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अब तक 58 बाघों को पकड़कर बनाया रिकार्ड
योगेश चिंधालोरे, चंद्रपुर। बाघों का घर कहे जानेवाला चंद्रपुर जिला और विदर्भ के अन्य जिलों में बाघ-मानव वन्यजीव संघर्ष हमेशा होता है। कई स्थानों पर बाघों के उपद्रव से ग्रामीण आतंकित रहते हैं। ऐसे उपद्रवी बाघों को रैपिड रिस्पॉन्स टीम ट्रैंक्युलाइज कर पिंजरे में कैद करती हैै। टीम प्रमुख व ताड़ोबा अंधारी बाघ प्रकल्प के पशुवैद्यकीय अधिकारी (वन्यजीव) डा. रविकांत खोब्रागडे ने अपनी टीम की मदद से अब तक 58 बाघों को पकड़कर पिंजरे में कैद किया। इसमें अधिकांश उपद्रवी तो कुछ घायल बाघ-बाघिन का समावेश है। देश में संभवत: इतने बाघों काे पकड़ना एक तरह से अनूठा रिकार्ड ही है।
ज्ञात हो कि, सोमवार को देर शाम वांढरी परिसर में उपद्रवी बाघिन को पशुवैद्यकीय अधिकारी डा. रविकांत खोब्रागडे, पुलिस नाईक शुटर अजय मराठे, वाहन चालक अमोल कोरपे, अक्षय दांडेकर आदि की टीम ने पकड़कर 58 आंकड़ा छू लिया। एक वर्ष में पकड़े 15 बाघ और 3 तेंदुए बता दें कि, एक वर्ष की समयावधि में ताड़ोबा के जलद बचाव दस्ते ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के 15 बाघ व 3 तेंदुओं को पिंजरे में बंद किया। उसमें सीटी-1 बाघ व दुर्गापुर में आतंक मचानेवाले तेंदुए को मारने की अनुमति होने के बावजूद जान की बाजी लगाकर उन्हें सफल रूप से पकड़ा गया।
मौत को हराकर लौटे : बाघ जैसे वन्यजीव को पिंजरे में कैद करना आसान काम नहीं है। कई बार मौत का सामना भी करना पड़ता है। ऐसा ही मामला 3 जून 2021 को पशुवैद्यकीय अधिकारी डा.रविकांत खोब्रागडे के साथ हुआ था। ताड़ोबा समीप डोणी गांव के पास बेहोश बाघ को देखने गए खोब्रागडे पर बाघ ने हमला कर दोनों पैर पकड़ लिए। जूते पहने रहने के बावजूद बाघ के जबड़े में उंगलियां आने से एक उंगली टूट गई। दूसरे पैर को गंभीर चोट लगी थी। सौभाग्य से अन्य टीम के सदस्यों के कारण जान बच गई। बाघ जैसे खूंखार शिकार का सामना होने के बावजूद वे डरे नहीं। आज भी वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
तेंदुए के साथ अन्य वन्यजीवों का भी किया रेस्क्यू : वर्ष 2013 में ताडोबा में नियुक्त हुए पशुवैद्यकिय अधिकारी डा.रविकांत खोब्रागडे ने बाघों के अलावा करीब 60-65 तेंदुओं को भी पकड़ा है। वहीं मगरमच्छ, जंगली सुअर, हाथी जैसे वन्यजीवों का रेस्क्यू किया। मानव जाति के लिए खतरनाक बने कुछ बाघ, तेंदुओं को शूट आउट का ऑर्डर मिलने के बाद भी उन्हें सफल रूप से बेहोश कर पिंजराबंद किया। वहीं हाथियों में रेडियो कॉलरिंग व बाघ, तेंदुआ, जंगली श्वान में माइक्रो चिपिंग संबंधित में प्रक्रिया में उनका कुशल रूप से समावेश रहा है।
हरपिज वायरस का पता लगाया, सम्मानित भी हुए : बता दें कि, एशियाई हाथियों में पाया जानेवाला हरपिज वायरस का पता सर्वप्रथम डा.रविकांत खोब्रागडे ने लगाया था। वन्यजीव क्षेत्र में डा. खोब्रागडे के उल्लेखनीय कार्य को देखते हुए सेंचूरी एशिया जाइन्ट वाइल्ड लाइफ सर्विस अवार्ड से उन्हें नवाजा भी जा चुका है। भारत के पहले पशुवैद्यकीय अधिकारी थे, जो इस अवार्ड से पुरस्कृत हुए। उल्लेखनीय है कि, जान की बाजी लगाकर आतंक-उत्पात मचानेवाले बाघों को बेहोश कर पिंजराबंद करनेवाले डा.खोब्रागडे का जन्म गड़चिरोली जिले के आरमोरी में हुआ। जबकि कक्षा 10वीं तक की शिक्षा चंद्रपुर के व्याहाड़ खुर्द में हुई है।
Created On :   9 Aug 2023 2:23 PM IST