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राजनीतिक अखाड़ा: अब की बार पंकजा मुंडे की जीत के रास्ते में आया आरक्षण का ‘स्पीड ब्रेकर’
- मराठा मतदाताओं के रुख को लेकर उलझन में भाजपा
- मराठा आरक्षण की चिंगारी को सुलगाए रखने का हो रहा प्रयास
- राजनीतिक विरोधी रहे चचेरे भाई धनंजय मुंडे का साथ मिला
संजय देशमुख, बीड । दो बार पिता गोपीनाथ और दो बार बहन प्रीतम के प्रचार की कमान संभालने वाली पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे इस बार खुद बीड लोकसभा सीट से ड्राइविंग सीट पर हैं। आरक्षण के रास्ते पर चल रहीं पंकजा मुंडे की चुनाव की गाड़ी को कई स्पीड ब्रेकर से गुजरना पड़ रहा है। मराठा आरक्षण के आंदोलन के दौरान बीड में ही हिंसा व आगजनी हुई थी। दो विधायकों के घरों पर हमले हुए थे। राख के ढेर में मराठा आरक्षण की चिंगारी को सुलगाए रखने का पूरा प्रयास यहां हो रहा है। मराठा ज्यादा मुखर हैं। पंकजा मुंडे को अपने राजनीतिक विरोधी रहे चचेरे भाई धनंजय मुंडे का साथ मिला है।
लोकसभा सीट के छह में से पांच विधायक महायुति के हैं और उनमें भी चार मराठा हैं। इसके बावजूद भाजपा को बीड में कमल खिलाने के लिए कांटों पर चलना पड़ रहा है। आम मराठा मतदाताओं के रुख को लेकर भाजपा उलझन में है। मनोज जरांगे-पाटील का जन्म स्थान बीड ही है। यहां मुख्य मुकाबला राकांपा (शरद) के बजरंग उर्फ बप्पा सोनवणे से है। महाविकास आघाडी के सीटों के बंटवारे में यह सीट पवार गुट को मिली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंगलवार को ही आंबेजोगाई में सभा हुई।
धरातल पर नहीं उतरा ‘विकास’: यह सीट सन 2009 से लगातार भाजपा के पास है। भाजपा के सामने वर्तमान सांसद प्रीतम मुंडे के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी, मनोज जरांगे-पाटील की लोकप्रियता और मराठा समाज की नाराजगी से निपटने की बड़ी चुनौती है। दिग्गज मुंडे परिवार के सदस्य पांच बार लोकसभा में पहुंचे लेकिन ‘विकास’ को कागज से धरातल पर नहीं उतार पाए। यहां तक कि प्रीतम मुंडे अपनी सांसद निधि तक खर्च नहीं पाईं। परिवार के प्रति सहानुभूति के कारण प्रीतम जीतती रहीं, लेकिन जनता से दूर रहीं। बीड में सिंचाई की सुविधा, पेयजल योजनाओं, सड़कों व रेल लाइन पर ध्यान नहीं दिया। 2019 में विधानसभा में हुई हार के बाद पंकजा भी इलाके से दूर हो गईं। जिस बीड शहर के नाम से मुंडे परिवार लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है, वहां अब तक उनका जनसंपर्क कार्यालय तक नहीं था।
सहानुभूति की लहर इस बार कमजोर : ओबीसी के कोटे से मराठा समाज को आरक्षण दिए जाने के विरोध में राज्य के मंत्री छगन भुजबल ने बीड लोकसभा क्षेत्र में सभाएं ली थीं, लेकिन पंकजा मुंडे मराठा वोट बैंक के नाराज होने के डर से इन सभाओं से गैरहाजिर थीं। ओबीसी वर्ग इस बात को अब याद रख रहा है। बाजारगांव, लहुरगांव, केज तहसील के गांवों में पंकजा को प्रवेश करने से रोका गया। गांव के लोगों ने कहा कि स्टाम्प पेपर पर आरक्षण देने की बात लिखकर दो तभी एन्ट्री मिलेगी। कुल मिलाकर पिछले 15 वर्ष से मुंडे परिवार के प्रति मतदाताओं की सहानुभूति की लहर इस बार कमजोर नजर आ रही है।
