माण के जानकारों के अनुसार, जहां इतना हैवी ट्रैफिक रोज गुजर रहा हो, वहां निचली सतह के किनारे वाले कच्चे हिस्से में खदानों से निकला/ छोड़ा जा रहा मिनरल्स युक्त पानी भरा रहने से सडक़ को ज्यादा नुकसान संभावित है। जानकारों के अनुसार मिट्टी और भूजल में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सल्फेट्स के संपर्क में आने से सीमेंट मैट्रिक्स घुल जाता है, यानि यहां खतरा दोहरा है। क्योंकि ऐसा पानी मिट्टी के साथ सडक़ निर्माण में लगने वाले स्टील का भी क्षरण करेगा और कंक्रीट कवर को भी नुकसान पहुंचाएगा। सडक़ की संरचानात्मक क्षमता घटेगी और दरार पडऩी भी शुरू हो जाएगी।
Created On :   26 Nov 2023 4:26 PM GMT