अभ्यारण्य संरक्षण: संदिग्ध दिखोगे तो उड़ा दिए जाओगे, शिकारियों पर कसी नकेल
- नई तकनीक से वन संरक्षण आसान
- पब्लिक पुलिसिंग ने कसी शिकारियों पर नकेल
- अभ्यारण्य संरक्षण का नायाब तरीका
डिजिटल डेस्क, गुवाहाटी, रघुनाथसिंह लोधी। वन्य जीव संरक्षण के कानून तो बहुत बनते हैँ लेकिन टूटते भी कम नहीं है। विविध रुपों में शिकारियों की आहट वनक्षेत्रों को रक्तरंजित करने लगती है। पोबित्रा राष्ट्रीय उद्यान भी कभी शिकारियों को लेकर भय के साए में रहता था, लेकिन अब यहां की आबोहवा बदल गई है। यहां संदिग्ध को दिखते ही उड़ाने का सरकारी आदेश असर कर रहा है। पब्लिक पुलिसिंग ने भी शिकारियों पर नकेल कसी है। अभ्यारण्य क्षेत्र में बसाए गए गांव सूचना या मुखबिरी के अचूक केंद्र माने जाने लगे हैँ। अभ्यारण्य संरक्षण के इस नायाब तरीके को केंद्रीय गृहविभाग से भी सीधे दिशानिर्देश मिलता है।
एक्शन प्लान
आसाम में 7 वन्यजीव राष्ट्रीय उद्यान और 17 वन्यजीव अभ्यारण्य हैं। बोर्डोईबाम पक्षी अभ्यारण्य व अंगलांग अभ्यारण्य प्रस्तावित हैं। काजीरंगा अभ्यारण्य एकसींग के गेंडों के लिए प्रसिद्ध है। मोरीगांव जिले में पोबित्रा राष्ट्रीय उद्यान एकसींग के गेंडे की सर्वाधिक संख्या वाला विश्व का इकलौता राष्ट्रीय उद्यान है। यह 38 किमी चौरस क्षेत्र में विस्तारित है। इनमें 11 किमी पहाड़ी क्षेत्र, 16 किलोमीटर हरित चारा इलाका और लंबाई चौड़ाई में 11 किलोमीटर खासलैंड इलाका है। अभ्यारण्य में 33 गांव हैं।
अभ्यारण्य में जंगली भैंसे, सियार, जंगली सूअर, हिरण, लंगूर, बंदर, एकसींग के गेंडे और तेंदुए हैँ। फिलहाल यहां गेंडों की संख्या 107 है। यहां मानव वन्यजीव संघर्ष की अनेक घटनाएं सुनने को मिलती है।
नागालैँड, मणिपुर सहित कई क्षेत्रों से आकर शिकारी यहां हिंसा करते रहे हैं, लेकिन 8 वर्ष में यहां शिकार का कोई प्रकरण दर्ज नहीं हुआ है।
गुवाहाटी वन्यजीव विभाग की विभागीय वन अधिकारी मोनिका किशोर बताती है कि वर्ष 2014 आसाम सरकार व वन अधिकारियों के लिए चुनौती भरा था। पोबित्रा अभ्यारण्य में एक ही समय में 3 गेंडों का शिकार किया गया। केंद्र में सरकार बदलते ही गेंडों के शिकार को रोकने के लिए वन अधिकारियों ने एक एक्शन प्लान तैयार किया। शिकार व तस्करी रोकने के लिए गांव स्तर पर संरक्षण कमेटियां बनाईं गई। स्थानीय नागरिकों को विश्वास में लिया गया। इसी क्षेत्र के युवाओं की बतौर वन कर्मचारी भर्ती की गई। अभ्यारण्य परिसर में 25 एंटी पोचिंग कैंप तैयार किए गए। प्रत्येक कैंप में 2-3 कर्मचारी अत्याधुनिक हथियार के साथ 24 घंटे तैनात किए गए। यहां 130 वनकर्मचारियों में 10 युवतियां है। स्थानीय पुलिस की सहायता से प्रतिदिन रात्रि गश्त की जाती है।
वन क्षेत्र अधिकारी सी.सुब्रतो बताते हैँ- नई तकनीकी से वन संरक्षण आसान हुआ है। ड्रोन से पूरे परिसर की निगरानी की जाती है। अभ्यारण्य से गेंडा गायब हो या आसपास के गांव में घुस जाएं तो जानमाल को खतरा हो सकता है। ऐसे में गेंडे को जंगल में छोड़ने के लिए विशेष आपरेशन शुरु किया जाता है। ग्राम सुरक्षा समिति, स्थानीय नागरिक व ड्रोन के अलावा हाथी की सहायता से गेंडे की तलाश शुरु की जाती है। गेंडे के सिंग का इस्तेमाल असाध्य रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। जिन गेंडों के सिंग नहीं होते उनके शिकार कम किए जाते हैं। अफ्रीका के जंगलों में वन अधिकारियों ने गेंडों के संरक्षण के लिए उनके सींग खुद ही काट दिए थे, लेकिन यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
गुवाहाटी वन्यजीव संरक्षण विभागीय क्षेत्र अधिकारी मोनिका किशोर विदर्भ के ताड़ोबा बाघ संरक्षण प्रकल्प का जिक्र करती है। वे कहती है-महाराष्ट्र में बाहरी राज्यों के वन्यजीव शिकारियों की पहुंच कम है। ऐसे में ताड़ोबा को अधिक विकसित किया जा सकता है। नागपुर को टाइगर कैपिटल के रुप में पहचान मिल सकती है।
Created On :   8 Nov 2023 6:31 PM IST