धधक रहा आरक्षण का मुद्दा : खुद को धरतीपुत्र बताने वाले बजरंग सोनवणे बीड के एक विधानसभा क्षेत्र केज से आते हैं। सोनवणे ने पिछले चुनाव में 5 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। ग्रामीणों की मानें तो सोनवणे की शुगर मिल है और उन्होंने किसानों को इस बार गन्ने के अच्छे दाम दिए। सोनवणे ने आरक्षण आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की भोजन और अन्य तरह की व्यवस्था की थी। मराठा वोटर पंकजा की कमजोरी है और आरक्षण का मुद्दा धधक रहा है। पंकजा का कहना है कि आरक्षण का मुद्दा राज्य सरकार का विषय है, जबकि चुनाव लोकसभा का हो रहा है।
वोटों के ध्रुवीकरण पर सबकी नजर : बीड लोकसभा क्षेत्र में पांच लाख से अधिक मराठा वोटर हैं। मराठों के बाद साढ़े तीन लाख वोटों वाला बंजारा समुदाय है, जिससे पंकज आती हैं। बंजारा वोट पंकजा की ताकत हैं। धनगर समाज के 3 लाख से अधिक वोट हैं, जो एसटी वर्ग में शामिल न किए जाने से नाराज चल रहे हैं। डेढ़ लाख मुस्लिम वोट हैं। ओबीसी वोट भी अच्छी तादाद में हंै। 2019 में वंचित आघाडी के उम्मीदवार विष्णु जाधव ने 94 हजार वोट लिए थे। हालांकि इस बार के उम्मीदवार अशोक हांगे का प्रभाव नजर नहीं आया।
सीट निकल रही : हमारी सीट निकल रही है। जरांगे फैक्टर बड़े पैमाने पर है, लेकिन मराठा समाज के 25-30 फीसदी वोट भाजपा को मिलेंगे। पंकजा मुंडे भले ही पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन चुनाव के नियोजन का उन्हें अनुभव है। -राजेद्र मस्के, जिलाध्यक्ष, भाजपा
परिवारवाद के खिलाफ वातावरण : भाजपा विरोधी वातावरण है। मुंडे परिवार के खिलाफ लड़ाई है। किसान परेशान हैं और मराठा समाज में भारी नाराजगी है। तोड़फोड़ की राजनीति से लोग अब ऊब गए हैं। -नरेंद्र काले, प्रदेशाध्यक्ष, राकांपा (पवार) पदवीधर संगठन
मराठा आरक्षण का है इफेक्ट : मनोज जरांगे-पाटील के मराठा आरक्षण का इफेक्ट चुनाव में नजर आ रहा है। मराठा वोट बजरंग सोनवणे की ओर जा रहा है। वैसे तो व्यापारी चुनाव से दूर रहते हैं, पर हकीकत यही है। -संतोष सोहनी, अध्यक्ष, मराठवाड़ा व्यापारी महासंघ
प्याज-गन्ने का उचित दाम नहीं मिला : उच्च शिक्षित सुनील लाखे प्याज उत्पादक किसान हंै। नौकरी नहीं मिलने से सुनील चवसाला गांव में खेती के साथ कपड़े की दुकान चलाते हैं। 7 एकड़ में प्याज का उत्पादन लिया था। 70 हजार रुपए खर्च हुए थे। लेकिन 40 हजार रुपए की आय हुई। केन्द्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। इसका खामियाजा सुनील को भी घाटे के रूप में उठाना पड़ा। दस रुपए किलो दर से प्याज बेचना पड़ा। चुनाव के बीच चार दिन पहले प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने निर्यात पर से पाबंदी हटायी। प्याज के दाम 30 रुपए किलो हुए, लेकिन अब किसानों के घर में बेचने के लिए प्याज नहीं बचा है। बीड से 70 कि.मी. दूर टाकरवाड़ी गांव में शहादेव साबले को गन्ने का दाम 2700 रुपए प्रति टन मिला, जबकि दाम 3 हजार से अधिक थे। कम दाम में गन्ना बेचने के बाद भी 150 टन के 3 लाख रुपए अब तक नहीं मिले।
Created On :   9 May 2024 2:02 PM IST